कोरोना महामारी के बढ़ते केस के बीच भारत में मंकीपॉक्स वायरस की पुष्टि ने सबको चिंता में डाल दिया है। देश में मंकीपॉक्स का पहला मामला केरल में मिल चुका है। केरल सरकार की ओर से जानकारी दी गई है कि 35 साल के संक्रमित मरीज की हालत में लगातार सुधार हो रहा है। कोल्म जिले में रहने वाले मरीज ने हाल ही में यूएई की यात्रा की थी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्थिति की निगरानी के लिए एक केंद्रीय टीम को केरल भेजा है। केरल में मंकीपॉक्स का मामला सामने आने के बाद अब केंद्र ने राज्यों को चिट्ठी लिखकर अलर्ट जारी किया है और सतर्क रहने के लिए कहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तैयार गाइडलाइन को लागू करने के निर्देश दिए गए हैं।
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विदेश से आए लोग बीमार लोगों के साथ निकट संपर्क में न आएं। खासकर त्वचा व जननांग में घाव वाले लोगों से दूर रहें।
बंदर, चूहे, छछुंदर, वानर प्रजाति के अन्य जीवों से दूर रहें।
मृत या जीवित जंगली जानवरों और अन्य लोगों के संपर्क में आने से भी बचे।
मंकीपॉक्स एक वायरल जूनोटिक बीमारी है। इसमें बुखार के साथ शरीर पर रेशेस आते हैं।
इसके लक्षण चेचक के समान होते हैं।
यह वायरस मुख्यतया मध्य और पश्चिम अफ्रीका में होता है। 2003 में मंकीपॉक्स का पहला केस सामने आया था।
जंगली जीवों का मांस नहीं खाने और अफ्रीका के जंगली जानवरों से प्राप्त उत्पाद जिनमें क्रीम, लोशन, पाउडर शामिल से नहीं करने की सलाह दी गई है।
बीमार लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली दूषित सामग्री जैसे कपड़े, बिस्तर आदि के संपर्क में न आएं।
देश में आगमन के हर प्वाइंट पर संदिग्ध मरीजों की जांच, लक्षण वाले और बिना लक्षण के मरीजों की टेस्टिंग, ट्रेसिंग और सर्विलांस टीम का गठन किया जाए।
अस्पतालों में मेडिकल तय प्रोटोकॉल के तहत इलाज और क्लिनिकल मैनेजमेंट हो।
सभी संदिग्ध मामलों की टेस्टिंग और स्क्रीनिंग एंट्री प्वाइंट्स और कम्युनिटी में की जाएगी
आइसोलेशन में रखे गए मरीज के जब तक सभी घाव ठीक नहीं होते और पपड़ी पूरी तरह से गिर नहीं जाती है को छुट्टी न दी जाए।
मंकीपॉक्स के संदिग्ध मामलों के प्रबंधन के लिए चिन्हित अस्पतालों में पर्याप्त मानव संसाधन और रसद सहायता सुनिश्चित की जाए।
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कोरोना महामारी से भारत सरकार को सीख लेनी चाहिए। सरकार को मेडिकल इमरजेंसी से निपटने के लिए वो भरपूर प्रयास करने चाहिए जो बेहद जरूरी हो, क्योंकि मंकीपॉक्स कोरोना जैसा नहीं है लेकिन सरकार ने जिस तरह कोरोना को शुरूआती समय में नजरअंदाज किया, ऐसा इस केस में भी होता है तो ये भी परेशानी का सबब बन सकती है। इसलिए जरूरी है कि मंकीपॉक्स को देखते हुए सरकारी अस्पतालों में विशेष रूप से मेडिकल हॉस्पिटल्स में तैयारी करने की जरूरत है।
वहां आईसीयू स्पेशलिस्ट तैनात करने की जरूरत है जो मंकीपॉक्स के मरीजों का उचित तरीके से इलाज कर सके। ज्यादातर डॉक्टरों या स्वास्थ्य विभाग से जुडे़ अधिकारियों का भी यही तर्क है।
इसके अलावा कोरोना महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंस और स्वच्छता के जो उपाय को हमने अपने जीवन में शामिल किया था, उसे दोबारा करने की जरूरत है। ऐसा करने से न सिर्फ कोरोना बल्कि अन्य संक्रामक रोगों को रोकने में मदद करेगी। फिलहाल की बात करें तो कोरोना के शुरूआती दौर में जिस तरह लोग लापरवाह थे वैसी ही लापरवाही फिलहाल देश में अधिकतर लोग कर रहे हैं।
