बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से मासूमों की लगातार हो रही मौत के मामले में केंद्र और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मुश्किल में घिरते दिख रहे हैं। मुजफ्फरपुर की सीजेएम अदालत ने मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन और मंगल पांडे के खिलाफ लापरवाही बरतने के आरोपों में दायर अर्जी पर संज्ञान लेते हुए दोनों नेताओं के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। एसीजेएम को मामले की जांच का जिम्मा दिया गया है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 28 जून को होगी।
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बता दें कि चमकी बुखार से बिहार में हाहाकार की स्थिति है। इस बीमारी से बच्चों की मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। राज्य में अब तक चमकी बुखार से 152 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिसमें अकेले मुजफ्फरपुर में 130 बच्चों की मौत हुई है। इन्हीं आंकड़ों के आधार पर सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी ने मुजफ्फरपुर की सीजेएम कोर्ट में याचिका दायर किया था। उन्होंने अपनी याचिका में बच्चों की मौत का जिम्मेदार दोनों मंत्रियों को बताया है।
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इस बीच सोमवार को ही चमकी बुखार से बच्चों की मौत के मामले में सख्ती दिखाते हुए बिहार, उत्तर प्रदेश और कैंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने के लिए कहा है। बिहार में बच्चों की मौतों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जाहिर करते हुए तीन मुद्दों पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने स्वास्थ्य सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था, पोषण और साफ-सफाई के मुद्दों पर जवाब मांगा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा, “यह गंभीर चिंता का विषय है। बच्चों की मौत का सिलसिला ऐसे ही नहीं चल सकता। हमें जवाब चाहिए।”
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वहीं सौ से भी ज्यादा बच्चों की मौत पर लापरवाही के आरोपों का सामना कर रही बिहार सरकार के मंत्रियों का रवैया अभी भी नहीं सुधरा है। मामले में सबसे ज्यादा निशाने पर रहे बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे लगता है अभी भी खुमार में हैं। एक ओर मुजफ्फरपुर के जिस सरकारी अस्पताल में लगातार बच्चों की मौत हो रही है, वहां की छत गिर जाती है और बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे को वहां जाने की फुर्सत नहीं मिलती, लेकिन पटना में एक निजी नर्सिंग होम के उद्धाटन में शामिल होने के लिए उनके पास पूरा समय होता है।
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मंगल पांडे न सिर्फ एक आलीशान होटल में आयोजत निजी नर्सिंग होम के उद्घाटन में पहुंचे, बल्कि उन्होंने नर्सिंग होम की जमकर तारीफ भी की और घंटों बैठे रहे। इससे बच्चों की मौत पर बिहार सरकार और उसके मंत्री कितने गंभीर हैं. इसका पता इसी बात से चलता है।
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