झारखंड में धनबाद के सबसे बड़े सब टाउन झरिया में जमीन के भीतर बरसों से लगी आग को जानमाल के लिए खतरनाक बताते हुए कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) ने इसके तीन चौथाई इलाके को खाली करने का नोटिस दिया है। अगर इस पर अमल हुआ तो शहर की तकरीबन पांच लाख की शहरी-ग्रामीण आबादी को विस्थापित होना पड़ेगा।
बीसीसीएल ने अपने नोटिस में इलाके में लगी आग पर डीजीएमएस (डायरेक्टर जनरल माइंस सेफ्टी) की रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें बताया गया है कि यहां हालात बेहद खतरनाक हैं। इस नोटिस पर यहां के लोगों और जनप्रतिनिधियों ने जबरदस्त विरोध जताया है। रविवार और सोमवार को झरिया के कई इलाकों में लोगों ने नोटिस के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया।
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नोटिस में झरिया के कतरास मोड़ से कोईरीबांध, पोद्दारपाड़ा, चौथाई कुल्ही, कोयला मंडी कतरास मोड़, बिहार टॉकिज, प्रखंड कार्यालय, अंचल कार्यालय, बाल विकास परियोजना कार्यालय, प्रखंड संसाधन केंद्र, राजबाड़ी, बकरीहाट, राजा तालाब आदि इलाके आग और भू-धंसान की जद में बताये गए हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब झरिया को खतरनाक घोषित किया गया है। यहां की खदानों में 100 साल से भी ज्यादा वक्त से आग लगी है।
झरिया में पहली बार 1916 में आग की बात सामने आई थी। दरअसल झरिया में आजादी के लगभग 70 साल पहले से कोयले का अवैज्ञानिक तरीके से खनन किया जा रहा था। अब तक इलाके की खदानों से 25 से 30 तल्ले की गहराई तक खनन किया गया है, लेकिन खनन के बाद खाली जगह पर बालू नहीं भरा गया। ऐसे में खदानों की आग धीरे-धीरे और भयंकर होती चली गई। लेकिन इसके साथ ही झरिया सहित आसपास के इलाके में नई आबादी की बसाहट का सिलसिला भी जारी रहा।
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लगभग डेढ़ दशक पहले झरिया कोयलांचल के 595 क्षेत्रों को अग्नि प्रभावित घोषित किया गया था और इलाके में रह रहे लोगों को यहां से हटाकर सुरक्षित जगहों पर बसाने के लिए मास्टर प्लान लागू किया गया था। 2009 में लागू हुए मास्टर प्लान की मियाद 2021 के अगस्त महीने में ही खत्म हो गई है। केंद्र की मंजूरी के बाद 11 अगस्त 2009 को झरिया के लिए लागू हुए मास्टर प्लान के मुताबिक भूमिगत खदानों में लगी आग को नियंत्रित करने के साथ-साथ 12 साल यानी अगस्त 2021 तक अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए दूसरी जगहों पर आवास बनाकर उन्हें स्थानांतरित कर दिया जाना था, लेकिन अब तक ये दोनों ही लक्ष्य पूरे नहीं हो पाए हैं।
जिस आबादी को दूसरी जगहों पर स्थानांतरित किया जाना था, उनके लिए 2004 का कट ऑफ डेट तय किया गया था। यानी इस वर्ष तक हुए सर्वे के अनुसार जो लोग यहां रह रहे थे, उन्हें दूसरी जगहों पर आवास दिये जाने थे। इस सर्वे में कुल 54 हजार परिवार चिन्हित किये गए थे, लेकिन 12 वर्षों में इनमें से बमुश्किल पांच हजार परिवारों को ही दूसरी जगह बसाया जा सका है। इस बीच 2019 में कराये गए सर्वे में पता चला कि अग्नि और भू-धंसान प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे परिवारों की संख्या बढ़कर 1 लाख 4 हजार हो गई है। इन परिवारों की कुल आबादी तकरबीन पांच लाख के आसपास है।
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अब बीसीसीएल के ताजा नोटिस में जिन इलाकों से आबादी खाली करने को कहा गया है, उनके पुनर्वास और मुआवजा का कोई रोड मैप नहीं बताया गया है। इस बाबत बीसीसीएल के निदेशक (टेक्निकल ऑपरेशन) संजय कुमार सिंह का कहना है कि विस्थापित होने वाले बीसीसीएल कर्मियों को कंपनी के क्वार्टरों में शिफ्ट कराया जाएगा। अवैध तरीके से रहने वाले लोगों को झरिया पुनर्वास के तहत जो कॉलोनियां बनी हैं, वहां बसाया जाएगा। जहां तक इलाके में रहने वाले रैयतों का सवाल है तो उन्हें झरिया पुनर्वास के तहत मुआवजा दिया जाएगा।
इधर, बीसीसीएल के ताजा नोटिस को स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने तुगलकी फरमान करार दिया है। झरिया की कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने कहा है कि बीसीसीएल के सीएमडी पहले यह स्पष्ट करें कि पांच लाख की आबादी को यहां से हटाकर कहां और कैसे बसाएगी? उनके रोजी-रोजगार और पुनर्वास का क्या प्रबंध होगा? रातोंरात ऐसे कोई शहर को कैसे खाली करा लेगा? विधायक ने कहा कि इस तरह का नोटिस जारी कर प्रबंधन दहशत फैला रहा है। यह काम इलाके में खनन का काम करने वाली आउटसोर्सिंग कंपनियों के दबाव पर हो रहा है।
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