उत्तराखंड के जोशीमठ में भू धंसाव की वजह से सैकड़ों परिवार बेघर होने के कगार पर है। पूरे शहर में मकानों और ऐतिहासिक स्थलों में बड़ी-बड़ी दरारें आने के बाद लोग दहशत में है। जिन घरों को लोगों ने अपना पूरा जीवन दे दिया, पूरी कमाई लगा दी, अब उस घर से उन्हें बेघर होना पड़ रहा है। इसको लेकर लोगों में काफी नाराजगी है। लोग सरकार पर लगातार निशाना साध रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से लोगों को आज इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
इस बीच इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) की एक रिपोर्ट सामने आई है जो बताती है कि यह आपदा अचानक नहीं आई। पिछले दो साल से जोशीमठ और इसके आसपास के इलाकों में प्रति वर्ष 6.5 सेमी या 2.5 इंच की दर से जमीन धंस रही है। आईआईआरएस ने अध्ययन के लिए सैटेलाइट से मिले क्षेत्र के डेटा का इस्तेमाल किया है।
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इस स्टडी के अनुसार कई इलाके बेहद संवेदनशील हैं। यह स्टडी जुलाई 2020 से मार्च 2022 के बीच सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर की गई है। सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि जोशीमठ और इसके आसपास के इलाके धीरे-धीरे धंस रहे हैं। सैटेलाइट तस्वीरें ये भी बताती हैं कि यह भूधंसाव केवल जोशीमठ तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरी घाटी में फैला हुआ है।
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अभी तक 700 से ज्यादा घरों में दरारें देखी गई हैं और जमीन धंसने की खबरें आ रही हैं। वहीं, 86 घरों को असुरक्षित चिह्नित किया गया है। इसके अलावा, 100 से ज्यादा परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा चुका है।
अधिकारियों के मुताबिक, गांधीनगर में 134 और पालिका मारवाड़ी में 35 घरों में दरारें आ गई हैं। वहीं, लोअर बाजार में 34, सिंहधार में 88, मनोहर बाग में 112, अपर बाजार में 40, सुनील गांव में 64, पारासरी में 55 और रविग्राम में 161 घर भी असुरक्षित जोन में आ गए हैं। बताया जा रहा है कि जोशीमठ में अब तक भूस्खलन से 723 घरों में दरारें आ चुकी हैं।
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नाराज लोगों ने जोशीमठ के धंसाव के लिए NTPC की तपोवन-विष्णुगाड़ 520 मेगावाट जल विद्युत परियोजना की टनल को कारण बताया है। लोगों का आरोप है कि इस टनल से प्राकृतिक जलस्रोत को जमीन के अंदर नुकसान हुआ है, जिससे पूरा पहाड़ धंसने लगा है। हालांकि अब तक एनटीपीसी और राज्य सरकार, दोनों ही इस आरोप को सही नहीं मान रहे हैं।
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