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महामारी से बाल मजदूरी, बाल तस्करी और गुलामी में होगा इजाफा: नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने किया आगाह

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने आगाह किया है कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप दुनियाभर में बाल श्रम, बाल तस्करी और दासता या गुलामी (स्लैवरी) में सबसे निश्चित और पर्याप्त वृद्धि होगी।

फोटो : आईएएनएस
फोटो : आईएएनएस 

कैलाश सत्यार्थी ने आईएएनएस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि कुछ राज्यों में भारत के श्रम कानून कमजोर पड़ने से बाल श्रम में इजाफा देखने को मिलेगा। इसके अलावा देश में स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने से कई बच्चों की तस्करी होने का खतरा है।

ध्यान रहे कि देश भर में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन के दौरान चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन को घरेलू हिंसा और हिंसा से सुरक्षा के लिए लगभग 4,60,000 कॉल प्राप्त हुई हैं। इस संदर्भ में भारत के लिए कितनी गंभीर चिंता है? इस सवाल के जवाब में कैलाश सत्यार्थी ने कहा, "कोविड-19 महामारी से पहले, हम धीरे-धीरे ही सही, लेकिन निश्चित रूप से दुनिया के अधिकांश हिस्सों में बच्चों की रक्षा करने की दिशा में आगे की ओर बढ़ रहे थे। लेकिन कोविड-प्रेरित राष्ट्रव्यापी बंद से पहले बच्चों से संबंधित एसडीजी (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) में स्थिरता आ गई थी और असमानता बढ़ रही थी। भारत कोई अपवाद नहीं रहा। महामारी के कारण मौजूदा सामाजिक असमानताओं और सामाजिक सुरक्षा का अभाव उजागर हो गया है।"

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उन्होंने कहा कि, "कोविड-19 के आगमन ने न केवल प्रगति रोकी है, बल्कि वैश्विक नेताओं की बेहद असमान कोविड-19 प्रतिक्रिया के साथ अब हमें पिछले कुछ दशकों की प्रगति पर वापस पहुंचने में बहुत जोखिम भी है। किसी भी आपदा में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, लेकिन कोविड-19 के साथ प्रभाव एक अभूतपूर्व प्रकृति का रहा है। दुनिया भर में बाल श्रम, बाल तस्करी और गुलामी में निश्चित और पर्याप्त वृद्धि होगी। आज हम जो देख रहे हैं, वह हमारे समय में बच्चों के लिए एक सबसे गंभीर संकट है और अगर हम अब कार्य करने में विफल होते हैं, तो हम एक पूरी पीढ़ी को खोने का जोखिम उठाएंगे।"

इस सवाल पर कि आप 'लॉरेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रन समिट' के जरिए वैश्विक नेताओं को क्या संदेश देना चाहते हैं, जिसमें डब्ल्यूएचओ प्रमुख और दलाई लामा भी मौजूद रहेंगे? कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि, "महामारी प्रकृति की देन है, लेकिन अगर लाखों बच्चे भूखे रहें और लाखों बच्चों को शिक्षा से वंचित कर दिया जाएगा और वह बाल श्रमिक बन जाते हैं तो यह करुणा रहित और असमान प्रतिक्रिया होगी।

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नोबेल पुरस्कार विजेती सत्यार्थी ने कहा कि, "इस वर्ष मई में मैं 88 नोबेल प्रतिष्ठितों के साथ एक संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने में शामिल रहा, जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 की 20 प्रतिशत प्रतिक्रिया को सबसे अधिक 20 प्रतिशत बच्चों और उनके परिवारों को आवंटित किया जाना चाहिए। यह बच्चों के लिए न्यूनतम उचित हिस्सा है। यहां तक कि अगर आप महामारी के पहले कुछ हफ्तों में केवल पांच खरब डॉलर के पैकेज की घोषणा करते हैं, तो उसमें से 20 प्रतिशत यानी एक खरब डॉलर सभी कोविड-19 यूएन अपील को निधि देने के लिए पर्याप्त धन होगा।

लेकिन क्या भारत ने महामारी के दौरान अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कार्य किया है? इस सवाल के जवाब में सत्यार्थी कहते हैं कि, "इस दिशा में प्रयास किए गए हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने महामारी के दौरान अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं। और मैं आपसे कहता हूं कि इस पर आप मेरी प्रतिक्रिया (शब्द) न लें। मैं केवल सबसे पीछे के बच्चों के लिए एक आवाज हूं। मैं आपसे देश में बच्चों द्वारा सामना की जा रही वास्तविकता पर सरकारों की प्रतिक्रियाओं का आकलन करने के लिए कहता हूं।"

उन्होंने कहा कि, "भुखमरी से मरने वाले व सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले बच्चे या अपने माता-पिता के रोजगार के नुकसान के कारण बाल श्रम या फिर यौन शोषण के लिए तस्करी होने वाले बच्चे किसी भी राष्ट्र की महामारी के प्रति मानवीय प्रतिक्रिया के एकमात्र सच्चे जानकार हैं।

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सत्यार्थी ने कहा कि मौजूदा संकट के प्रति मानवीय प्रतिक्रिया ने श्रम कानूनों और उनके अनुपालन को मजबूत किया होगा, ऐसा उनका मानना है, विशेष रूप से वे जो श्रम अधिकारों, कल्याण और सुरक्षा की रक्षा करते हैं। हम एक महामारी के बहाने श्रमिक अधिकारों और संरक्षण के साथ-साथ बाल श्रम के उन्मूलन में दशकों से की गई प्रगति को उलट (रिवर्स) नहीं सकते हैं। उन्होंने कहा कि, "वास्तव में, भारत सरकार को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आपूर्ति श्रृंखलाओं द्वारा भारत में बाल श्रम को रोकने वाले विधानों को लाने के लिए इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए। यह वास्तव में वयस्कों के लिए नौकरियों के निर्माण के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा।

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महामारी के दौरान स्कूलों को खोले जाने के बारे में सत्यार्थी कहते हैं कि यह सरकार को तय करना है। स्कूलों को फिर से खोलने का निर्णय कोई आसान नहीं है, खासकर जब हमारे पास एक तरफ बच्चों के स्वास्थ्य और जीवन का जोखिम है और दूसरी तरफ उनके शिक्षा से वंचित होने का भी जोखिम है। लेकिन उन्होंने आगाह किया कि स्कूल बंद होने से बच्चों की तस्करी का खतरा बढ़ गया है और साथ ही इससे मध्यान्ह भोजन भी बंद हो गया है, जिससे उनके स्वास्थ्य और पोषण पर असर पड़ा है। यह महत्वपूर्ण है कि भारत स्कूलों को फिर से खोलने के लिए एक निश्चित रोडमैप विकसित करे। ऑनलाइन शिक्षा के लिए डिजिटल विभाजन को कम करे और यह सुनिश्चित करे कि सभी बच्चों को जल्द से जल्द स्कूलों में पुन: प्रवेश दिया जाए।

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