आज से ठीक 7 साल पहले इसी समय यानी रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संदेश देते हुए 1000 रुपए और 500 रुपए मूल्य के करेंसी नोटों को अवैध घोषित कर दिया था। एक झटके में देश की 87 फीसदी करेंसी गैरकानूनी कर दी गई थी। उन्होंने दावा किया था कि इससे कालाधान खत्म होगा, आतंक की फंडिंग रुकेगी, देश डिजिटल इकोनॉमी की तरफ जाएगा। अगले कुछ दिन बीजेपी, सरकार और उसकी पूरी मशीनरी इस नोटबंदी के फायदे गिनाने में लगी रही, और इस सबकी अगुवाई खुद पीएम मोदी कर रहे थे। लेकिन पूरा दिन निकल गया, यानी 8 नवंबर 2023 लगभग गुजरने को है, लेकिन न तो प्रधानमंत्री, न सरकार और न ही उनकी पार्टी बीजेपी ने नोटबंदी की वर्षगांठ पर एक शब्द नहीं बोला। एक सन्नाटा छाया हुआ है, उस पार्टी और उस सरकार में जो मामूली से मामूली काम की भी ढिंढोरा पीटते नहीं थकती।
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यहां तक सरकार की हर उपलब्धि पर ढोल पीटने वाले बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय भी खामोश हैं। तो क्या सरकार, पीएम, बीजेपी और आईटी सेल ने अंतत: स्वीकार कर लिया है कि यह एक विनाशकारी कदम था?
न तो कोई विज्ञापन छपा, न इस ऐतिहासिक अवसर को दर्शामने वाले पीएम मोदी की फोटो के साथ बड़े-बड़े होर्डिंग लगे, यहां तक कि ‘भारत आटा’ लांच करने तक को एक उपलब्धि बताने वाले मंत्री भी चुप्पी साधे हुए हैं। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने सही ही कहा है, क्या सरकार इस कदम का शोक मना रही है?
एक और जरूरी बात, नोटबंदी जिस दिन की गई थी, यानी 8 नवंबर 2016 के दिन देश में कुल 17 लाख करोड़ रुपए की नकदी चलन में थी। और नकदी को खत्म कर डिजिटल इकोनॉमी के दावे करने वाले पीएम और सरकार को यह जानकर शायद धक्का लगेगा कि आरीबाई के मुताबिक आज यानी नवंबर 2023 में देश में 33 लाख 78 हजार करोड़ रुपए की नकदी चलन में है। तो क्या सरकार या उसके ढोल यह बताएंगे कि सिर्फ सात साल में ही इस दावे का क्या हुआ और क्यों इतनी नकदी चलन में है?
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अंग्रेजी अखबार द डेक्कन हेरल्ड ने बुधवार को एक एनजीओ, लोकल सर्किल का एक सर्वे छापा है। इसके मुताबिक सर्वे में शामिल देश के 363 जिलों के करीब 44 हजार लोगों में से 76 फीसदी मानते हैं वे जब भी कोई संपत्ति, जमीन या मकान खरीदते हैं तो उन्हें कुछ पैसा नकद में देना ही पड़ता है। इसी तरह 56 फीसदी का कहना है कि उनके मासिक खऱ्चा का एक चौथाई नकद में ही होता है।
वैसे सरकार अभी तक कोई ऐसे आंकड़े नहीं पेश कर पाई है जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शब्दों में इस ‘संगठित लूट और कानून डकैती’ को तार्किक ठहरा सके। डॉ मनमोहन सिंह ने 24 नवंबर 2016 को राज्यसभा में नोटबंदी पर बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया था कि उन्हें नोटबंदी से लोगों के जीवन में आई उथल-पुथल को खत्म करने के लिए व्यवहारिक कदम उठाने चाहिए। डॉ मनमोहन सिंह ने यह भी कहा था कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था गोता खा जाएगी और इसमें 2 फीसदी की एक विशाल गिरावट दर्ज की जाएगी।
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नोटबंदी के बारे में आरटीआई के जरिए हासिल जानकारियों से सामने आया था कि सरकार ने इतने बड़े आर्थिक फैसले के बारे में आरबीआई को चंद घंटे पहले ही बताया था। लेकिन माना जाता है कि कुछ खास लोगों को इस फैसले की जानकारी पहले से ही थी, और नोटबंदी का प्राथमिक मकसद उत्तर प्रदेश में होने वाले 2017 के चुनाव से पहले विपक्ष को आर्थिक तौर पर कमजोर कर देना भी था।
नोटबंदी की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ने उन भारतीयों का सार्वजनिक तौर पर मजाक उड़ाया था कि ‘घर में शादी है, पैसा नहीं है....।’
लोगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं, बैंकों के बाहर लंबी लाइनें लगी थीं, 1000 और 500 रुपए मूल्य का नोट बंद कर 2000 रुपए मूल्य का नोट सामने रख दिया गया था, लाखों खर्च से होने वाले आयोजनों के लिए चंद हजार रुपए देने की अनुमति थी, बहुत से लोगों की लाइनों में लगने से मौत हो गई थी, प्रधानमंत्री ने कहा पूरी वित्तीय व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल अर्थव्यवस्था जरूरी है।
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उन्होंने घड़ियाली आंसू भी बहाए, ऐलान किया, सिर्फ 50 दिन दे दो, पूरा सिस्टम दुरुस्त हो जाएगा, लेकिन सात साल हो गए हैं, सिस्टम दुरुस्त होना तो दूर, पहले से कहीं ज्यादा बिगड़ चुका है। और आज, ऐसा सन्नाटा छाया हुआ है....एक शब्द नहीं फूटा है सत्ता के मुख से।
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