लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों में सहयोगियों को मनाना बीजेपी के लिए चुनौती बनता जा रहा है। बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में किसी तरह अपने सहयोगियों के साथ तनाव को कम करने की कोशिश कर रही बीजेपी के लिए अब त्रिपुरा में भी समस्या खड़ी हो गई है। मंगलवार को राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी की सहयोगी पार्टी आईपीएफटी ने कहा कि वह राज्य की दोनों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
हालांकि, इस पर बीजेपी का कहना है कि अब तक इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है। लेकिन आईपीएफटी के सहायक महासचिव और प्रवक्ता मंगल देववर्मा ने कहा कि यह फैसला पार्टी की केंद्रीय कार्यकारी समिति ने सोमवार को लिया है। देववर्मा ने भी कहा कि बीजेपी से कोई बातचीत नहीं हुई है।
वहीं आईपीएफटी के उपाध्यक्ष अनंत देववर्मा ने अलग से कहा कि पार्टी ने आगामी आम चुनावों के लिए रणनीति बनाने के लिए पार्टी अध्यक्ष और राजस्व मंत्री नरेंद्र चंद्र देववर्मा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। उन्होंने कहा, “हमने अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है।” इस बीच बीजेपी प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी और आईपीएफटी के नेताओं के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है।
दूसरी ओर त्रिपुरा की सबसे पुरानी जनजातीय पार्टी ‘इंडीजिनस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा’ (आईएनपीटी) ने भी अभी तक निर्णय नहीं किया है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी या अन्य दलों से गठबंधन करेगी। आईएनपीटी के महासचिव जगदीश देववर्मा ने कहा, “हम त्रिपुरा में बदलते परिदृश्य पर नजर रखे हुए हैं।”
त्रिपुरा में दो प्रमुख गैर वामदल- कांग्रेस और बीजेपी हमेशा से जनजातीय लोगों के समर्थन के लिए आईएनपीटी और आईपीएफटी पर निर्भर रहे हैं। 40 लाख आबादी वाले त्रिपुरा में एक-तिहाई आबादी जनजातीय समुदाय की है।
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