आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी 6 जुलाई को हैदराबाद में मिले तो दिलचस्प चर्चाएं होनी ही थीं क्योंकि 10 साल पहले राज्य के विभाजन के बाद से ही परस्पर निशाना साधे दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों का यह पहला औपचारिक मिलन था। सौहार्दपूर्ण मिलन लंबे समय से लंबित अंतरराज्यीय विवादों को सुलझाने के प्रयासों के लिहाज से भी खासा सार्थक रहा। दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विभाजन, नदी जल बंटवारा, बिजली बकाया भुगतान और 91 संस्थानों के विभाजन सहित कम-से-कम 14 महत्वपूर्ण मुद्दे लंबित हैं। नायडू अपने पहले कार्यकाल (2014-2019) और के.चंद्रशेखर राव (2014-2023)- दोनों ही किसी भी बैठक को लेकर हमेशा आग्रही रहे और गतिरोध जगन मोहन के 2019 में सत्ता संभालने के बाद भी जारी रहा क्योंकि कोई एक कदम भी पीछे हटने को राजी नहीं था।
आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले नायडू और रेड्डी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) में सहयोगी थे। बाद के उतार-चढ़ाव में उनकी दिशाएं अलग हुईं जो दोनों को अंततः दो सहोदर राज्यों की कमान मिलने के रूप में फलित हुई। अलग-अलग हितों का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत स्तर पर अच्छा तालमेल है जिसकी तुलना अक्सर राजनीतिक हलकों में ‘गुरु-शिष्य’ समीकरण से की जाती है। 2014 में राज्य विभाजन से पहले रेवंत टीडीपी के रैंक से ऊपर उठकर संयुक्त आंध्र प्रदेश की विधानसभा में पार्टी के उप नेता बने और नायडू के करीबी विश्वासपात्रों में से एक बनकर उभरे।
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तेलंगाना गठन के बाद तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम ने टीडीपी को पुराने राज्य से अलग होकर बने नए राज्य में लगभग अप्रासंगिक बना दिया। यह 2014 में शेष आंध्र प्रदेश में सत्ता में आई। अपनी राजनीतिक समझदारी से आगे बढ़ते हुए रेवंत रेड्डी 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गए, 2021 में तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने और दिसंबर, 2023 में पार्टी को जीत दिलाकर खुद को साबित किया। उधर, इस वर्ष अपना करिश्मा दिखाते हुए नायडू ने आंध्र में टीडीपी, जन सेना पार्टी और बीजेपी वाली एनडीए का नेतृत्व करते हुए आश्चर्यजनक जीत दर्ज कराई।
इस महीने की बैठक दोनों राज्यों के बीच मतभेद दूर करने में मददगार साबित हुई। दोनों मुख्यमंत्री पुराने दोस्तों की तरह मिले और बातचीत की मेज पर बैठने से पहले एक-दूसरे को गले लगाया। तीन घंटे चली बैठक में एक हाईलेवल कमेटी बनाना तय हुआ जिसमें मुख्य सचिव और दोनों राज्यों के दो-दो अधिकारी शामिल होंगे। दोनों पक्षों ने एक रोडमैप तय करते हुए कृष्णा और गोदावरी जल-बंटवारा विवाद सहित उन मुद्दों पर चर्चा की जहां केन्द्र के हस्तक्षेप की जरूरत है।
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हैदराबाद से बीजेपी विधायक टी राजा सिंह शायद हास्य का मतलब नहीं जानते! उनकी बदमाशी से लोकप्रिय हास्य अभिनेता डेनियल फर्नांडिस का एक शो रद्द करना पड़ा। शो जिसका शीर्षक था ‘क्या आप जानते हैं मैं कौन हूं?’ सिंह की धमकियों के बाद यह शो इसलिए बंद करना पड़ा क्योंकि उन्हें लगता था कि यह आपत्तिजनक है। उन्होंने फर्नांडीस पर जैन समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक मजाक करने का आरोप लगाया।
यह जोक बकरीद के दौरान मुस्लिमों के वेश में 125 बकरे खरीद कर उन्हें कटने से बचाने वाले जैन समुदाय के लोगों को लेकर था कि इनमें विधायक की बकरी भी फंस गई थी। इसके बाद लगातार मिली धमकियों के बाद फर्नांडीस अपने सोशल मीडिया अकाउंट से वह वीडियो टीजर हटाने को मजबूर हो गए।
जैन समुदाय से माफी मांगते हुए उन्होंने कहा, “किसी कलाकार के काम से असहमति ठीक है लेकिन यह कहना कि काम अच्छा नहीं लगा तो मैं उस कलाकार पर हिंसा करूंगा, उचित नहीं है। यह इसका जवाब नहीं है। यहां किसी को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था।”
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कार्यक्रम रद्द करने के बारे में उन्होंने कहा, “कोई भी मेरे दर्शकों, मेरी टीम और मेरी सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार नहीं है। मैं अपनी कही किसी बात से किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता... जैन समुदाय के सदस्यों से: मैं देख सकता हूं कि आप परेशान हैं। मैं देख सकता हूं कि आप क्रोधित हैं। यह सचमुच मुझे व्यथित करता है। मेरे लिए इस बात का कोई मतलब नहीं कि मैं अभी कैसा महसूस कर रहा हूं। मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा है कि आप इस समय कैसा महसूस कर रहे हैं! कॉमेडी का मतलब यह नहीं है। कॉमेडी हम सभी के एक साथ आने और अपनी चिंताओं को भूलकर हंसने के बारे में है।”
