बिहार में कहावत है- ज्यादा काबिल ज्यादा मखता है। मतलब, जो अपनी काबिलियत पर इतराता रहता है, वह खुद ही अपनी परेशानी बढ़ाता है। बिहार के फिर बने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यही हाल है।
विधान परिषद की 12 सीटों पर मनोनयन के लिए उन्हें चुनाव से पहले ही नाम राज्यपाल के पास भेजने थे। उस वक्त यह काम करते, तो उनकी पसंद पर बीजेपी सवाल नहीं करती क्योंकि कमजोर थी। लेकिन तब नीतीश को अति-आत्मविश्वास था कि चुनाव में उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। इसलिए, तब मनोनयन की फाइल सीएम आवास से 100 कदम दूर राजभवन नहीं गई। अब नई सरकार में बीजेपी ताकतवर है तो यह दूरी भारी पड़ रही है। निर्णय ही नहीं हो पा रहा। होगा भी तो नीतीश पहले जैसी मन की तो नहीं ही कर सकेंगे।
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10 नवंबर को गद्दी संभालने के बाद एक महीना गुजर गया लेकिन नीतीश तो क्या, उनकी सरकार की सक्रियता भी दिखाई नहीं दे रही है। नीतीश कहीं निकलना ही नहीं चाह रहे, दिखना भी नहीं चाह रहे। सीटों में पिछड़ने से ऐसे सकपकाए हुए हैं कि पहले अपनी पार्टी को संभालने के लिए राजनीतिक दुश्मन उपेंद्र कुशवाहा से लेकर पुराने मित्र नरेंद्र सिंह तक से सहज मिल रहे हैं। कुशवाहा समाज से इकलौते मंत्री डॉ. मेवालाल चैधरी को भ्रष्टाचार के आरोप में बाहर का रास्ता दिखाने के बाद उपेंद्र कुशवाहा को भी नीतीश में संभावना दिख रही है और मुख्यमंत्री को भी ‘हारे को हरिनाम’ वही नजर आ रहे हैं।
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मंत्रिमंडल विस्तार भी इसी वजह से टलता ही जा रहा है। तैयारी तो थी। एक महिला विधायक को तो मंत्री के रूप में फिर मौका मिलने की बात कहकर अभिनंदन किए जाने की तस्वीरें भी सामने आ गईं। लेकिन, मामला फंस गया। फंस इसलिए गया है कि जीतनराम मांझी ने अपने बेटे को मंत्री बनाया है। उनके लिए विधान परिषद की 12 में से एकसीट पक्की है।
वीआईपी के मुकेश सहनी विधानसभा चुनाव हारकर भी मंत्री बने हैं। इसलिए उनके लिए भी एक सीट पक्की है। इसी तरह जेडीयू कोटे से मंत्री बने अशोक चौधरी विधान परिषद ही जाते रहे हैं। मतलब, जेडीयू-हम को मिलाकर पहले ही दो सीटें बुक हैं और बीजेपी कोटे से वीआईपी की एक। बची नौ सीटों में बीजेपी 6 चाह रही है जबकि नीतीश इस पर मान नहीं रहे।
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बताया जा रहा है कि नीतीश जेडीयू में कुछ लोगों को शामिल कराना चाह रहे। उनके लिए विधान परिषद की सीटें ही पहला उपहार होंगी और चेहरा दिखाने के लिए कुछ जातियों के मंत्री भी इसी में से बनाए जाएंगे। जैसे, मुसलमान चेहरा भी जेडीयू को चाहिए तो परिषद और मंत्री की एकसीट तो नीतीश इसी के लिए सुरक्षित रखना चाह रहे। इसी तरह कुशवाहा समेत अन्य जातीय समीकरणों को साधने का भी नीतीश-निश्चय बिहार की डबल इंजन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में देर करा रहा है।
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