मोदी सरकार में सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में देने की होड़ मची हुई है। रेलवे के कुछ हिस्सों, बिजली कंपनियों और कुछ एयरपोर्ट को निजी हाथों में देने के बाद अब केंद्र सरकार सरकारी जिला अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। अगर सरकार की यह योजना लागू हो जाती है तो निजी व्यक्ति या संस्थान मेडिकल कॉलेज की स्थापना और उसे चलाने के लिए भी जिम्मेदार होंगे। इसके अलावा इन मेडिकल कॉलेजों से सेकेंडरी हेल्थकेयर सेंटर को जोड़ा जा सकता है। ये सेंटर भी निजी हाथों से नियंत्रित होंगे।
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST
थिंक टैंक नीति आयोग ने पीपीपी मॉडल के तहत नए और मौजूदा निजी मेडिकल कॉलेज से जिला अस्पतालों को जोड़ने की योजना को लेकर 250 पन्नों का दस्तावेज जारी किया है। इस दस्तावेज के जरिए इस योजना में रुची लेने वाले लोगों के प्रतिक्रिया मांगी गई है। खबरों की माने तो जनवरी के अंत तक इस योजना में हिस्सा लेने वालों की एक बैठक की तारीख तय की गई है।
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST
इस नए योजना के मुताबिक, जिला अस्पतालों में कम से कम 750 बेड होने चाहिए। मरीजों के लिए 750 बेडों में से आधे मार्केट बेड और बाकी रेग्यूलेटेड बेड के रूप में होंगे। मार्केट बेड मतलब, मरीजों के लिए बेड बाजार की कीमत आधारित होगी, जिसका फायदा रेग्यूलेटेड बेड में छूट के रुप में मिलेगी।
सरकार इस योजना को लागू करने के पीछे की वजह बताई है कि केंद्र और राज्य की सरकार अपने सीमित संसाधन और सीमित खर्च की वजह से चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में अंतर को नहीं खत्म कर पा रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने और चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई की लागत को तर्कसंगत बनाने के लिए यह फैसला जरुरी है।
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST
आयोग के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि राज्यों के जिला अस्पतालों की हालात ठीक नहीं है। जिला अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं और मेडिकल सेक्टर पैसों की कमी को खत्म करने के लिए जिला अस्पताल अपनी स्वेच्छा से इस योजना को लागू कर सकते हैं। मसौदे को लेकर अधिकारियों ने कहा कि इस पर काफी विचार विमर्श करने के बाद तैयार किया है। मसौदे में बताया गया है कि इस योजना के लागू होने से मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों के हालत अच्छे हो जाएंगे। हालांकि सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस पर शंका जता रहे हैं।
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल को-कनवेनर डॉ अभय शुक्ला ने कहा “इस नीति को लागू करने के बाद स्वास्थ्य सेवा और उसकी गुणवत्ता से समझौता करना पड़ेगा। इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर पड़ेगा। हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश की जरुरत है। किसी का यह कहना कि हमारे पास संसाधन की कमी हैं, यह एक हास्यास्पद तर्क है क्योंकि हमारा स्वास्थ्य सेवा खर्च दुनिया में सबसे कम है।”
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST
वहीं इस प्रस्ताव पर जेएसए और एसोसिएशन ऑफ डॉक्टर्स फॉर एथिकल हेल्थकेयर ने विरोध जताया है। इस प्रस्ताव के खिलाफ सरकार को पत्र लिखने का भी फैसला किया है। दूसरी ओर पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की प्रिया बालासुब्रह्मण्यम ने कहा कि इस तरह के योजनाओं के लागू होने के बाद भले ही कुछ बेड मरीजों के लिए मुफ्त हों, लेकिन जो मरीज भुगतान नहीं कर पाएंगे उन्हें न के बराबर प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसे मॉडल में निजी पार्टियों पर जवाबदेही तय करना मुश्किल हो सकता है।
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 02 Jan 2020, 4:07 PM IST