दिल्ली में आप जिस एक लीटर पेट्रोल के दाम 76.87 पैसे दे रहे हैं, उसकी वास्तविक कीमत महज 39 रुपए प्रति लीटर है। बाकी का पैसा केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पेट्रोल पंप मालिक और तेल कंपनियों के पास जा रहा है। इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार का है।
पेट्रोल-डीजल की बात करें तो उस पर लगने वाला टैक्स उसकी वास्तविक कीमत से ज्यादा होता है। मसलन अगर कच्चे तेल के दाम 78-79 डॉलर प्रति बैरल हैं और डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 68 के आसपास है तो एक लीटर पेट्रोल की कीमत दिल्ली में करीब 39-40 रुपए होगी। इसमें डीलर कमीशन भी शामिल है। लेकिन इस पर 27 फीसदी वैट यानी 11 रुपए रु का दिल्ली सरकार का है, इसके अलावा 23.40 रुपए के आस-पास एक्साइज ड्यूटी यानी केंद्र सरकार का है। यानी कुल टैक्स का 60 फीसदी तो एक्साइज ड्यूटी ही लग रही है। इसी सबके चलते 39 रुपए प्रति लीटर का पेट्रोल करीब 76 रुपए प्रति लीटर हो जाएगा। इसी तरह से डीजल के मामले में भी आम आदमी को वास्तविक के बराबर ही टैक्स देना होता है जो सरकार के खजाने में जाता है।
इस सारे गुणा-भाग की जरूरत इसलिए है क्योंकि पेट्रोल-डीजल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं। राजधानी दिल्ली में मंगलवार को पेट्रोल 76.87 रुपए और डीजल 68.08 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। लेकिन न तो केंद्र सरकार एक्साइज़ ड्यूटी घटाती नजर आ रही है और न ही दिल्ली सरकार वैट। वैसे दो दिन पहले पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बयान से संकेत जरूर मिला था कि शायद सरकार एक्साइज ड्यूटी घटाकर थोड़ी राहत दे सकती है। लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है।
आपको याद होगा कि अक्टूबर 2017 में सरकार ऐसा ही किया था। लेकिन आज एक्साइज़ ड्यूटी घटाने की जरूरत पड़ी क्यों हैं, यह बड़ा सवाल है। दरअसल 2014 में कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे गई थीं, लेकिन मोदी सरकार ने इसका फायदा आम लोगों को देने के बजाए तेल पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा दी। और ऐसा एक-जो बार नहीं कम से कम एक दर्जन बार मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई। नतीजा यह हुआ कि कच्चा तेल सस्ता मिलने के बादी भी अब कीमतें ऊपर जाने के बाद वह खामोश है।
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बीते 4 साल में मोदी सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यूटी में 211.7 फीसदी और डीज़ल में 443.06 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है। मई 2014 में पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यूटी 9.2 रुपए प्रति लीटर और डीज़ल पर 3.46 रुपए प्रति लीटर थी, जो अब बढ़कर क्रमश: 19.48 रुपए और 15.33 रुपए प्रति लीटर हो गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी का सारा बोझ उभोक्ताओं पर डालना ज्यादती है। लेकिन सवाल यह भी है कि अगर सरकार एक्साइज ड्यूटी घटाती है तो उसके लिए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करना टेढ़ी खीर साबित होगा।
तेल कंपनियों ने सरकार के परोक्ष निर्देश पर कर्नाटक चुनाव के लिए मतदान होने से पहले करीब तीन हफ्ते से तक पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर रखा था। 12 मई को कर्नाटक में मतदान हुआ और उसके बाद 14 मई को तेल कंपनियों ने फिर से कीमतों में रोज बदलाव शुरु कर दिया। एक अनुमान के मुताबिक पेट्रोल-डीजल की कीमतें 19 दिन तक न बदले जाने से कंपनियों को करीब 500 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि इस दौरान कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का रुझान रहा। इसके अलावा इस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया भी कमजोर हुआ। ऐसे में कंपनियां कर्नाटक चुनाव के पहले वाले मार्जिन पर जाने के लिए तेजी से दाम बढ़ा रही हैं।
अगर सितंबर 2014 के बाद से देखें सिर्फ डीजल पर ही अब 17.33 रुपए प्रति लीटर टैक्स बढ़ाया जा चुका है। हालांकि पिछले साल अक्टूबर में महज 2 रुपए की कमी की गई थी। ऐसी ही कमी पेट्रोल में भी की गई थी। अनुमान है कि 2 रुपए की इस कमी से सरकारी खजाने को 26,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ होगा।
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