कोरोना वायरस महामारी से बचने के लिए देश में लॉकडाउन एक बार फिर दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया गया है, यानी अब 17 मई तक देशबंदी जारी रहेगी। पिछली बार बढ़ाई गई लॉकडाउन की अवधि तीन मई तक थी, लेकिन अब यह 17 मई तक बढ़ा दी गई है। इस लॉकडाउन ने न सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है, बल्कि असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों के सामने विकट परिस्थिति पैदा हो गई है। उनके सामने जान बचाने के साथ अपनी जीविका बचाने का संकट खड़ा है।
ताजा रिपोर्ट्स की मानें तो लॉकडाउन के दौरान देश में लगभग 14 करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन के कारण शहरों में निर्माण गतिविधियां और तमाम फैक्ट्रियों में कामकाज ठप होने से इतनी बड़ी तादाद में लोगों की नौकरियां गई हैं। इनमें से ज्यादातर श्रमिक अपने गांव-घरों से दूर दूसरे शहरों में भूखे-प्यासे फंसे हैं, जिससे इनके सामने जीवन की भी संकट खड़ा हो गया है।
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हालांकि, 26 अप्रैल को समाप्त हफ्ते पर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान देश की बेरोजगारी दर में कमी आई है। इस हफ्ते में बेरोजगारी दर 21.1 फीसदी रही, जो पिछले हफ्ते में 26.2 फीसदी रही थी। हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान लॉकडाउन की वजह से 7 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं।
कई आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस हालत में इन श्रमिकों की मदद के लिए सरकारों को सीधे उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए। हालांकि विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि यह विकल्प लंबे समय तक के लिए नहीं हो सकता, इसलिए जरूरी शर्तों के साथ वैसे क्षेत्रों में उद्योग-धंधों में काम की इजाजत देनी चाहिए, जहां कोरोना वायरस का खतरा कम हो। इससे बेरोजगार लोगों को काम मिल जाएगा और अर्थव्यवस्था को भी राहत मिलेगी।
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आर्थिक विशेषज्ञ और कांग्रेस नेता प्रो. गौरव वल्लभ के अनुसार, लॉकडाउन कोरोना महामारी का इलाज नहीं है। लॉकडाउन सिर्फ एक पॉज बटन की तरह है, जो कोरोना से लड़ने की तैयारी करने के लिए सरकारों को कुछ अतिरिक्त समय देता है। उनके अनुसार लॉकडाउन में लगभग 14 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं। उनके अनुसार सबसे पहले तो अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए चुनिंदा क्षेत्रों को कोरोना संक्रमण रोकने के उचित इंतजाम के साथ धीरे-धीरे खोलना चाहिए।
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इसके अलावा उन्होंने कहा कि सरकार को असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे मजदूरों को कम से कम तीन महीने का अग्रिम भुगतान कर उनकी स्थिति संभालनी चाहिए। उन्होंने बताया कि मध्यम और लघु उद्योग क्षेत्र में लगभग 6.3 करोड़ इकाइयां काम करती हैं, जिनसे करीब 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। अगर इन उद्योगों को चालू करने की कोई योजना नहीं बनाई गई, तो ये इकाइयां अपने कामगारों को वेतन देने की स्थिति में नहीं होंगी, जिससे बड़े पैमाने पर नौकरी जाएगी और देश में बेतहाशा बेरोजगारी बढ़ेगी।
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