राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार की देर शाम मुंबई के एक पांच सितारा होटल के बंद कमरे में 'राष्ट्र प्रथम-राष्ट्र सर्वोपरि' विषय पर आयोजित सेमिनार में मुस्लिम बुद्धिजीवियों से कहा कि वे अपने समाज के कट्टरपंथियों का विरोध करें। अगर विरोध करने में देर करेंगे तो मुस्लिम समाज को ही नुकसान होगा। इस कार्यक्रम में सिर्फ मुस्लिम बुद्धिजीवियों को शामिल किया गया था।
यह सेमिनार गीतकार जावेद अख्तर के आरएसएस की तुलना तालिबान से करने पर गरमाए माहौल के बीच हुआ। बीजेपी ने सोमवार को भी मुंबई सहित महाराष्ट्र के अन्य शहरों में जावेद अख्तर के खिलाफ प्रदर्शन किया और बयान के लिए माफी मांगने की मांग की। माना जा रहा था कि भागवत खुलकर तालिबान और जावेद अख्तर के बयान की बात करेंगे। लेकिन भागवत ने किसी का नाम न लेते हुए निर्देश दिया कि मुस्लिम समाज के समझदार लोगों को कट्टरपंथी बातों के विरोध में आवाज उठानी चाहिए। भागवत ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि इसमें देर करने से मुस्लिम समाज को ही नुकसान होगा।
पुणे की संस्था ग्लोबल स्ट्रेटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस सेमिनार में शामिल एक मुस्लिम बुद्धिजीवी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि भागवत ने अपने वक्तव्य में आरएसएस की हिंदुत्ववादी नीति पर ही जोर दिया। मुस्लिम समुदाय पर उनका अपना ही दृष्टिकोण दिखा। उन्होंने बताया कि भागवत ने अपने वक्तव्य में जहां यह कहा कि भारत में रहने वाले हिंदू और मुस्लिमों के पूर्वज समान हैं। वहीं, उन्होंने मुस्लिमों को यह भी याद दिलाया कि इस्लाम आक्रमणकारियों के साथ भारत में आया। यही इतिहास है और उसे वैसे ही बताना जरूरी है।
भागवत ने ये भी कहा कि अंग्रेजों ने भ्रांति पैदा कर हिंदुओं और मुसलमानों को लड़ाया। भागवत ने कहा कि अंग्रेजों ने मुसलमानों से कहा कि अगर उन्होंने हिंदुओं के साथ रहने का फैसला किया तो उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। दूसरी तरफ अंग्रेजों ने हिंदुओं से कहा कि मुसलमान चरमपंथी हैं। उन्होंने दोनों समुदायों को लड़ा दिया। उस लड़ाई और विश्वास की कमी के कारण दोनों एक दूसरे से दूरी बनाए रखने की बात करते रहे हैं। हमें अपनी दृष्टि बदलने की जरूरत है।
सेमिनार में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर मुस्लिमों को संदेश देते हुए कहा कि हम हर भारतीय नागरिक को हिंदू मानते हैं। दूसरे के मत का यहां अनादर नहीं होगा। लेकिन हमें मुस्लिम वर्चस्व की नहीं बल्कि भारत के वर्चस्व की सोच रखनी होगी। देश को आगे बढ़ाने के लिए सबको साथ चलना होगा। भागवत के अलावा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत) सैयद अता हुसैन ने भी अपने विचार रखे।
दरअसल, बीजेपी के वैचारिक अभिभावक माने जाने वाले आरएसएस को मुस्लिम समाज की ओर से विभिन्न मुद्दों पर लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसीलिए बीते दो महीने से आरएसएस की ओर से मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों के बीच संवाद का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। मुंबई से पहले मोहन भागवत उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और असम में भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संवाद कर चुके हैं।
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