सितंबर माह की 24 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि, “आज़ादी के बाद से 2014 तक 67 वर्षं में देश में कुल 65 एयरपोर्ट बने। यानी मोटे तौर पर हर साल एक एयरपोर्ट, जबकि बीते 4 साल में हर साल औसतन 9 एयरपोर्ट बनाए गए।” प्रधानमंत्री ने यह बात सिक्किम के पाकयोंग एयरपोर्ट के उद्घाटन के मौके पर कही थी। हकीकत तो यह है कि 2014 से 2018 के बीच सिर्फ 7 हवाई अड्डे ही ऑपरेशनल हो सके।
अभी पिछले महीने 2 नवंबर, 2018 को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया, “आधार और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के चलते ₹90,000 करोड़ सालाना की बचत हुई। ₹90,000 करोड़ रुपए का मतलब है कि आयुष्मान भारत जैसी 4 योजनाएं लागू की जा सकती हैं।”
लेकिन, वित्त मंत्री का दावा झूठा ही साबित हुआ क्योंकि भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि ₹90,000 करोड़ मार्च 2018 तक कुल बचत, न कि हर साल हुई बचत।
आईआईएम अहमदाबाद में अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा ने दिसंबर 2017 में इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में लिखा था कि, “बचत पर सरकार के दावे आंकड़ों की गहराई से जांच में खरे नहीं उतरते और जिसे बचत बताया जा रहा है, वह दरअसल कानूनी तौर पर लोगों को मिले अधिकार ने वंचित करना है।”
इसी साल फरवरी की 19 तारीख को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार की 10 महीने की उपलब्धियां गिनवाईं थी। उन्होंने कहा, “पिछले 10 महीनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए ₹80,000 करोड़ बांटे।”
हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017-18 में किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के रूप में सिर्फ ₹14,540 करोड़ ही दिए। 21 फरवरी 2018 को जो आंकड़े सरकार के डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर डैश बोर्ड पर उपलब्ध थे उसके मुताबिक सरकार ने यह रकम 682.5 मिलियन ट्रांजैक्शन के जरिए दी।
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 4 साल पूरे किए थे तो पीएम मोदी ने दावा किया कि, “2 लाख करोड़ रुपए की लागत से 100 स्मार्ट शहरों को विकसित किया जा रहा है।”
हकीकत यह है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस रकम का एक चौथाई भी मंजूर नहीं किया है। सरकार ने सिर्फ इस मिशन की 2015 में हुई शुरुआत में 48,000 करोड़ रुपए ही मंजूर किए हैं। इसमें से भी सिर्फ सिर्फ 21 फीसदी जारी किया गया है और उसका सिर्फ 1.8 फीसदी ही इस्तेमाल हुआ है। इस तरह स्मार्ट सिटी के नाम पर दावे के 2 लाख करोड़ का सिर्फ 0.09 फीसदी ही खर्च हुआ है।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया था कि, “गुजरात में हमारी सरकार बनने के बाद कोई दंगा नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में एक भी घटना नही हुई। छ्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में कोई दंगा नहीं हुआ।”
हकीकत यह है कि 1998 से 2016 के बीच गुजरात में कुल 35,568 दंगे हुए। इनमें 2002 के दंगे भी शामिल हैं। ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हैं। वहीं मध्य प्रदेश में 2003 से 2016 के बीच कुल 32,050 दंगे हुए। इस दौरान बीजेपी सत्ता में रही। छत्तीसगढ़ में इसी अवधि में कुल 12,265 दंगे हुए, यहां भी बीजेपी सत्ता में रही। लोकसभा में पेश आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के पहले 10 महीनों में 2017 में 195 सांप्रदायिक दंगे हुए।
2014 से मार्च 2018 के बीच मॉब लिंचिंग की 40 घटनाओं में 45 लोगों की जान गई। यह आकंड़ा केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहिर ने 18 जुलाई 2018 को राज्यसभा में दिए थे।
उन्होंने बताया था कि गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 9 राज्यों में हुई इन घटनाओं के सिलसिले में 217 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
वहीं, फैक्टचेकर ने भीड़ की हिंसा के दो आंकड़े दिए। एक में बच्चा चोरी के शक में भीड़ की हिंसा, गौ-रक्षकों द्वारा लोगों पर हमले और सांप्रदायिक हिंसा के 80 मामले सामने आए। फैक्टचेकर के मुताबिक इन घटनाओं में 41 लोगों की मृत्यु हुई। इन घटनाओं में जातीय हिंसा और मोरल पुलिसिंग की घटनाएं शामिल नहीं हैं।
सितंबर 2018 की 16 तारीख को ईशा फाउंडेशन के जग्गी वासुदेव ने कहा था कि, “हमें पता होना चाहिए और इस पर खुश होना चाहिए कि बीते चार साल के दौरान देश में एक भी बम विस्फोट नहीं हुआ। जो कुछ भी हो रहा है वह सिर्फ सीमावर्ती इलाकों में हो रहा है।”
हकीकत में उनका दावा झूठा है। अकेले 2016 में ही कम से कम 400 विस्फोटों के आंकड़े हैं। और ये आंकड़े सरकार के अपने हैं।
बीजेपी के दो नेताओं, जिनमें एक केंद्रीय मंत्री भी हैं, उनका दावा है कि मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है और औसतन हर मुस्लिम महिला के तीन बच्चे हैं, जबकि हिंदु माताओं के औसतन 2 बच्चे होते हैं।
लेकिन, हकीकत यह है कि मुसलमानों में जनन क्षमता कम हो रही है और मुसलमानों की आबादी बढ़ने की रफ्तार 20 साल में सबसे कम है।
एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक देश में मुसलमानों की आबादी 18.4 फीसदी होगी यानी अब से 72 साल बाद भी देश का हर तीसरा व्यक्ति हिंदू ही होगा। इतना ही नहीं ईसाइयों, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयाइयों में भी प्रजनन क्षमता मुसलमानों और हिंदुओं से कम है।
भारत सरकार ने 2017 की अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया कि देश में वन आवरण 6,778 किलोमीटर या सिक्किम के आकार के एक फीसदी के बराबर बढ़ गया है। सरकार ने यह भी दावा किया कि वन क्षेत्रों के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल हो गया है।
लेकिन, वन विशेषज्ञ कहते हैं कि वन क्षेत्र की परिभाषा ही दोषपूर्ण है। नई परिभाषा में उन वनों को शामिल कर लिया गया है जिन्हें व्यवसायिक पौधे लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, साथ ही मौजूदा वनों की स्थिति और उनमें मौजूद पेड़-पौधों की सेहत भी खराब है।
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