पिछले कुछ दिनों से पंजाब नेशनल बैंक के होम लोन विभाग का एक विज्ञापन टीवी पर देखने को मिला, जिसमें कुछ चिम्पैंजी पार्टी कर रहे हैं। तभी एक दहाड़ता हुआ भालू प्रकट होता है और उन्हें रेंट एग्रीमेंट की शर्तें दिखाते हुए चेतावनी देता है।
देश की सत्ता के गलियारों में भी यही चर्चा आम है कि आखिर पंजाब नेशनल बैंक ने ऐसी ही चेतावनी म्यूजिक डायरेक्टर बनने की ख्वाहिश रखने वाले डायमंड मर्चेंट उस नीरव मोदी को भी क्यों नहीं दी, जिसने देखते-देखते पीएनबी को 11,500 करोड़ का चूना लगा दिया।
उधर मोदी, अपने वकीलों के साथ हांगकांग में राय-मशविरा करने के बाद सुकून से दुबई के जे एल टॉवर्स में अपने अपार्टमेंट में आराम कर रहा है। उसने साफ कह दिया है कि उसने पीएनबी से 11,500 करोड़ लिए ही नहीं।
उसने आक्रामक रुख अपनाते हुए पीएनबी को जो चिट्ठी लिखी है, उसमें साफ कह दिया है कि उस पर तो महज 5000 करोड़ के आसपास देनदारी है। उसने यह संकेत भी दिए हैं कि न तो वह और न ही उसका परिवार भारत लौटने वाला है। उसका भारतीय पासपोर्ट सस्पेंड होने का भी कोई गम नहीं है, क्योंकि पिछले साल ही उसने बेल्जियम पासपोर्ट हासिल किया था। दुनिया का सबसे बड़ा हीरा बाजार एंट्वेर्प उसका अब उसका सुरक्षित ठिकाना है, जहां इन दिनों यूरोपीय लोंगों से ज्यादा भारतीय कारोबारी नजर आते हैं।
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मोदी ने यहां तक कह दिया है कि, पीएनबी के एनपीए यानी नॉन पर्फार्मिंग एसेट्स उस 11,500 करोड़ से कहीं ज्यादा हैं, जिसके घोटाले का आरोप उस पर लगा है। वह सीधे तौर पर कह रहा है कि अगर पीएनबी को 11,500 करोड़ का और नुकसान हो गया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा, और सरकार तो है ही बैंक बचाने के लिए।
जब इस घोटाले की बात सार्वजनिक हुई तो, मोदी एकदम सन्नाटे में चला गया। बिना किसी गारंटी और बिना किसी संपत्ति को गिरवी रखे हजारों करोड़ के एलओयू हासिल करने वाला नीरव मोदी अब लगता है जाग उठा है। उसने सबसे पहले ट्वीट पर वही लिखा जो हर आरोपी लिखता है, “आखिर मैं ही क्यों?” लेकिन बाद में उसने यह ट्वीट डिलीट कर दिया था।
हद तो यह है कि सारे टीवी न्यूज चैनलों ने भी इस घोटाले को आर्थिक घोटाला मानने के बजाय राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा बना रखा है। विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि अब मोदी ने अपना साजो-सामान समेटना शुरु कर दिया है। उसने अपने वकीलों से सलाह-मशविरा किया है कि वह आज की तारीख में कितना पैसा जुटा सकता है।
मोदी की कुल परिसंपत्तियों की बात करें तो न्यूयॉर्क, लंदन, बीजिंग, लास वेगास, होनूलुलू, मकाऊ, हांगकांग और सिंगापुर में उसके 14 अंतरराष्ट्रीय स्टोर हैं। मुंबई के पॉश वर्ली इलाके में सी-फेसिंग बिल्डिंग समुद्र महल में उसके छह फ्लैट हैं, दक्षिण मुंबई के पॉश पेड्डर रोड पर ग्रोसवेनर हाउस में एक फ्लैट है, ऐतिहासिक काला घोड़ा के रिद्म हाउस में स्टोर है और दुबई की लग्जरी इमारत अल शेरा टॉवर में एक फ्लैट है। पता चला है कि मोदी को कीमती पेंटिंग जमा करने का भी शौक है। उसने इन कीमती पेंटिंग की कीमत का भी आंकलन कराया है। उसके कलेक्शन में फ्रांसिस सूज़ा, अमृता शेरगिल, भारती खेर, वी एस गाइतोंडे, अकबर पदमसी और एम एफ हुसैन की शानदार पेंटिंग्स हैं।
एक तरफ जहां वकीलों की फौज नीरव मोदी को इस जंजाल से निकालने की जुगत भिड़ाने में लगे हैं, मुंबई, एंट्वेर्प और दुबई के हीरा कारोबारियों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि आखिर पंजाब नेशनल बैंक को यह समझने में इतनी देर कैसे लगी कि नीरव मोदी और उसका मामा मेहुल चोकसी तो एक तरह से दिवालिया हो चुके थे।
सूरत में पंजाब नेशनल बैंक की ब्रांच के बाहर हीरा कारोबारियों ने इस बात को लेकर विरोध प्रदर्शन किया कि अगर वे अपने कर्ज की किश्तें समय से चुका रहे हैं तो उन्हें परेशान न किया जाए। इन्हीं कारोबारियों में एक सज्जन से दिखने वाले डायमंड ट्रेडर चंदर भाई सूता का कहना है कि, “आखिर लगातार उसे एलओयू कैसे मिल रहे थे?”
