बीते कुछ वर्षों के दौरान देश में जाति जनगणना की मांग ने जोर पकड़ा है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर लगातार बीजेपी की अगुवाई वाली मोदी सरकार पर निशाना साधती रही हैं। इस साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने तो अपने घोषणापत्र में भी इस मुद्दे को शामिल किया था। जाति जनगणना को लेकर विपक्षी दलों का खुला आरोप है कि मोदी सरकार और बीजेपी जाति जनगणना नहीं कराना चाहती है। कांग्रेस का तर्क है कि जाति जनगणना से ही इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि देश-समाज के संसाधनों और सरकारी नौकरियों पर किस जाति समूह का कितना हक है और इससे पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
मोदी सरकार जिन दलों की बैसाखी पर सत्ता में है उसमें से एक महत्वपूर्ण घटक टीडीपी (तेलुगु देशम पार्टी) के नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने खुलकर जाति जनगणना की वकालत की है। द इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि ‘जाति जनगणना जरूर होनी चाहिए, इसे लेकर समाज में एक सेंटीमेंट (भावना) है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है।‘ नायडू ने कहा कि जब आप जाति जनगणना करते हैं तो आप आर्थिक विश्लेषण करते हैं और आप स्किल सेंसस यानी कौशल गणना करते हैं।
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चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि ऐसा करना इसलिए जरूरी होता है ताकि नीतियों और अन्य चीजों को ऐसे बनाया जाए जिससे आर्थिक असमानताएं कम की जा सकें। चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि जाति जनगणना की मांग की भावना का सम्मान करना होगा और इसमें कोई दो राय नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है, भले ही आप कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखते हों लेकिन अगर आपके पास पैसा है तो समाज आपकी इज्जत करेगा। अगर आप ऊंची जाति से हैं और आपके पास पैसा नहीं है तो कोई भी आपकी इज्जत नहीं करेगा।‘
बता दें कि चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने इस साल लोकसभा के साथ ही हुए विधानसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की है। उन्होंने बीजेपी और अभिनेता से राजनेता बने पवन कल्याण की पार्टी जनसेना पार्टी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। 175 सीटों वाली विधानसभा में इस गठबंधन ने 164 सीटें हासिल कीं। इसमें से टीडीपी को 135, जनसेना पार्टी को 21 और बीजेपी को 8 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं 2019 में राज्य में सरकार बनाने वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 11 विधानसभा सीटें ही मिली थी। इसी तरह 25 लोकसभा सीटों वाले आंध्र प्रदेश में इस गठबंधन ने 21 सीटें हासिल कीं। इनमें से टीडीपी को 16, बीजेपी को तीन और जनसेना पार्टी को दो सीटें मिली थीं।
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चंद्रबाबू नायडू इससे पहले भी बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा रहे हैं और वाजपेयी दौर में वे एनडीए के संयोजक हुआ करते थे। लेकिन कुछ वर्ष पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे हमले बोलते हुए एनडीए का साथ छोड़ दिया था। लेकिन इस बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव से उन्होंने एनडीए में वापसी की है।
गौरतलब है कि बीते कुछ महीनों के दौरान बीजेपी के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी जाति जनगणना का समर्थन किया है। उधर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी कई बार जाति जनगणना का मुद्दा खुलकर उठाया है। बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही और एनडीए की पुरानी सहयोगी जेडीयू ने पिछले साल ही बिहार में जाति सर्वेक्षण करवाया था। केंद्र सरकार में शामिल जेडीयू भी जाति जनगणना का समर्थन कर चुका है।
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यहां रोचक है कि जाति जनगणना पर सीधे तौर पर बोलने से बचता रहा आरएसएस (राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ) भी जाति जनगणना के समर्थन में सामने आ गया है। संघ की तरफ से अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा था कि जाति जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि पिछड़े समुदायों के कल्याण के लिए अगर सरकार को आंकड़ों की जरूरत होती है तो जाति जनगणना एक अच्छा अभ्यास हो सकता है। उनके बयान से माना गया कि संघ भी जाति जनगणना के पक्ष में है।
आरएसएस के इस बयान को जातिगत जनगणना के समर्थन के रूप में ही देखा गया था। इस बयान के बाद राजद के प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि आरएसएस-बीजेपी वालों के कान पड़ककर हम जाति जनगणना करवाएंगे। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी कहा था कि आरएसएस-बीजेपी जाति जनगणना का भले ही कितना विरोध करें लेकिन हम उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर देंगे।
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ध्यान देने की बात है कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जातियों के उप वर्गीकरण यानी सब क्लासिफिकेशन को लेकर रोहिणी आयोग बनाया था। इस आयोग के एक सदस्य जीके बजाज ने पिछले दिनों जाति जनगणना का समर्थन किया था। बजाज ने कहा था कि जाति जनगणना करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि एक बार जब आपको जाति का पता चल जाता है तो बाकी आंकड़े भी इसके साथ जुड़ जाते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया था कि यह सिर्फ जाति गणना नहीं बल्कि जनगणना होनी चाहिए क्योंकि इससे सामाजिक-आर्थिक आंकड़े सामने आते हैं।
इतना सब होने के बाद भी यह सवाल बना हुआ है कि आखिर बीजेपी जाति जनगणना को लेकर ठोस कदम क्यों नहीं उठा रही है। वैसे बीजेपी ने जाति जनगणना का विरोध तो नहीं किया है लेकिन वह इस पर आगे बढ़ती भी नहीं दिखाई देती है।
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जनगणना के आंकड़ें काफी महत्वपूर्ण होते हैं और इनका व्यापक असर होता है। खाद्य सुरक्षा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन जैसी कई योजनाएं इन्ही आंकड़ों पर निर्भर होती हैं। इन आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार के अलावा उद्योग जगत और रिसर्च इंस्टीट्यूट भी करते हैं।
महत्वपूर्ण बात है कि इस साल के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने में नाकाम रही थी। सरकार बनाने के लिए उसे टीडीपी, जेडीयू और दूसरे दलों के समर्थन की जरूरत पड़ी थी। उसके समर्थन में आए सभी दल जाति जनगणना के समर्थन में खुलकर सामने आ चुके हैं। ऐसे में देश का स्पष्ट जनादेश न होने और सहयोगियों के सहारे चल रही सरकार कब तक इस मुद्दे से मुंह फेरती रहेगी।
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आंकड़ों के लिए बता दें कि लोकसभा में बीजेपी के पास 240 सीटें है जो बहुमत के आंकड़े 272 से 32 सीटें कम हैं। इसीलिए उसे टीडीपी के 16 और जेडीयू के 12 सांसदों के साथ ही एलजेपी और अपना दल जैसे दलों का समर्थन लेना पड़ा है।
हाल के दिनों में देखा गया है कि कई मुद्दों पर बीजेपी को अपने फैसले बदलने पड़े हैं जब इन्हीं सहयोगी दलों ने उन पर आपत्ति जताई है। बजट में इंडेक्सेशन का मुद्दा हो या वक्फ बिल। इन मुद्दों पर बीजेपी को बैकफुट पर आकर रोलबैक करना पड़ा है। अब देखना होगा कि बीजेपी जाति जनगणना के मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है।
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