उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री-पद से योगी आदित्यनाथ को उतारने की जब-तब जो भी चर्चा होती हो, उनकी शैली की नकल हर भाजपाई मुख्यमंत्री और नेता करता दिखता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी उसी राह पर हैं। योगी से अलग उनकी नाल संघ से जुड़ी भी है।
खुले में मांस-अंडे की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ उन्होंने यह भी घोषणा की कि मध्य प्रदेश में भगवान कृष्ण के पांव जहां-जहां पड़े, वहां का विकास तीर्थस्थल के तौर पर किया जाएगा। माना जाता है कि कृष्ण की पढ़ाई उज्जैन में हुई और वह गाय चराने के लिए भिंड तक आते थे। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते हुए राम वनगमन पथ बनाने की घोषणा तो कई बार की लेकिन वह पथ अब भी बन ही रहा है। अब नया जमाना है, तो बारी कृष्ण की है। वैसे भी, वाराणसी के साथ कृष्ण जन्मभूमि को भी लगातार गर्माया जा रहा है।
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भले ही बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा हो, तब भी, आदमी किसी बड़े पद पर बैठ जाता है, तो उसमें कई विशिष्ट गुण 'दिखने लगते हैं।' इसीलिए मोहन यादव को इन दिनों वैज्ञानिक चेतना वाला बताया जाने लगा है। इसके पीछे तर्क यह है कि मोहन मुख्यमंत्री रहते हुए भी उज्जैन में रात बिताने का 'साहस' कर रहे हैं। वैसे, मोहन उज्जैन से ही विधायक हैं। उज्जैन के साथ यह मिथक जुड़ा है कि कोई मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या किसी राज परिवार का कोई प्रमुख अगर उज्जैन में रात्रि विश्राम करता है, तो उसकी गद्दी चली जाती है।
मोहन अपनी कथित वैज्ञानिकता में एक और कदम आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण का धन्यवाद देते हुए कहा कि समय का निर्धारण अब उज्जैन से होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया का समय पहले उज्जैन से तय होता था क्योंकि कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को उज्जैन में काटती है। इसीलिए इसे पृथ्वी की नाभि भी माना जाता है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार अब उज्जैन वाला समय पूरी दुनिया में लागू कराने का प्रयास करेगी।
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मोहन यादव मंत्रिमंडल में उन छह लोगों को ही जगह दी गई है जो शिवराज के साथ थे। शिवराज मंत्रिमंडल के 10 लोगों की छुट्टी हो गई। जिन्हें शिवराज का करीबी माना जाता था, उनमें से कई इस बार महज विधायक रह गए हैं। माना जाता है कि मोहन के नाम की ही तरह सभी मंत्रियों के नामों का क्लीयरेंस भी 'ऊपर' से ही हुआ है और इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य और पूर्व सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी की आरएसएस की रिपोर्ट का खास ध्यान रखा गया है।
असल में, मोहन को सुरेश सोनी का करीबी माना जाता है और मध्य प्रदेश में उनकी सक्रियता अचानक फिर बढ़ गई है। व्यापम के पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी ने एक वक्त आरोप लगाया था कि करीब दो हजार करोड़ रुपये के घोटाले में संघ के पदाधिकारी सुरेश सोनी भी शामिल थे। सोनी का कहना था कि यह सब उन्हें बदनाम करने का प्रयास था। सोनी के पास कभी आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय का जिम्मा भी था, पर उनसे यह काम ले लिया गया था। बाद में सोनी शैक्षिक अवकाश पर चले गए थे। उन्हें संघ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करीबी माना जाता रहा है। वह दोबारा सक्रिय किए गए हैं।
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भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि मोहन यादव बहुत दिन नहीं चलने वाले क्योंकि उन्हें फिलहाल भले ही कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल-जैसों ने स्वीकार कर लिया हो और मंत्री भी बन गए हों, पर ऐसे लोग गोटियां सेट करने में भी लगे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की नजर तो सीएम की कुर्सी पर है ही। और शिवराज? उनका हतप्रभ होना अब भी खत्म नहीं हुआ है, हालांकि उन्हें अंदाजा है कि उनकी पारी अब खत्म हो चुकी है।
वैसे, मोहन यादव शिवराज के किए कामों की सार्वजनिक तौर पर भले ही प्रशंसा कर रहे हों, इस कोशिश में जरूर हैं कि उनकी जड़ों पर कैसे चोट की जाए। अभी 25 दिसंबर को इंदौर में 'मजदूरों के हित-मजदूरों को समर्पित' कार्यक्रम में एक बात जोरशोर से प्रचारित-प्रसारित की गई कि इंदौर की हुकुमचंद मिल के श्रमिकों की 32 साल से बकाया राशि के भुगतान के लिए मोहन यादव ने ऐतिहासिक पहल की। यहां तक कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये इसे संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि श्रमिकों को सम्मान और वंचितों को मान दिलाना हमारी प्राथमिकता है। ध्यान रखने की बात है कि इन 32 सालों में 18 साल तो शिवराज की सरकार ही रही है। क्या अभी शिवराज पर कई ठीकरे फोड़े जाएंगे?
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अफसरों की मुश्किल है कि वे मोहन सरकार में कैसे देखें कि ऊंट किस करवट बैठ रहा। मोहन पहले भी मंत्री रहे हैं लेकिन वह कद्दावर तो कभी रहे नहीं। पहले मंत्री रह चुके जो इस बार मंत्री बने हैं, उन्हें भी नई परिस्थितियों में कितनी वकत मिली है, कहना किसी के लिए भी मुश्किल है क्योंकि माना यही जा रहा कि किसी की कुर्सी सुरक्षित नहीं है। वैसे भी, मुख्यमंत्री का अब तक जो काम रहा है, वह एडहॉक टाइप का ही अधिक है। वह अधिकांश बड़े मसले पर अफसरों से यही कह रहेः अभी समझ रहा हूं, बताता हूं। पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का भी यही हाल है। उन्हें नहीं पता कि निर्देश कहां से लें- पार्टी अध्यक्ष वी.डी. शर्मा इस बात से भले खुश हैं कि शिवराज की गद्दी छिन गई, पर वह नहीं जानते कि उनकी कुर्सी भी कब तक रहेगी।
ऐसे में मीडिया के साथी भी नहीं समझ रहे कि वे करें, तो क्या। उन्हें ब्रेकिंग तो क्या, कोई सामान्य खबर भी नहीं मिल रही। सारे कामकाज एक तरह से ठप हैं। बजट बनाने-जैसे महत्वपूर्ण मसले पर सोच-विचार भी शुरू नहीं हुआ है। मतलब, ऊपर से नीचे तक पानी ठहरा हुआ है- कंकड़ मारने को कोई तैयार नहीं है।
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