बिहार में राजनीतिक पारा एक बार फिर चढ़ने लगा है। इस बार इसे हवा दी है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने। उन्होंने बयान दिया है कि वे बिहार में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लागू नहीं करेंगे। ध्यान रहे कि एनआरसी और सीएए यानी नागरकिता संशोधन अधिनियम नीतिश कुमार की सरकार में साझीदार बीजेपी का अहम एजेंडा है। ऐन पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले नीतीश कुमार का यह ऐलान बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है क्योंकि बीजेपी ऐलान कर चुकी है कि अगर वह बंगाल में सत्ता में आती है तो वहां सीएए और एनआरसी लागू किया जाएगा।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का बयान यूं ही नहीं आया है, बल्कि वह बीजेपी के रवैये से परेशान हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के हिस्से में काफी कम सीटें आई है और बीजेपी राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। बीजेपी ने भले ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना दिया है लेकिन उसका रवैया बड़े भाई की तरह काफी कड़क है, जिसे लेकर नीतीश कुमार गाहे-बगाहे अपनी तकलीफ का इशारा देते रहे हैं।
हाल ही में बीजेपी ने अरुणाचल में जेडीयू के विधायकों को तोड़ कर अपने साथ मिला लिया है, इससे भी नीतीश कुमार काफी दुखी हैं। बीजेपी के इस कदम से जनता दल यूनाइटेड में काफी हो हल्ला भी हुआ था और पार्टी के लोग ही नीतीश कुमार से सवला कर रहे हैं कि बीजेपी उनकी सहयोगी है या विरोधी।
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शनिवार को भी नीतीश कुमार ने जेडीयू की राज्य परिषद की दो दिवसीय बैठक में बीजेपी के साथ रिश्तों में आई खटास का इशारा किया। उन्होंने कहा कि 'अब तो दोस्त और दुश्मन का पता नहीं चलता।'
नीतीश कुमार ने कहा कि "एनडीए के दलों के बीच सीटों के बंटवारे में हुई देर का खामियाजा भी जेडीयू को भुगतना पड़ा। इसके जेडीयू के उम्मीदवारों को प्रचार के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला और उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।"
उन्होंने कहा कि उन्हें इसका आभास पहले ही हो गया था। फैसलों में देरी से दोस्त और दुश्मन का फर्क करना मुश्किल हो गया। उन्होंने सीधे तौर पर किसी का नाम नहीं लिया। लेकिन उनके बयान से समझा जा रहा है कि उनका निशाना एलजेपी और बीजेपी दोनों की तरफ है।
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