मेहंदी उतरने के पहले ही हत्या, मासूम बच्ची के साथ महिला की हत्या, गर्भवती महिला को जलाकर मार डाला- दहेज हत्या की ऐसी खबरें बिहार के अखबारों में कहीं अंदर के पन्ने में कोने में छपती हैं। इसकी वजह है- विज्ञापन रुकने के डर से लगी अघोषित सेंसरशिप।
अरसे बाद जुलाई में एक खबर पहले पन्ने पर आई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में पांच महीने की गर्भवती महिला को दहेज लोभियों ने 10-12 टुकड़ों में काट डाला था। झोले में शव के टुकड़े बटोरकर परिजनों की फरियाद लगाने की खबर वायरल हुई। अखबारों में छपी। खूब बवाल मचा। महिला का मायका पटना में है और परिजन पुलिस से लेकर नेताओं तक के चक्कर लगाकर थक गए। मगर उसके दहेज लोभी पति को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर सकी है।
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यह नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ के इकबाल का नमूना तो है ही, दहेज प्रथा के खात्मे पर उनके 2017 में लिए ‘निश्चय’ की हकीकत भी सामने ला रहा है। नीतीश ने 2 अक्टूबर, 2017 को दहेज प्रथा के खात्मे का अभियान छेड़ा था। उन्होंने इसे शराबबंदी से भी बड़ा अभियान कहा था। उन्होंने दावा किया था कि दहेज लेने-देने वाले, बाल विवाह करने-कराने वाले और दहेज के लिए महिला को प्रताड़ित करने वाले अब बख्शे नहीं जाएंगे। लेकिन सारे दावे हवा में रह गए।
2020 के अपराध पर आधारित नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा जारी आंकड़े बता रहे कि दहेज हत्या के मामले में 28 राज्यों की सूची में बिहार देश में दूसरे स्थान पर है और 19 बड़े शहरों में पटना का नंबर भी इसमें दूसरा है। यहां 1,046 दहेज हत्याएं हुई हैं। वैसे, जानकारी के लिए कि 2,274 हत्याओं के साथ पहले नंबर पर योगी आदित्यनाथ-शासित उत्तर प्रदेश है। केस दर्ज करने में आनाकानी या प्रताड़ना के बावजूद अमूमन सुलह का रास्ता दिखाने के कारण दहेज प्रताड़ना के मामले में बिहार तीसरे नंबर का राज्य है। झारखंड पहले और कर्नाटक दूसरे नंबर पर है।
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पुलिस से गुहार लगाकर थक-हार चुके दहेज पीड़िता परिवार के एक व्यक्ति ने कहा भी कि जैसे शराबबंदी के बावजूद शराब हर जगह हर समय खुलेआम उपलब्ध है, वही हाल दहेज लेने-देने और दहेज के नाम पर उत्पीड़न-हत्या करने वालों का है। दोनों ही मामलों में पुलिस कुछ नहीं करती।
सोशल एक्टिविस्ट रीना कहती हैं कि मुख्यमंत्री को अपना कहा सच करने के लिए सबसे पहले पुलिसिंग पर ध्यान देना चाहिए था। लेकिन दहेज हत्या तक को लेकर पुलिस पूरी तरह से संवेदनहीन है। किसी स्तर पर सुनवाई नहीं होती। इस साल जनवरी में जनता दल (यूनाइटेड) के एक नेता की बेटी की दहेज हत्या के केस में 86 दिनों बाद चार्जशीट दाखिल हुई। वह भी तब जब उसके मीडियाकर्मी भाई ने पुलिस-नेताओं के चक्कर से फायदा नहीं होते देख मीडिया का ही सहारा लिया। हर मामले में कहां इतना सहारा-संयोग मिलता है? देखिए, 2016 में शादी के बाद 2019 में नालंदा के ही हरनौत की जूली को ससुरालियों ने मार डाला था। 2021 में भी पुलिस ने इस केस के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया। ज्यादातर ऐसे ही केस हैं। कैसे कोई डरेगा दहेज प्रताड़ना या हत्या से?’
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