दशकों पहले जब शरद पवार एक बड़े नेता के तौर पर उभर ही रहे थे, वह कुछ पत्रकारों को लोनावाला के एक बंगले में ले गए थे। कुछ पुराने पत्रकारों के मुताबिक, वहां पत्रकारों की बढ़िया खातिरदारी की गई। अच्छा खाना-पीना और संगीत। सब बढ़िया था, बस एक चीज को छोड़कर। पवार की जिद के कारण उन्हें जमकर खाने के बाद पहाड़ियों पर पैदल चलना पड़ा था ताकि कैलोरी बर्न हो सके। पवार भी साथ ही टहल रहे थे, तभी बारिश शुरू हो गई। किसी के पास छाता नहीं था। पवार समेत सभी उसी बारिश में चलते रहे।
तभी अचानक महाराष्ट्र राज्य परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) की एक बस उनके सामने आकर रुकी और उसका ड्राइवर भागता हुआ आया। उसे यह देखकर बड़ा खराब लग रहा था कि पवार के पास कोई गाड़ी नहीं थी और वह बारिश में पूरी तरह भींगे हुए थे। उसने कहा, ‘साहब, आइए, बस में बैठ जाइए। आपको जहां जाना है, मैं बस से छोड़ दूंगा।’ पवार ने बड़ी विनम्रता से उसका अनुरोध ठुकरा दिया। तब भी तमाम पत्रकारों को लग रहा था कि काश, बस में बैठ जाते तो बारिश से बच जाते! लेकिन पवार तो अलग ही मूड में थे। उन्होंने एक बार फिर ड्राइवर को समझाया- ‘हमें बारिश में टहलना अच्छा लग रहा है। आप कृपया अपना काम करें, हमारी चिंता न करें।’
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ड्राइवर को अच्छा नहीं लगा जो उसके हाव- भाव से साफ झलक रहा था। उसने कहा, ‘साहब, आप मुझे नहीं जानते लेकिन आपने मेरे विकलांग भाई को नौकरी दी थी। अगर आपने नौकरी नहीं दी होती तो उसका परिवार बड़ी मुसीबत में आ जाता।’ तब ड्राइवर ने बड़ी बेबाकी से कहा कि वह किसी भी तरह पवार के इस अहसान को नहीं चुका सकता था और आज जब उन्हें पैदल बारिश में भीगते हुए चलते देखा तो सोचा कि उन्हें गाड़ी से उनके निवास तक पहुंचाकर वह खुद को थोड़ा संतोष दे सकता है। वह आहत था कि पवार ने उसे इसका मौका नहीं दिया। खैर, सोचने की बात यह है कि उस ड्राइवर को यह पता था कि बस को नियत रूट को छोड़कर कहीं और ले जाने के कारण उसकी नौकरी भी जा सकती थी। फिर भी, वह पवार के प्रति आभार व्यक्त करना चाह रहा था। यही पवार की ताकत है जबकि आज के तमाम नेताओं के प्रति आम लोगों की ऐसी श्रद्धा कहीं नहीं दिखती।
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एमएसआरटीसी में यह कहानी किवंदती की तरह लोकप्रिय है और इस वजह से इस बात की संभावना न के बराबर है कि इसका कोई कर्मचारी पवार को नुकसान पहुंचाने की बात सोचे। इसमें साजिश की बू आ रही है। इसकी वजह है। पहली, एमएसआरटीसी के कुछ लोग हाल ही में पवार के घर में जबरन घुस गए थे लेकिन कोई वजह नहीं थी कि अपनी परेशानियों के लिए वे पवार को निजी तौर पर जिम्मेदार मानते। दूसरी, बंबई हाईकोर्ट ने पहले ही राज्य सरकार को निर्देश दे रखा है कि तीन माह से ज्यादा समय से हड़ताल कर रहे कर्मचारियों को वह बहाल करे और सरकार इसके लिए तैयार भी हो चुकी है।
एमएसआरटीसी सालों से घाटे में चल रही है क्योंकि अन्य राज्यों की तरह महाराष्ट्र में यह सेवा केवल मुख्य सड़कों तक ही सीमित नहीं, बल्कि गांव-गांव तक इसका नेटवर्क फैला हुआ है और यह दूर-दराज के इलाकों तक भी जाती है। इसका एक बड़ा फायदा यह है कि स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों, खास तौर पर लड़कियों, की सुरक्षा के लिए लोगों को सोचना नहीं पड़ता।
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ऐसा लगता है कि बीजेपी ने इसी बात का फायदा उठाया और एमएसआरटीसी में हड़ताल के लिए उकसाया ताकि सेवा बंद हो जाए और लोगों में गुस्सा भड़के जिसका फायदा उठाकर वह सरकार ही पलट दे। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ और सब कुछ शांति के साथ सुलटता दिखा तो अचानक एमएसआरटीसी के कुछ कर्मचारी पवार के निजी बंगले में घुस गए और इस तरह की खबरें आ रही हैं कि वे पवार को शारीरिक तौर पर नुकसान भी पहुंचाना चाहते थे। पुलिस ने हिंसा भड़काने के लिए वकील गुणारत्ना सदावते को तत्काल गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में भी देवेन्द्र फडणवीस कठघरे में हैं क्योंकि पता चला है कि सदावते फोन पर लगातार फडणवीस से संपर्क में था। पवार ने खुलकर कहा है कि यह एक प्रायोजित मामला है और सारी स्थितियां इसी ओर इशारा कर रही हैं।
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जाहिर तौर पर फडणवीस का मानना है कि पवार ने ही एमवीए सरकार को एकजुट कर रखा है और उन्हें नुकसान पहुंचाकर वह एमवीए को हिला देंगे। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि पवार और राज ठाकरे या नारायण राणे में अंतर है। राज और राणे ने केन्द्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करके विपक्षी नेताओं को ‘रास्ते पर लाने’ की रणनीति के आगे हथियार डाल दिए हैं। इसके अलावा, पवार आज देश में सबसे वरिष्ठ और सम्मानित विपक्षी नेता हैं और यहां तक कि फडणवीस की अपनी पार्टी के नरेन्द्र मोदी जैसे नेता तक पवार को अपना राजनीतिक गुरु बता चुके हैं।
इसके अलावा लगता है कि फडणवीस को महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति का ही पता नहीं जिसमें प्रतिद्वंद्वियों के बीच दोस्ताना तरीके से राजनीतिक लड़ाई होती है जिसमें शारीरिक तौर पर नुकसान नहीं पहुंचाया जाता। पवार देश में पहली गठबंधन सरकार का हिस्सा थे जिसमें जनसंघ के लोग भी मंत्री के रूप में शामिल थे। आरएसएस को जरूर वह सब याद होगा। लगता है कि फडणवीस वह भी भूल गए हैं, लेकिन इससे घाटा तो उन्हीं का है।
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