यह पहली बार नहीं है जब सिंह ने किसी हास्य कलाकार को हिंसा की धमकी दी है। जनवरी, 2022 में उन्होंने कॉमेडियन और रैपर मुनव्वर फारुकी पर हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया था। तत्कालीन सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के.टी. रामाराव के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के बाद फारुकी का शो उस वर्ष अगस्त में शहर में फिर से हुआ और भाजपा के उग्र विरोध के बावजूद जनता ने उसे सफल बनाया, हालांकि राज्य सरकार और हैदराबाद पुलिस- दोनों को हास्य अभिनेता के साथ खड़े होने पर काफी हमले झेलने पड़े।
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लंबे समय से भारत के सॉफ्टवेयर केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हैदराबाद अब तेजी से एक सर्विलांस सिटी (निगरानी शहर) में तब्दील होता जा रहा है। ‘स्मार्ट पुलिसिंग’ मिशन के एक हिस्से के तौर पर अपराधियों की पहचान करने के लिए तेलंगाना पुलिस ऐसी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर रही है जो गोपनीयता और निजता संबंधी चिंताएं बढ़ाता है।
अगस्त, 2018 में लॉन्च की गई फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (एफआरटी) को सीसीटीवी कैमरों के मौजूदा सेटअप के जरिये प्रभावी बनाया जा रहा है। इसका मतलब यह कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी चेतावनी और बिना पूर्व जानकारी दिए कि उनका संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा किस तरह संग्रहीत, साझा और उपयोग किया जा रहा है, ‘घुसपैठिया निगरानी’ का शिकार बनाया जा रहा है। 2020 में एफआरटी के व्यापक इस्तेमाल के मामले में तेलंगाना शीर्ष पर था।
सेंटर फॉर ह्यूमन सिक्योरिटी स्टडीज के कार्यकारी निदेशक रमेश कन्नेगांती के अनुसार, एफआरटी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल करके सत्यापन या पहचान के लिए व्यक्तियों के चेहरे की डिजिटल छवियों की प्रोसेसिंग शामिल है। उन्होंने बताया कि “यह चेहरे के भाव, केश या चेहरे के आकार के आधार पर विशिष्ट डेटा निकालता है और उस डेटा का इस्तेमाल अपने डेटाबेस में पहले से ही प्रोफाइल किए गए व्यक्तियों की छवियों के साथ तुलना करने के लिए करता है।”
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तेलंगाना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एस.क्यू. मसूद कहते हैं: “एफआरटी उपकरण मनमानी के साथ निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इसमें नागरिकों के लिए कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं हैं और इसे लागू करने का कोई कानूनी आधार भी नहीं है। ‘आधार’ के विपरीत जिसे संसद के एक अधिनियम के जरिए अनिवार्य किया गया है, एफआरटी के लिए ऐसा कोई विनियमन नहीं है।” मसूद मानते हैं कि एफआरटी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर निगरानी के लिए किया जा रहा है और उनकी यह बात गोपनीयता समर्थक कार्यकर्ता साझा कर रहे हैं।
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नकदी संकट से जूझ रही कांग्रेस सरकार दोहरी चुनौतियों से घिरी हुई हैः पहला, 2 लाख रुपये तक की कृषि ऋण माफी का वादा पूरा करना; दूसरा, ‘रायथु भरोसा’ योजना के तहत वित्तीय सहायता को 10,000 रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष से बढ़ाकर 15,000 रुपये करना। शुरुआती अनुमान बताते हैं कि राज्य में कम-से-कम 47 लाख किसानों ने कृषि ऋण ले रखा है जिनमें से अधिकांश पर एक लाख से कम का ऋण है। मुख्यमंत्री द्वारा निर्धारित समय सीमा को देखें तो सरकार को इसके लिए 15 अगस्त तक कम-से-कम 31,000 करोड़ रुपये की जरूरत है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, सरकार यह बोझ कम करने के लिए कई विकल्पों पर विचार कर रही है जिसमें कृषि ऋण माफी की पात्रता तय करने के लिए पीएम किसान योजना के डेटा का इस्तेमाल आधार रेखा के तौर पर किया जाए। योजना के अनुसार, पात्र लाभार्थी लगभग 33 लाख हैं जिससे जरूरी आंकड़ा 25,000 करोड़ रुपये तक कम हो जाएगा। इसमें राज्य और केन्द्र सरकार के कर्मचारी, आयकरदाता और जन प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे।
बैंकों से सभी तरह के फसल ऋण लेने और उन्हें 48 महीनों में किस्तों में चुकाने के लिए एक विशेष किसान कल्याण और विकास निगम स्थापित करने का भी प्रस्ताव है। पिछली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार द्वारा दो बार लागू की गई फसल ऋण माफी योजनाओं के विपरीत यह किसानों को एक बार में कर्ज मुक्त कर देगा।
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