वैसे अगर मोदी पर नहीं, तो चोकसी पर तो निश्चित रूप से दबाव बन रहा था। वही चोकसी जिसे एक जमाने में एशिया का सबसे बड़ा डायमंड मर्चेंट माना जाता था। महीनों पहले भावनगर के एक ज्वैलर दिग्विजय जडेजा ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि चोकसी को घोटालेबाज घोषित किया जाए, और उसके विदेश जाने पर रोक लगाई जाए। अपने शपथपत्र में जडेजा ने साफ कहा था कि चोकसी पर भारी-भारी कर्ज हैं और वह भारत से भागकर दुबई जा सकता है। दुबई के बुर्ज खलीफा में चोकसी का अपना अपार्टमेंट है। जडेजा ने जुलाई 2016 में कोर्ट में यह चेताया था कि चोकसी पर 9000 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है और वह अपने परिवार के साथ विदेश में जमने की कोशिश कर रहा है। जडेजा का कहना है कि, “काश कोर्ट ने उसकी बात सुन ली होती और उसका पासपोर्ट जब्त कर दिया होता।” जडेजा का केस अब सुप्रीम कोर्ट में है।
अदालतों में केस दायर होने के बावजूद न तो मोदी पर कोई असर पड़ा और न ही चोकसी पर। दोनों ही रसूख वाले थे, जेम्स एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल में प्रभावशाली हैसियत वाले दोनों पर अदालती मामलों का कोई असर नहीं पड़ा। इतना ही नहीं अदालत में मामला लंबित होने के बावजूद चोकसी अकसर दिल्ली जाकर वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के अफसरों और मंत्रियों से मिलता रहा। हीरा बाजार की जानकारी रखने वाले एक शख्स का कहना है कि “दिसंबर 2017 तक चोकसी दिल्ली में अफसरों, मंत्रियों और सत्ता के गलियारों में टहलकदमी वाले लोगों से मिलता रहा।”
मोदी और चोकसी दोनों का ही एलओयू वाला रास्ता बेहद शानदार और अनोखा था। और वैसे भी बहुत से लोगों को धोखाधड़ी के इस आसानी से उपलब्ध हथियार का पता नहीं था। मोटे तौर पर इसे फर्जीवाड़े वाली चिटफंड स्कीम कहा जा सकता है।
नीरव मोदी की ख्वाहिश संगीतकार बनने की थी। वह जुबिन मेहता की तरह म्यूजिक कंपोज़र और कंडक्टर बनना चाहता था। लेकिन मामा चोकसी ने उसे हीरों के कारोबार में झोंक दिया। चोकसी को भरोसा था कि मोदी हीरा है और वक्त रहते तराश लिया गया तो चमकेगा। इस तरह मोदी ने बाश और बीथोवेन का साथ छोड़ा और हीरे तराशने और तलाशने के काम में लग गया। शुरुआती दिनों में उसने अपने ब्रांड का नाम ‘लव ऑन बॉडी’ रखा। उसके कारीगर हीरों को एक धातु के धागे से ऐसे बांधते थे कि वे किसी को नजर नहीं आते थे। देखने में ऐसा लगता था मानो हीरों को जिस्म में पैवस्त कर दिया गया हो।
लेकिन, हीरों के कारोबार से जुड़े लोगों और खरीदारों को मोदी के जगमगाते शोरूम आकर्षित नहीं कर पाए। उनका कहना था कि मोदी के आभूषण जरूरत और लागत से कहीं ज्यादा महंगे होते थे और उनकी कीमत बढ़ा-चढ़ाकर रखी जाती थी।
यही कारण है कि मीडिया भले ही यह कहते न थकता हो कि अब तक मोदी और चोकसी के ठिकानों से 5000 करोड़ से ज्यादा का माल जब्त हो चुका है, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के अफसरों को इसमें शक है कि क्या वास्तव में जब्त माल की कीमत 5000 करोड़ है या सिर्फ एक-डेढ़ करोड़ रुपए।
कारोबारी प्रतिद्वंदी क्या कहते हैं, इससे नीरव और चोकसी को कोई फर्क नही पड़ा और उन्होंने इसकी चिंता भी नहीं की। उन्हें तो बस इतना पता था कि उन्हें ढेर सारा पैसा चाहिए, और हीरा कारोबार के लिए मार्केटिंग सबसे बड़ा हथियार है।
और यह ढेर सारा पैसा दोनों ने कैसे हासिल किया, अब पूरी दुनिया को पता लग चुका है। और जो सच सामने नहीं आया है, वह यह है कि बिना किसी गारंटी या कुछ गिरवी रखे बैंक ने कैसे उसे हजारों करोड़ रुपए दे दिए। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण कहते हैं कि, “यही वह राज है जिसका मोदी ने फायदा उठाया।”
बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए आरोप लगा रहा है कि यह सब 2011 से चल रहा था। इसके लिए सत्तारुढ़ बीजेपी ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को मैदान में उतारा। सरकार और बीजेपी को पता था कि पूर्व वाणिज्य मंत्री सीतारमण इस पूरे मामले को अच्छे से हैंडिल करेंगी क्योंकि उनके मंत्रालय की जिम्मेदारी में हारी कारोबार को बढ़ाने का काम भी शामिल था और उनका मंत्रालय लगभग हर महीने हीरा कारोबारियों से मिलता था।
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लेकिन पीएनबी की तरफ से कोई साफ जवाब नहीं आ रहा है। पीएनबी के ऑडिटर्स ने न्यूज चैनलों को बताया कि वे तो इस घोटाले की चेतावनी लंबे समय से दे रहे थे। उन्होंने विनसम डायमंड्स और फॉरएवर डायमंड्स के मालिक जतिन मेहता का हवाला भी दिया, जिसने देश का दूसरा सबसे बड़ा कार्पोरेट कर्ज नहीं चुकाया है। जतिन मेहता पर बैंकों का 6,800 करोड़ रुपया बकाया है, जो कि किंगफिशर वाले विजय माल्या के 9,000 करोड़ रुपए के कर्ज के बाद दूसरा सबसे बड़ा कर्ज है।
लेकिन, यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह खुलासे करने के वाले ऑडिटर्स इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि घोटाला भांपने के बावजूद वे जतिन मेहता की कंपनियों को दिए जाने वाले कर्ज को लेकर पॉजिटिव फीडबैक क्यों देते रहे। क्यों आखिर उसकी कंपनियों को हमेशा पॉजिटिव और प्रोफेशनल बताया जाता रहा?
जतिन मेहता के कर्ज का क्या हुआ, किसी ऑडिटर को नहीं पता है।
जतिन मेहता मामले में शारजाह की अदालत के फैसले से जतिन मेहता की यह दलील मजबूत हुई है कि आखिर क्यों वह समय से भुगतान नहीं कर पाया। कभी जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के सबसे युवा अध्यक्ष रहे जतिन मेहता की दलील थी कि चूंकि उसके एक ग्राहक को सोने चांदी और विदेशी मुद्रा के कारोबार में अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था, और उसकी देनदारी नहीं मिली, इसलिए वह भी बैंक का पैसा नहीं लौटा पाया।
जांच एजेंसियों का कहना था कि मेहता ने जानबूझकर भारतीय बैंकों का पैसा नहीं लौटाया और अपने खाते में जमा रकम को टैक्स हैवन देशों में भेज दिया। लेकिन शारजाह कोर्ट के फैसले से सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय दोनों पर सवाल उठते हैं। इस फैसले की कॉपी बीएसई की वेबसाइट पर उपलब्ध है। शारजाह फेडरल कोर्ट ने ईडी और सीबीआई के आरोपों की जांच के लिए जो एक्सपर्ट कमेटी बनाई थी, उसका कहना था कि मेहता का दावा सही है और कानूनी है। कमेटी का यह निष्कर्ष ईडी की तरफ से जारी आरोपों की जांच के बाद सामने आया थ।
लेकिन पीएनबी मामले पर ऑडिटर्स जिन तर्कों का सहारा ले रहे हैं, उनमें जतिन मेहता के केस पर शारजाह कोर्ट के फैसले को नजरंदाज कर रहे हैं।
कहा जाता है कि मोदी ने अपने करीबी दोस्तों से उसके लिए प्रार्थना करने की अपील की है। उसे चिंता है कि घोटाला सामने आने के बाद पीएनबी को हुए नुकसान और उसकी शेयर कीमतों में गिरावट का उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
लोगों का कहना है कि मोदी की तरह चोकसी भी धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है। सुना है कि उसने भी अपने मित्रों से कहा है कि उसकी सलामती के लिए भगवान हनुमान के मंदिर में पूजा करें। सूत्र बताते हैं कि चोकसी के एक गुरु होते थे, स्वामी प्रेमश्री महाराज। उनका 2016 में देहांत हो गया। चोकसी अकसर उनसे अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर बात किया करता था और उससे उबरने के उपाय पूछता था।
