नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को संसद से पारित हुए एक साल हो गया है लेकिन गृह मंत्रालय ने अभी तक इसके नियम जारी किए हैं जिके चलते यह कानून अभी तक लागू नहीं हो सका है। वैसे भी यह साल तो कोरोना महामारी और सरकारी लॉकडाउन की भेंट चढ़ चुका है। लेकिन इस विवादास्पद कानून पर अब नए सिरे से बहस शुरु हो चुकी है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम 9 दिसंबर को लोकसभा में और 11 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा में पारित किया गया था। 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी थी। लेकिन इसके बाद से गृह मंत्रालय ने इस कानून के बारे में कुछ नहीं कहा है। लेकिन बीजेपी वरिष्ठ नेता कैलाश विजय वर्गीय ने पिछले सप्ताह अचानक पश्चिम बंगाल में घोषणा की कि 2021 जनवरी में सीएए के तहत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को संभवतः नागरिकता दी जाएगी।
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पत्रकारों से बात करते हुए, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विजय वर्गीय ने कहा, “बीजेपी जो कहती है वह करती है। संसद में प्रधान मंत्री और गृह मंत्री के बाद, हमने कहा कि हम सीएए को लागू करेंगे। ममता बनर्जी सहित कई नेता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक हैं, निश्चित रूप से उन्हें नागरिकता दी जाएगी। हमने जो कहा है, वैसा ही करेंगे।''
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विजयवर्गीय ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम अगले साल जनवरी से लागू होने की संभावना है क्योंकि केंद्र और बीजेपी पश्चिम बंगाल में बड़ी तादाद में मौजूद शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए कटिबद्ध है। उधर आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि अभी तक इस कानून के नियमों को ही अंतिम रूप नहीं दिया गया है, ऐसे इसे कानून को लागू करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ऐसे में विजयवर्गीय के बयान का क्या अर्थ है? सूत्रों का कहना है कि बीजेपी अब सीएए पर फिर से ध्यान केंद्रित करना चाहती है। दरअसल प्रधान मंत्री और गृह मंत्री इसे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष की एक विशेष उपलब्धि के तौर पर पेश करना चाहते हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 15 दिन पहले दिल्ली में पार्टी नेताओं के साथ एक बैठक में सीएए पर चर्चा की थी, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी शामिल थे। हालांकि बैठक असम विधानसभा चुनाव पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी लेकिन इसमें सीएए पर भी विचार किया। सूत्रों की मानें तो सीएए को लेकर नियम जल्द घोषित किए जाएंगे।
ध्यान रहे कि सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, जैनियों, पारसियों और बौद्धों को धर्म के आधार पर नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है। इसके तहत ऐसे लोग जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हैं उन्हें नागरिकता दी जाएगी। माना जा रहा है कि सरकार द्वारा सीएए के नियम जारी होने के बाद एक बार फिर इस कानून का विरोध शुरु होगा और देश भर में प्रदर्शनों की एक श्रृंखला खड़ी हो सकती है। बीजेपी इसे बंगाल और असम विधानसभा चुनाव में अपने राजनीतिक फायदे के लिए भुनाना चाहती है। यह दोनों ही राज्य बांग्लादेश की सीमा से लगे हुए हैं।
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गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी सरकार राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) लागू करने को मंजूरी नहीं देगी। इस बीच, उत्तर पूर्वी छात्र संगठन समेत कई संगठनों ने 11 दिसंबर को काला दिवस मनाने की घोषणा की है। उत्तर पूर्वी छात्र संगठन में सात पूर्वोत्तर राज्यों के छात्र संगठन शामिल हैं।
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