कई विपक्षी पार्टियों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव अभी भी ‘जीवित’ है। उन्होंने दावा कि अगले सप्ताह सोमवार को इस मामले में नोटिस दिया जा सकता है।
संसद के किसी भी सदन में महाभियोग का नोटिस दिया जा सकता है लेकिन उसके लिए राज्यसभा के 50 और लोकसभा के 100 सांसदों के हस्ताक्षर की होती है। लोकसभा में विपक्ष की कमजोर स्थिति की वजह से ऐसा लगता है कि इस नोटिस को राज्यसभा में ही दिया जाएगा।
राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू और लोकसभा के स्पीकर के पास यह विशेषाधिकार होता है कि वह इस नोटिस को स्वीकार या खारिज कर सकते हैं। यह लगभग तय है कि इस नोटिस को खारिज कर दिया जाएगा, इसलिए इन विपक्षी दलों की यह योजना है कि वह सदन के अध्यक्ष या अध्यक्षों के ‘प्रशासनिक फैसले’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगा।
अगर नोटिस को स्वीकार कर लिया जाता है, जिसकी संभावना बहुत कम है, तो सदन के अध्यक्ष को सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाई कोर्ट के एक जज और किसी एक प्रसिद्ध न्यायविद् को साथ लेकर नोटिस का अध्ययन करने के लिए एक तीन सदस्यों वाली समिति बनानी होगी। अगर समिति महाभियोग पर अपनी मुहर लगा देती है तो फिर उसकी प्रक्रिया सदन में शुरू करनी होगी। दोनों सदनों में, इस महाभियोग को पास कराने के लिए एक ‘विशेष बहुमत’ की जरूरत होगी जिसमें संसद के दो तिहाई सदस्यों को महाभियोग के पक्ष में मतदान करना होगा।
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सत्ताधारी पार्टी द्वारा चीफ जस्टिस को देशभक्त साबित करने की मुहिम से विपक्ष में नाराजगी है, जिन्होंने 1993 के बॉम्बे धमाकों में याकूब मेमन के मृत्युदंड को बरकरार रखा था और सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को अनिवार्य कर दिया था।
नेशनल हेरल्ड ने इसे लेकर जिन सांसदों से बात की उन्हें लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है और चीफ जस्टिस ने सरकार के प्रति तटस्थता नहीं दिखाकर इसे खुद अपने ऊपर लिया है। उन्होंने चीफ जस्टिस पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता करने का आरोप लगाते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखे। उन पत्रों में जजों ने इस बात की ओर इशारा किया सरकार लगातार न्यायपालिका में हस्तक्षेप कर रही है और चीफ जस्टिस उसे रोक नहीं पा रहे हैं।
हालांकि, संविधान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जज पर तभी महाभियोग चलाया जा सकता है जब उनका गलत व्यवहार या उनकी अक्षमता साबित हो जाए।
वेबसाइट बार एंड बेंच द्वारा हासिल किया गया नोटिस का मसौदा इस ओर इशारा करता है कि प्रसाद एडूकेशनल ट्रस्ट मामले में चीफ जस्टिस की भूमिका महाभियोग का आधार है। सीबीआई ने प्रसाद एडूकेशनल ट्रस्ट को मदद पहुंचाने के आरोप में पिछले साल ओडिशा हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया था। यह एडूकेशनल ट्रस्ट एक मेडिकल कॉलेज चलाता है जिसकी मान्यता को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने रद्द कर दिया था।
सीबीआई की एफआईआर में दर्ज तथ्यों में कहा गया है कि ट्रस्ट द्वारा दायर की गई अपील पर दिए जाने वाले फैसले को प्रभावित करने के लिए किसी सुप्रीम कोर्ट के जज को ‘प्रसाद’ दिया जाना था। लेकिन हाई कोर्ट जज की गिरफ्तारी और सीबीआई के इन दावों के बावजूद चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली उच्चतम अदालत ने उस याचिका को स्वीकार करने से मना कर दिया जिसमें पूरे स्कैंडल की कोर्ट की निगरानी में एक विशेष जांच की मांग की गई थी।
इसके अलावा चीफ जस्टिस उस समय से निशाने पर है जब से सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने जनवरी में असाधारण ढंग से एक प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि लोकतंत्र खतरे में है और सुप्रीम कोर्ट में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है।
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