लंबे समय से पंजाब से विधानसभा में हक मांग रहे हरियाणा ने अब अपना अलग विधानसभा बनाने का फैसला किया है। दिल्ली में बन रहे नए संसद भवन की तर्ज पर हरियाणा में भी एक आधुनिक विधानसभा की परिकल्पना की गई है। यह एक ऐसी विधानसभा होगी, जिसमें आधुनिक संचार व्यवस्था के साथ वह सभी सुविधाएं होंगी, जिनकी आज के समय जरूरत है।
इसकी पहल की है विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने। सदन की कार्यवाही और सचिवालय के काम में आड़े आ रही जगह की कमी का यह स्थायी समाधान बताया जा रहा है। मंगलवार को दिल्ली में मुख्यमंत्री ने भी इस बात की तस्दीक की है कि वर्तमान विधानसभा भवन छोटा है और हरियाणा विधानसभा के लिए पृथक भवन के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया है।
विधानसभा अध्यक्ष ने संसद भवन और नवगठित राज्यों के आधुनिक विधान भवनों की तर्ज पर हरियाणा के लिए भी भव्य विधान भवन की मांग की है। इसको लेकर उन्होंने प्रदेश और केंद्र सरकार के साथ-साथ लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा है। उनका कहना है कि बदलते दौर में संसदीय कार्य का स्वरूप बदल रहा है। इसके लिए न सिर्फ पर्याप्त स्थान चाहिए, बल्कि आधुनिक तकनीक से लैस संचार ढांचे भी वक्त की जरूरत है। इसलिए प्रदेश सरकार को चंडीगढ़ प्रशासन से नए विधान भवन के लिए जगह की मांग करनी चाहिए।
योजना में विपक्ष को साझीदार बनाने के लिए पत्र की प्रति विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी भेजी गई है। हरियाणा के मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्रालय और लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा है कि राज्य के अस्तित्व में आने के करीब 55 साल बाद भी हरियाणा विधानसभा स्थानाभाव का दंश झेल रही है। पंजाब से बंटवारे के वक्त हुए समझौते के अनुसार हरियाणा को उसका पूरा हिस्सा नहीं मिल पाया है। दोनों प्रांतों का एक ही विधान भवन होने के कारण अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है।
देश के दूसरे राज्यों की मिसाल देते हुए स्पीकर ने कहा कि सभी राज्यों और कुछ केन्द्र शासित प्रदेशों के पास स्वतंत्र विधान भवन हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, उत्तराखंड और इसके अलावा कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं, जहां पहले से विधानसभा भवन की इमारत होने के बावजूद समय की मांग के अनुसार नवनिर्माण किए गए। राजस्थान विधानसभा का नवनिर्मित विधान भवन जयपुर में, गुजरात विधानसभा का गांधी नगर में, हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला स्थित विधान भवन इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इतना ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली में भी आवश्यकताओं के अनुसार नया संसद भवन बनाया जा रहा है।
विधानसभा अध्यक्ष गुप्ता ने पत्र में लिखा है कि 2026 में प्रस्तावित परिसीमन में हरियाणा में लोकसभा की 14 और विधानसभा की 126 सीटें होने का अनुमान है, लेकिन विधानसभा के सदन में 90 विधायकों के बैठने की ही व्यवस्था है। इसके अलावा एक भी विधायक के लिए स्थान बनाना यहां मुश्किल काम है। 2026 के लिए मात्र 5 वर्ष का समय शेष है, इसलिए इस दिशा में अभी से विचार कर योजना बनानी होगी। इसके अलावा विधानसभा सत्र के दौरान मंत्रियों, समिति अध्यक्षों और विधायकों के बैठने का भी पर्याप्त स्थान नहीं है। पंजाब विधानसभा के लगभग सभी मंत्रियों को सत्र के दौरान उनके कार्यालय के लिए स्वतंत्र कमरों का प्रावधान है। वहीं, हरियाणा विधानसभा में मुख्यमंत्री के अलावा किसी भी मंत्री या समितियों के अध्यक्ष के बैठने के लिए व्यवस्था नहीं है। इस कारण से समितियों की बैठकें सुचारू रूप से नहीं चल पा रही हैं।
विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि हरियाणा विधानसभा सचिवालय में सेवारत करीब 350 अधिकारियों और कर्मचारियों के बैठने के लिए भी पर्याप्त स्थान नहीं है। एक कमरे में 3 से 4 शाखाओं को समायोजित करना पड़ा है। दो प्रदेशों का साझा विधानभवन होने के कारण पार्किंग समस्या भी परेशानी का सबब बन चुकी है। सत्र के दिनों में यह समस्या और ज्यादा बढ़ जाती है। इसके साथ ही प्रवेश द्वारों का मसला भी कई बार सुरक्षा व्यवस्था के लिए भारी हो जाता है। पंजाब विधानसभा की तर्ज पर हरियाणा विधानसभा परिसर में भी विधायक दलों के स्वतंत्र कार्यालयों का प्रावधान संसदीय कार्य की जरूरत बन चुका है। वर्तमान हरियाणा विधानसभा के पास जो स्थान उपलब्ध है, उसमें इस प्रकार की व्यवस्था करना संभव नहीं है।
राज्य और केंद्र सरकार के साथ लोकसभा स्पीकर को लिखे पत्र में विधानसभा अध्यक्ष ने वर्तमान दौर में मीडिया के बदलते स्वरूप और आवश्यकताओं के अनुसार आधुनिक सुविधाओं से लैस व्यवस्था विकसित करने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि जब हरियाणा प्रदेश और इसकी विधानसभा का गठन हुआ था तब मीडिया का स्वरूप इतना बड़ा नहीं था। इसलिए प्रेस गैलरी समेत अनेक व्यवस्था उस समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई थीं। अब तकनीकी विकास के कारण इस क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है।
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