केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार दोबारा कितने जुगाड़ से वापस आई, इस पर बीजेपी के दावे को ही मानें तो आयुष्मान और उज्ज्वला जैसी योजनाओं ने उसे जीत दिलाई। और, बीजेपी के इस ‘रामबाण’ को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से चुनौती मिल रही है।
लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले तक बिहार सरकार ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना- आयुष्मान भारत, पर पूरी ताकत झोंकी भी थी। बीजेपी ने अपने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को इसका महत्व समझाया था, लेकिन उस जीत के बाद बिहार सरकार ने इस पर कभी झांका ही नहीं। नतीजा, प्राप्त बजट आवंटन के चैथाई का उपयोगिता प्रमाण लेकर भी बिहार सरकार समय पर केंद्र नहीं पहुंची और प्रावधानों के कारण मोदी सरकार को संशोधित बजट में बिहार का आवंटन शून्य करना पड़ा।
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बात इतनी ही नहीं, एक तरफ अब तक लक्ष्य के 21 फीसदी लाभार्थी ही इस योजना में कवर हो सके हैं और दूसरी तरफ सारे प्रमाण पत्र लेकर नाम जुड़वाने के लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं। मधुबनी के अंधराठाढ़ी के हृदय नारायण झा प्राइवेट कंपनी में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी हैं। बीमार रह रही पत्नी और पढ़ाई कर रहे दो बच्चों को लेकर वह पटना में किसी तरह जीवन चला रहे हैं। आयुष्मान योजना के बारे में जब तक उन्हें पता चला, मधुबनी में उनके गांव की सूची कथित तौर पर बन गई थी।
हृदय नारायण कहते हैंः “दू साल से कोय रास्ता नहीं छोड़े। बीजेपी के कुछ नेताओं को जानते थे, उनसे भी पैरवी कराए, लेकिन नाम नहीं जुड़ा। जहां-जहां बोला गया, हर जगह गए लेकिन सब कह रहे कि अभी नाम नहीं जुड़ रहा। टोल फ्री पर भी बात किया तो यही बताया कि नाम नहीं जुड़ा है। अरे भइया, नाम नहीं जुड़ने का तो पते है लेकिन कैसे जुड़ेगा... यह तो बताइए। बीच में पत्नी बहुत बीमार थी। कई जगह रोए-गाए, लेकिन कुछ नै हुआ। अभियो कहां पता चल रहा है।” हृदय नारायण अकेले नहीं, ऐसे बहुत सारे लोग सिविल सर्जन से लेकर सचिवालय तक चक्कर लगा रहे हैं।
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दूसरी तरफ केंद्र के संशोधित बजट में शून्य आवंटन के बाद बिहार सरकार ने औपचारिक तौर पर घोषणा की कि बिहार स्वास्थ्य सुरक्षा समिति हर दिन 30-35 हजार लोगों को आयुष्मान योजना का गोल्डन कार्ड उपलब्ध करवा रहा है। वैसे, सरकार के इस औपचारिक बयान के बावजूद वास्तविक स्थिति यह है कि फरवरी बीतने पर भी 21 फीसदी से कुछ ज्यादा लाभार्थी परिवार ही इस योजना में कवर किए जा सके हैं।
अब तक बिहार में करीब 47 लाख परिवारों को ही यह कार्ड मिला है, जबकि लक्ष्य 1.08 करोड़ लाभार्थी परिवारों का है। ध्यान रहे कि इसमें हृदय नारायण झा जैसे लोगों का परिवार नहीं है, क्योंकि सरकार ने लोकसभा चुनाव के पहले जिस गति में लोगों को चिह्नित किया था, उसमें ऐसे लाखों परिवार चिह्नित ही नहीं किए गए। यानी, वे सरकार के लक्ष्य वाली सूची में ही नहीं हैं।
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हर स्तर पर हेरफेर-लापरवाही
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में केंद्र और राज्य सरकार की हिस्सेदारी है। पिछले आवंटन का 75 फीसदी या अधिक खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजने पर ही अगले वित्त वर्ष के लिए राशि आवंटन का प्रावधान है। बिहार सरकार ने यह उपयोगिता प्रमाण पत्र ही नहीं भेजा जिसके कारण डबल इंजन की सरकार को अपनी ही केंद्र सरकार से आगामी वित्त वर्ष के लिए आवंटन नहीं हासिल हुआ।
दरअसल वित्त वर्ष 2019-20 में बिहार सरकार को 6,400 करोड़ रुपये इस योजना के तहत आवंटित किए गए थे। बिहार के परफॉर्मेंस को देखकर संशोधित बजट में घटाकर इसे आधा, यानी 3,200 करोड़ कर दिया गया। यह भी पूरे वित्त वर्ष में नहीं खर्च हो सका। बिहार सरकार के रिकॉर्ड में ही जनवरी तक करीब 1,700 करोड़ खर्च हुए और मार्च तक उसे 1,500 करोड़ का असंभव खर्च दिखाना है। इतनी बड़ी राशि आवंटन के बावजूद पड़े रहने के कारण ही वित्त वर्ष 2020-21 के लिए केंद्र सरकार ने इसे बजट में नई राशि आवंटन से मुक्त रखा।
यह हालत भी तब है जबकि योजना से जुड़े सरकारी अस्पताल फंड मिलने में देरी का रोना लेकर अक्सर विभिन्न मंचों से प्रदेश के भाजपाई स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के पास फरियाद लगाते रहे हैं। कई निजी अस्पताल आयुष्मान योजना में जुड़ने के बावजूद फंड मिलने में हो रही परेशानी को देखते हुए मरीज के आने पर यह कहकर पिंड छुड़ाने की कोशिश करते हैं कि उनके यहां तो कोई बेड खाली ही नहीं है।
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