बिहार में कोरोना संक्रमण के मामले बढने के बाद भले ही राज्यभर में लॉकडाउन लगा दिया गया हो, लेकिन कोरोना की जांच की रफ्तार धीमी पड़ गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हालांकि लगातार जांच तेज करने की बात कर रहे हैं। इधर, विपक्ष भी अब इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साध रहा है।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आंकडों पर गौर करें तो 25 अप्रैल के बाद चार मई तक सिर्फ तीन दिन जांच का आंकडा एक लाख के पार गया है। 25 अप्रैल को जहां राज्यभर में 1 लाख 491 लोगों की कोरोना जांच की गई थी, वहीं 26 अप्रैल को मात्र 80,461 नमूनों की ही जांच हुई। इसके बाद 27 और 28 अप्रैल को जांच की रफ्तार हल्की बढ़ी और एक लाख से अधिक नमूनों की जांच की गई। लेकिन उसके बाद मंगलवार तक किसी भी दिन यह आंकडा एक लाख को नहीं छू सका है।
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विभाग के आंकडों के मुताबिक, 29 अप्रैल को 97,972 नमूनों की जांच हो सकी थी, तो 30 अप्रैल को 98,169 लोगों के नमूनों की जांच हुई। इसी तरह 1 मई को 95,686 नमूनों की जांच हुई, जबकि 2 मई को 89 हजार से ज्यादा जांच की गई। 3 मई को मात्र 72,658 लोगों की ही जांच हो सकी। मंगलवार को राज्य में 94 हजार से अधिक लोगों की कोरोना जांच की गई। सूत्रों का कहना है कि कई जगहों पर एंटीजन किट नहीं होने के कारण जांच की रफ्तार कम हुई है।
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इस बीच, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जांच की गति धीमी होने पर सरकार को घेरा है। विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार को अभी आबादी और संक्रमण दर के हिसाब से न्यूनतम 4 लाख जांच प्रतिदिन करने चाहिए लेकिन नीतीश कुमार इसको दिन-प्रतिदिन घटाते जा रहे है।
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उन्होंने कहा, 'हर जिले में आरटीपीसीआर जांच नाममात्र की हो रही है, जबकि कोविड की यही जांच गोल्ड स्टैंडर्ड है। जांच घटाने के बावजूद पॉजिटिविटी रेट 15 प्रतिशत से ऊपर है।' उन्होंने आगे कहा, 'विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि मुख्यमंत्री ने सभी जिलाधिकारी और मातहत अधिकारियों को पॉजिटिव रिपोर्ट कम से कम 4-5 दिन विलंबित करने का निर्देश दिया है, जिससे संक्रमितों की संख्या कम दिखाई जा सके। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में आंकड़ो से 10 गुना अधिक संक्रमण और मौतें हो रही है।'
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