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स्वायत्ता के बहाने विश्वविद्यालय को गरीबों से दूर करने के खिलाफ शिक्षकों और छात्रों ने किया दिल्ली में मार्च

मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा देश के 60 विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने के फैसले के खिलाफ बुधवार को राजधानी दिल्ली में 10,000 से ज्यादा शिक्षकों और छात्रों ने मार्च किया।

फोटोः विक्रांत झा
फोटोः विक्रांत झा मार्च में शामिल शिक्षक और छात्र

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा देश के 60 विश्वविद्यालयों को स्वायत्ता देने के फैसले के खिलाफ 28 मार्च को 10000 से ज्यादा लोगों ने राजधानी दिल्ली में मार्च किया। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के 5 केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित 60 विश्वविद्यालयों को स्वायत्ता देने के फैसले के खिलाफ फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटीज टीचर्स एसोसिएशन्स (एफईडीसीयूटीए) और दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डीयूटीए) के बैनर तले 10,000 से ज्यादा छात्रों और शिक्षकों ने दिल्ली के मंडी हाउस से संसद मार्ग तक मार्च किया। मार्च में शामिल शिक्षकों और छात्रों ने इस बात का अंदेशा जाहिर किया कि सरकार का इस फैसले से उच्च शिक्षा गरीबों की पहुंच से दूर हो जाएगी।

इस मार्च में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने कहा कि सरकार द्वारा दी गई स्वयत्ता का अर्थ वित्तीय स्वायत्ता से अधिक कुछ नहीं, जिसके द्वारा केंद्र सरकार चाहती है कि विश्वविद्यालय खुद से ही अपने फंड की व्यवस्था करें।

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डूटा के उपाध्यक्ष सुधांशु कुमार ने नवजीवन से कहा, वे अनिवार्य रूप से वित्तीय स्वायत्तता दे रहे हैं। वे विश्वविद्यालयों से कह रहे हैं कि वे जो अनुदान प्राप्त कर रहे हैं उन्हें खत्म कर दिया जाएगा और अब विश्वविद्यालयों को खुद अपने वित्तपोषण का प्रबंध करना होगा। दिल्ली विश्विद्यालय के शिक्षक आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा, कोष बढ़ाने के लिए छात्रों पर भारी वित्तीय बोझ डालकर उनका शुल्क बढ़ाने के अलावा विश्वविद्यालयों के पास कोई चारा नहीं होगा।

मार्च में शामिल शिक्षकों और छात्रों को संबोधित करते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, “ये कदम शिक्षा को गरीबों और पिछड़े वर्ग के लोगों की पहुंच से दूर करने वाला है। सस्ती शिक्षा युवाओं का अधिकार है, लेकिन सरकार शिक्षा में निवेश नहीं करना चाहती है। वे इस पैसे का निवेश कहीं और करना चाहते हैं। यह सरकार चाहती है कि सिर्फ 5% सबसे अमीर लोगों को ही शिक्षा मिले। अगर ये सरकार अपने प्रयासों में सफल रहती है, तो मेरे बच्चों को भी शिक्षा से वंचित किया जा सकता है।"

मार्च को संबोधित करते हुए सीपीएम नेता बृंदा करात ने कहा, “ ये भारत है आरएसएस की शाखा नहीं है। अमेरिका में जिस तरह से स्वायत्ता के नाम पर विश्वविद्यालयों को बर्बाद किया जा रहा है, वैसा ही ये यहां कर रहे हैं। ये शिक्षा से राजस्व बनाकर कॉरपोरेट को देनवा चाहते हैं।”

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राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कहा कि स्वायत्ता के नाम पर शिक्षकों से कहा जा रहा है कि आपकी तनख्वाह में जो 30% की जो बढ़ोत्तरी है वो विश्विद्यालय वहन करे, सरकार नहीं देगी। उन्होंने कहा कि शिक्षकों के वेतन का इंतेजाम खुद विश्वविद्यालयों को करने के लिए कहने का मतलब है कि सस्ती शिक्षा सस्ती नहीं रहेगी। उन्होंने कहा, अगर स्वात्ता की बात करते हो तो हमें वित्तीय स्वायत्ता नहीं, सोचने की स्वायत्ता दो, जो आप छीने जा रहे हो। सुष्मिता देव ने कहा कि वह इस मुद्दे को संसद में उठाएंगी।

आंदोलनरत शिक्षकों ने उच्च शिक्षा वित्तपोषण प्राधिकरण (एचईएफए) को भी खत्म करने की मांग की। सुधांशु कुमार ने कहा कि एचईएफए के गठन के बाद विश्वविद्यालयों को ग्रांट की बजाय ऋण दिआ जाएगा।

सातवें वेतन आयोग की स्थापना के बाद एम.फिल और पीएचडी उम्मीदवारों के भत्तों को बंद करने के केंद्र के फैसले पर भी शिक्षकों ने नाराजगी दिखाई। सुधांशू कुमार ने कहा, "अब उन्हें घर का किराया भत्ता (एचआरए) और यात्रा भत्ता (टीए) जैसे भत्ते नहीं मिल रहे हैं।”

आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा, “स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे निम्न वेतन आयोग है। एमफिल और पीएचडी छात्रों का भत्ता बंद करने का मतलब है कि आप छात्रों को शोध करने के लिए हतोत्साहित कर रहे हैं।

आंदोलकारियों की अन्य महत्वपूर्ण मांगे हैः

  • विश्वविद्यालयों का वर्गीकरण और वर्गीकृत स्वायत्तता बंद करें
  • कोष की कटौती बंद करें
  • एचईएफए और त्रिपक्षीय समझौते वापस लें
  • संवैधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण को पूरा करें
  • अकादमिक संस्थानों में भ्रष्टाचार को खत्म करें
  • परिसरों में यौन उत्पीड़न को खत्म करें और विशाखा निर्देशों का पालन हो

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