सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के पास पत्रों, अभ्यावेदन और मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति है और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर कार्यवाही शुरू कर सकता है। जस्टिस ए.एम. खानविलकर, हृषिकेश रॉय, और सी.टी. रविकुमार ने याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुनाया, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान का अधिकार क्षेत्र है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने तर्क दिया था कि एनजीटी को पर्यावरण की बहाली के लिए आदेश पारित करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं, इसलिए वह स्वत: संज्ञान शक्तियों का प्रयोग कर सकती है। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने उनकी दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि केवल संवैधानिक अदालतें ही स्वत: शक्तियों का प्रयोग कर सकती हैं और एनजीटी जैसे वैधानिक न्यायाधिकरणको अपने मूल कानून के दायरे में कार्य करना होगा।
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केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि एनजीटी के पास मामले का खुद संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। लेकिन उसने यह भी तर्क दिया कि न्यायाधिकरण की शक्तियों को प्रक्रियात्मक बाधाओं से बाध्य नहीं किया जा सकता है।
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बेंच ने उनसे पूछा था कि अगर ट्रिब्यूनल को पर्यावरण के संबंध में कोई सूचना मिलती है, तो क्या यह प्रक्रिया शुरू करने के लिए बाध्य नहीं होगी? एएसजी ने जवाब दिया कि एक बार ट्रिब्यूनल को कोई पत्र या संचार प्राप्त हो जाने के बाद, यह उसका संज्ञान लेने के अधिकार में है।
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पीठ ने आठ सितंबर को इस मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में न्याय मित्र, वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद ग्रोवर ने कहा था कि एनजीटी पत्रों, अभ्यावेदन या मीडिया रिपोटरें के आधार पर स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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