अहमदाबाद के स्पेशल कोर्ट द्वारा डॉ माया कोडनानी और बाबू बजरंगी समेत 65 अन्य आरोपियों को 2002 गुजरात दंगों से बरी कर दिया गया। इन लोगों पर नरोडा गाम में हिंसा का आरोप था। लेकिन कोर्ट के इस फैसले से आम लोग और कानूनी विशेषज्ञ हैरान हैं।
गुजरात के 2002 दंगों के वक्त माया कोडनानी बीजेपी विधायक और तब की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री थी। उन पर नरोडा गाम में हिंसा भड़काने, नरसंहार में हिस्सा लेने और भीड़ को उकसाने का आरोप था।
2002 में 28 फरवरी को अहमदाबाद के नरोडा गाम में हुई इस हिंसा में मुस्लिम समुदाय के 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इनमें महिलाएं और 12 साल की एक बच्ची भी शामिल थी। इतना ही नहीं हिंसा भड़कने पर एक गर्भवती महिला को तलवार से मार दिया गया था। इस दंगे के बारे में एक न्यूज चैनल ने बजरगं दल नेता बाबू बजरंगी से खुफिया कैमरे पर सवाल-जवाब किए थे। इस स्टिंग ऑपरेशन में बाबू बजरंगी ने खुलेआम माना था कि उसने गर्भवती महिला का पेट तलवार से फाड़ दिया था।
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उसने दावा किया था कि उस दौरान पुलिस मौजूद थी लेकिन वह मूकदर्शक बनी रही थी। इसके बाद भीड़ ने लोगों के घरों में गैस सिलेंडर फेंक कर आग लगा दी थी जिसमें सभी जिंदा जल गए थे। लेकिन कोर्ट ने इस स्टिंग ऑपरेशन को सबूत के तौर पर मानने से इनकार कर दिया था और कहा था कि बाबू बजरंगी अपनी छवि चमकाने के लिए घटना को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा था। इसी केस में 14 साल के एक ऐसे बच्चे की गवाही को भी कोर्ट ने विश्वसनीय नहीं माना था जिसकी बहन को जिंदा जला दिया गया था।
घटना के चश्मदीदों के मुताबिक पूरी घटना के दौरान माया कोडनानी मौके पर मौजूद थी और दंगाइयों को तलवार और अन्य हथियार मुहैया करा रही थीं। कोडनानी के मोबाइल फोन रिकॉर्ड से भी स्पष्ट हुआ कि घटना के वक्त वह हिंसा वाली जगह पर मौजूद थी और पुलिस और उस समय के गुजरात के गृह राज्यमंत्री अमित शाह से लगातार संपर्क में थीं। लेकिन अमित शान ने 2017 में बचाव पक्ष की तरफ से गवाह के तौर पर पेश होकर कहा था कि माया कोडनानी घटनास्थल पर मौजूद नहीं थीं।
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अमित शाह ने दावा किया था कि उन्होंने माया कोडनानी को 28 फरवरी की सुबह 8.30 बजे गुजरात विधानसभा में देखा था और फिर इसी दिन दोबारा उनकी मुलाकात माया कोडनानी से 11 सवा ग्यारह बजे के बीच सोला सिविल अस्पताल में हुई थी। पुलिस ने दोनों को वहां से निकाला था। अमित शाह ने कहा था कि इसके बाद माया कोडनानी कहां गई थीं, इसकी उन्हें जानकारी नहीं थी।
माया कोडनानी एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। इस एसआईटी की अगुवाई पूर्व सीबीआई डायरेक्टर आर के राघवन कर रहे थे। इसी एसआईटी ने गुजरात दंगों के मामले में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी थी।
इस केस के संबंध में गुजरात सरकार ने 2013 में हा था कि वह माया कोडनानी और अन्य अभियुक्तों के लिए मौत की सजा की मांग करेगी। हालांकि इसे एक कोरा जुमला कहकर बाद में खारिज कर दिया गया था, जिसका मकसद नरेंद्र मोदी की छवि चमकाना था। उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे।
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नरोडा गाम नरसंहार गुजरात दंगों के ऐसे उन 9 बड़े मामलों में से एक था जिसकी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी नियुक्त की थी। एसआईटी ने 2008 में चार्जशीट दाखिल की थी। एसआईटी ने कहा था कि उसने इस मामले में 187 लोगों से पूछताछ की है और उनके बयान दर्ज किए हैं, जिनमें 57 चश्मदीद गवाह भी थे। लेकिन अधिकतर गवाह अपने बयान से अदालत में मुकर गए थे।
इस केस को स्पेशल कोर्ट के 6 जजों ने सुना। हालांकि गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई कर रहे स्पेशल जज एम के दवे का 2020 में उस समय तबादला कर दिया था जब वह केस की आखिरी सुनवाई कर रहे थे। उनकी जगह एस के बक्शी को स्पेशल जज बनाया गया था जिन्होंने गुरुवार को माया कोडनानी और बाबू बजरंगी समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
माया कोडनानी के पिता मूलत: सिंध (अब पाकिस्तान में) से भारत आए थे और वे आरएसएस के सदस्य थे। माया कोडनानी भी आरएसएस से जुड़ी राष्ट्रीय सेविका समिति की सदस्य थीं। माया कोडनानी गुजरात की पहली महिला के रूप में जाना जाता था जिसने सबसे पहले मेडिकल कॉलेज ज्वाइन किया था। माया कोडनानी की छवि एक फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली और खुद कार ड्राइव करने वाली महिला के रूप में थी और उन्हें एक अच्छा स्त्रीरोग विशेषज्ञ माना जाता था।
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माया कोडनानी ने नरोडा में अपना अस्पताल भी खोला था जिसका नाम शिवम अस्पताल था। विधायक बनने और मंत्री नियुक्त होने के बाद भी वे अस्पताल में जाती रहीं और महिलाओं के इलाज और बेबी डिलीवरी करती रही थीं। उनके मरीजों में बड़ी संख्या मुस्लिमों की थी।
लेकिन जैसे-जैसे माया का राजनीतिक कद बढ़ता गया उनकी सोच में क्रूरता आती चली गई। वह एक अच्छी वक्ता थीं और हमेशा भगवा स्कार्फ पहनती थीं। अपने भाषणों में वे अक्सर हिंदुत्व को लेकर भड़काऊ बातें करती रही। कुछ लोगों का मानना है कि वे खुद को भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देख रही थीं, क्योंकि जब 2007 में जहां नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर 80 हजार वोट था, माया कोडनानी 1.80 लाख वोटों से जीती थीं।
स्पेशल कोर्ट के फैसले के बाद अभी यह स्पष्ट नहीं है कि एसआईटी इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी या नहीं। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने माया कोडनानी और बाबू बजरंगी मामले में आए कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया में कहा है कि 11 नागरिकों के साथ ही 12 साल की एक बच्ची की मौत के आरोपी बरी कर दिए गए, ऐसे में क्या हमें कानून के शासन का जश्न मनाना चाहिए या फिर इस के पतन पर शोक।
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