स्वामी आनंद स्वरूप न तो इस सरकार से खुश हैं, न ’हिन्दू समाज’ से। हरिद्वार हेट कॉनक्लेव, जिसे धर्म संसद कहा गया था, उसके जरिये उन्होंने और उनके साथियों ने जो जहर उगला, उससे देश-विदेश में सरकार ही नहीं, देश की भी व्यापक आलोचना हुई और उनके समर्थन में तो लोग नहीं ही आए, अधिकतर लोगों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आनंद स्वरूप ने सोशल मीडिया में अपने लिए समर्थन की गुहार तक लगाई है।
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यह जानना दिलचस्प है कि स्वामी आनंद स्वरूप हैं कौन? संन्यास से पहले उनका नाम आनंद पांडे था और उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ते समय छात्र संगठन का चुनाव लड़ने के साथ बनारस की स्थानीय राजनीति में भी जोर आजमाइश की। पर दाल नहीं गली। शुरू में इन्होंने हरिद्वार के करीब 12 आश्रमों में ठौर पाने की कोशिश की, पर वे कहीं टिक नहीं पाए। गंगा रक्षा को समर्पित हरिद्वार की आध्यात्मिक संस्था मातृ सदन में भी वह कुछ दिन रहे, पर बाद में उन्हें वहां के पीठाधीश्वर स्वामी शिवानंद सरस्वती ने सदन छोड़ने को कह दिया।
इनके नजदीकी लोगों का कहना है कि इनके संबंध दक्षिण भारत के कुछ सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों से हैं जिनकी सलाह और सहयोग पर इन्होंने शंकराचार्य परिषद का गठन किया और वह इसके अध्यक्ष हैं। 2021 हरिद्वार कुंभ में इन्होंने अपनी एक शिष्या और एक अन्य शिष्य को निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनवाया। हाल ही में उन्होंने हरिद्वार के दूधाधारी चौक क्षेत्र के पास एक बड़ी बिल्डिंग खरीद अपना आश्रम बनाया है।
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इस कथित धर्मसंसद के आयोजकों में से एक- अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा और श्री अखंड परशुराम अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के चांदपुर के रहने वाले हैं। वह पेशे से हलवाई हैं। वह अब भी हॉट हरिद्वार में गुरुजी केटरर्स के नाम से अपना धंधा चलाते हैं। अधीर कौशिक के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष, हरिद्वार विधायक और बीजेपी सरकार में शहरी विकास मंत्री रहे मदन कौशिक से पहले करीबी संबंध हुआ करते थे। लेकिन बाद में दोनों मनमुटाव हो गया।
दरअसल, करीब 6-7 साल पहले मदन कौशिक ने एक कथा का आयोजन किया था। इसमें करीब 30,000 लोगों के लिए भंडारे की व्यवस्था की गई थी। इसकी जिम्मेदारी अधीर कौशिक को दी गई थी। पर इसके पेमेन्ट के सवाल पर अधीर-मदन कौशिक में मनमुटाव इतना बढ़ा कि अंततः दोनों अलग हो गए।
इसके बाद अधीर कौशिक ने गाजियाबाद के डासना मंदिर के पीठाधीश्वर स्वामी यति नरसिंहानंद से गठजोड़ कर लिया और दोनों एक-दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ने लगे। इसी गठजोड़ का नतीजा है अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा और श्री अखंड परशुराम अखाड़ा का गठन। हालांकि इस दौरान अधीर कौशिक ने कई बार थाने में रात गुजारी और उन्हें जमानत लेनी पड़ी।
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वैसे, डासना मंदिर के पीठाधीश्वर और श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि के बारे में कुछ बातें जानना दिलचस्प है। वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के निवासी हैं और उनका पहले का नाम दीपक त्यागी है। इनकी पत्नी और बेटा लगभग साथ ही रहती हैं। उनके शिष्यों का दावा है कि यति ने अमेरिका से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक किया हुआ है। इनके पिता कांग्रेस में हुआ करते थे और इलाकाई नेता थे।
यति खुद समाजवादी पार्टी में भी रहने का दावा करते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपनी बिरादरी के कई सम्मेलन भी सपा के लिए आयोजित किए। पर बीजेपी सांसद रहे बैकुंठ लाल शर्मा ’प्रेम’ से मुलाकात के बाद उनका जीवन बदल गया। ’प्रेम’ ने हिन्दुत्व जागरण के लिए संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। संभवतः इसी कारण यति ने कट्टर हिन्दुत्ववादी रास्ता चुना।
उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने इस्लाम पर जो मनगढ़ंत किताब लिखी है, उसकी मार्केटिंग यति ही करते रहे हैं। यति इसका लोकार्पण संघ प्रमुख मोहन भागवत से कराना चाहते थे, पर भागवत इसके लिए तैयार नहीं हुए। वसीम रिजवी के धर्मांतरण और उन्हें जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी नाम देने में यति की प्रमुख भूमिका रही है। पिछले साल हरिद्वार कुंभ के बाद संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर की पदवी भी यति ने हासिल कर ली।
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यति ने करीब 8 साल पहले हरिद्वार में हर की पैड़ी पर बैठकर हिन्दुओं की रक्षा के नाम पर खून से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखा था। इस वजह से उनकी काफी चर्चा हुई थी। जब तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे, तब उनकी और जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी की उपस्थिति में हरिद्वार के श्री अखंड परम धाम में विश्व हिंदू परिषद की केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। उस बैठक में भी तमाम संतों ने यति का नाम लेकर उनके किए गए कामों की चर्चा की थी और उन्हें सरकारी सुरक्षा दिलाने की मांग की थी।
श्री अखंड परमधाम के पीठाधीश्वर स्वामी परमानंद गिरी जी महाराज हैं। वह भी विश्व हिंदू परिषद की उस बैठक में मौजूद थे। वह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य भी हैं। 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौर फायर ब्रांड नेता रहीं साध्वी ऋतंभरा उन्हें अपना गुरु मानती हैं।
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