लेकिन कोई दुआ काम नहीं आई, और मामा-भांजे महाघोटाले में फंस गए। यह भी सामने आया कि रिश्वत तो सभी घोटालेबाज देते हैं, लेकिन हीरों का कारोबार करने वाले घोटालेबाज जैसी रिश्वत देते हैं, उसका तो कोई मुकाबला कर ही नहीं सकता।
आप सबको याद होगा कि सूरत के एक हीरा व्यापारी ने दीवाली पर अपने सभी कर्मचारियों को महंगारी कारें तोहफे में दी थीं, और ये देशभर में सुर्खियां बनी थीं। लेकिन उसपर भी एक निजी बैंक का 4000 करोड़ रूपया बकाया है।
प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण पूछते हैं, “यह साफ हो चुका है कि बैंक ही सबसे ज्यादा घोटाले करते हैं।” उनका सवाल है कि यह सबको पता है कि पालनपुरी जैन समुदाय ने नीरव मोदी और मेहुल चोकसी को कारोबार के लिए पैसा कर्ज देना बंद कर दिया था, तो फिर बैंक इन दोनों को पैसे क्यों और कैसे देते रहे। मोदी और चोकसी दोनों ही पालनपुरी जैन समुदाय से आते हैं, और यह समुदाय कारोबारियों को पैसा कर्ज देता रहा है।
लेकिन सबसे रोचक तथ्य यह है कि अगर नीरव मोदी का भाई निशाल मोदी पीएनबी अधिकारियों से बहसबाजी नहीं करता, तो शायद यह घोटाला सामने आता ही नहीं। निशाल मोदी का जन्म बेल्जियम में ही हुआ और वह वहीं का नागरिक है। उसने मुंबई में पीएनबी ब्रांच में एलओयू मांगा था, और जब बैंक ने इस पर 100 फीसदी गारंटी की मांग की तो उसने कहा कि उसका परिवार और कंपनियां तो बिना किसी गारंटी के वर्षों से एलओयू लेते रहे हैं। इस पर जब बैंक ने रिकॉर्ड का जांच की तो खतरे की घंटी बजी, और इसके बाद ही घोटाला उजागर हुआ।
इस घटना से मोदी घबरा गया। उसे याद आ गया कि किस तरह 2015 में डीआरआई (राजस्व सतर्कता निदेशालय) ने उससे पूछताछ की थी। यह वही समय था जब उसे फोर्ब्स इंडिया की सूची में 100 सबसे अमीर लोगों की सूची में शामिल किया गया था। उस समय उसकी कुल हैसियत करीब 1.53 अरब डॉलर आंकी गई थी। डीआरआई ने उससे इम्पोर्टेड हीरों को घरेलू बाजार में खपाने के सिलसिले में पूछताछ की थी। उस पर शक था कि वह सस्ते हीरे लाकर उन्हें महंगे दामों पर बेच रहा है।
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डीआरआई के एक रिटायर्ड अधिकारी का कहना है कि जब नीरव मोदी को पूछताछ के लिए बुलाया गया था, तो वह एकदम स्टाइल में आया था। वह रॉल्स रॉयस कार से डीआरआई दफ्तर पहुंचा था, हाथ में एवियन पानी की बोतल, स्प्राउट्स और ग्रीन टी लेकर आया था। नीरव मोदी ने मुकदमेबाजी में पड़ने से बचने का सीधा तरीकार निकाला। उसने बहस किए बिना कस्टम एक्ट की धारा 28(5) के तहत जुर्म स्वीकारा और 15 फीसदी जुर्माने के तौर पर 48 करोड़ रुपए भरे और निकल गया।
फिलहाल वह फंसा हुआ है, लेकिन बेल्जियम और हीरा कारोबार के दुनिया भर में फैले कारोबारी जानते हैं कि वह इस संकट से निकल आएगा। मोदी का जलवा प्रभाव भारत के साथ ही बेल्जियम में भी है। मोदी के लोग शानदार कपड़े पहनते हैं, कीमती हीरों की नुमाइश करते हैं। बेल्जियम के प्रभावशाली लोगों और खासतौर से कभी हीरा कारोबार में वर्चस्व रखने वाले यहूदी समाज को वह शानदार पार्टियां देता है।
लोग कहते हैं कि यूरोपीय कॉलोनी भले ही हो बेल्जियम और उसका छोटा सा शहर एंट्वेर्प, लेकिन अब वहां भारतीयों की तूती बोलती है।
लेकिन पीएनबी महाघोटाला सामने आने के बाद भी ऐसा ही रहेगा?
(शांतनू गुहा रे की किताब, ‘डायमंड्स: द इंडिया स्टोरी’ इसी साल हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित होगी)
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