हरियाणा विधान सभा के 5 मार्च से शुरू हो रहे बजट सत्र में प्रदेश के सभी कानून ‘हरियाणवी’ हो जाएंगे। इस सत्र में सरकार ऐसा विधेयक पास करवाने जा रही है, जिससे 163 कानूनों के नाम से ‘पंजाब’ शब्द हटा कर उसके स्थान पर ‘हरियाणा’ कर दिया जाएगा। हरियाणा के अधिनियमों से पंजाब का नाम हटाने के उद्देश्य से गठित कमेटी ने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर दी हैं। इन सिफारिशों को लेकर हरियाणा विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने विधान सभा सचिवालय में प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव विजयवर्धन, विधान सभा सचिव राजेंद्र कुमार नांदल और कानून एवं विधि विभाग की लीगल रिमेम्ब्रेन्सर बिमलेश तंवर के साथ बैठक की।
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बैठक में दोनों अधिकारियों ने विधान सभा अध्यक्ष को बताया कि इस मामले में गठित समिति अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव के सम्मुख प्रस्तुत कर चुकी है। इसके बाद यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री मनोहर लाल के सामने प्रस्तुत की गई। अधिकारियों ने बताया कि इस रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री अपनी मंजूरी दे चुके हैं, जिसके बाद विधेयक का मसौदा तैयार करने का रास्ता साफ हो गया है। अब प्रदेश सरकार का संसदीय कार्य विभाग इस रिपोर्ट के आधार पर विधेयक का मसौदा तैयार करेगा। गुप्ता ने बताया कि हरियाणा के कानूनों के शीर्षकों से ‘पंजाब’ शब्द हटाने के लिए विधेयक 5 मार्च से शुरू हो रहे विधान सभा के बजट सत्र में प्रस्तुत किया जा सकता है।
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इस विधेयक के पास होने से करीब 163 कानूनों से पंजाब का नाम हट जाएगा। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने बताया कि इस मामले में गठित कमेटी की सिफारिशें सकारात्मक हैं और इससे विधेयकों के नाम हरियाणा के नाम पर करने का रास्ता साफ हो गया है।
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स्पीकर ने ही हरियाणा के अधिनियमों से पंजाब शब्द हटाने के लिए प्रयास शुरू किए हैं। उनकी पहल पर हरियाणा की विधान पालिका और कार्यपालिका ने मिल कर योजना बनाई। इस संबंध में एक कमेटी का गठन किया गया, जिसमें विधान सभा और प्रदेश सरकार के कानून एवं विधि विभाग के अधिकारी शामिल रहे। इस कमेटी ने 1968 के आदेश के अंतर्गत स्वीकृत अधिनियमों के उपशीर्षकों के संशोधन के विषय में पुनरावलोकन एवं परीक्षण किया है।
विधान सभा सचिवालय में आयोजित बैठक में लीगल रिमेम्ब्रेन्सर ने स्पष्ट किया है कि प्रदेश के अधिनियमों से ‘पंजाब’ शब्द के स्थान पर ‘हरियाणा’ करने में कोई भी कानूनी अड़चन आड़े नहीं आएगी। उन्होंने बताया कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1966 के तहत हरियाणा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला है। उसे अपनी आवश्यकता अनुसार कोई भी नया कानून बनाने तथा राज्य से संबंधित किसी भी कानून में संशोधन का पूरा अधिकार है। लीगल रिमेम्ब्रेन्सर ने स्पष्ट किया कि हरियाणा विधान सभा को किसी भी अधिनियम के शीर्षक तथा उपशीर्षक में संशोधन करने की भी पूरी शक्ति है। इसके साथ ही मुख्य सचिव विजय वर्धन ने कहा कि ऐसा करने में कोई प्रशासनिक बाधा नहीं है।
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पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत वर्ष 1966 में हरियाणा राज्य का गठन किया गया था। तब पंजाब में जिन अधिनियमों का अस्तित्व था, वे ही हरियाणा में लागू रहे। व्यवस्था यह बनी थी कि 1968 में हरियाणा अपनी जरूरतों के मुताबिक इनमें आवश्यक संशोधन कर सकेगा। अनावश्यक कानूनों को हटाने का अधिकार भी प्रदेश की विधान सभा को मिला है। हरियाणा को विरासत में जो कानून मिले थे, वे सभी पंजाब के नाम पर थे और गत 54 वर्षों से हरियाणा की शासन व्यवस्था इन्हीं कानूनों के आधार पर चल रही है। इससे पहले स्पीकर विस में हरियाणा को उसका हिस्सा देने की मांग भी पंजाब से उठा चुके हैं, लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। गौरतलब है कि 60 और 40 के अनुपात में संयुक्त पंजाब की विस का बंटवारा हुआ था, लेकिन हरियाणा का दावा है कि विस में उसके हिस्से का 40 प्रतिशत भी उसे नहीं मिला है।
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