इसके अलावा स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि यह समय चेचक के टीकों का उत्पादन शुरू करने का है। मंकीपॉक्स की रोकथाम और मंकीपॉक्स के मामलों के उपचार दोनों में यह हमारी मदद करेगा।
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एक हिंदी न्यूज वेबसाइट ने इंडिया मेडिकल टास्क फोर्स से जुड़े केरल के एक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉक्टर राजीव जयदेवन के हवाले से बताया है कि कोरोना के विपरीत मंकीपॉक्स तेजी से फैलने वाली बीमारी नहीं है।
डॉक्टर जयदेवन ने कहा कि मंकीपॉक्स का वायरस मुख्य रूप से मरीज के पास होने या फिर शारीरिक संपर्क से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जाता है। ऐसे में जिन्होंने मंकीपॉक्स से संक्रमित किसी मरीज के संपर्क में आए हैं, उन्हें सावधान रहने की जरूरत है।
फोर्टिज एस्कॉर्ट्स अस्पताल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के डायरेक्टर डॉक्टर सुप्रदीप घोष कहते हैं कि मास्क लगाने से कोरोना को रोकने में मदद मिलती थी लेकिन मंकीपॉक्स वायरस के साथ ऐसा नहीं है। केवल संक्रमित मरीजों के साथ निकटता या फिर शारीरिक संपर्क से बचना होगा।
संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि मंकीपॉक्स के ड्रॉपलेट्स या सतहों के माध्यम से फैलने की दूर तक कोई संभावना नहीं है और इस तरह का कोई मामला अबतक सामने नहीं आया है।
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स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक मंकीपॉक्स नामक वायरस के कारण यह संक्रमण होता है। यह वायरस ऑर्थोपॉक्सवायरस समूह से संबंधित है। इस समूह के अन्य सदस्य मनुष्यों में चेचक और काउपॉक्स जैसे संक्रमण का कारण बनते हैं।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मंकीपॉक्स के एक से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण के मामले बहुत ही कम हैं। संक्रमित व्यक्ति के छींकने-खांसने से निकलने वाली ड्रॉपलेट्स, संक्रमित व्यक्ति की त्वचा के घावों या संक्रमित के निकट संपर्क में आने के कारण दूसरे लोगों में भी संक्रमण होने की आशंका रहती है।
WHO के मुताबिक मंकीपॉक्स संक्रमण का इनक्यूबेशन पीरियड (संक्रमण होने से लक्षणों की शुरुआत तक) आमतौर पर 6 से 13 दिनों का होता है, हालांकि कुछ लोगों में यह 5 से 21 दिनों तक भी हो सकता है।
संक्रमित व्यक्ति को बुखार, तेज सिरदर्द, लिम्फैडेनोपैथी (लिम्फ नोड्स की सूजन), पीठ और मांसपेशियों में दर्द के साथ गंभीर कमजोरी का अनुभव हो सकता है।
लिम्फ नोड्स की सूजन की समस्या को सबसे आम लक्षण माना जाता है। इसके अलावा रोगी के चेहरे और हाथ-पांव पर बड़े आकार के दाने हो सकते हैं। कुछ गंभीर संक्रमितों में यह दाने आंखों के कॉर्निया को भी प्रभावित कर सकते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक मंकीपॉक्स से मौत के मामले 11 फीसदी तक हो सकते हैं। संक्रमण के छोटे बच्चों में मौत का खतरा अधिक रहता है।
मंकीपॉक्स का लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करने की जरूरत है
मंकीपॉक्स के लक्षण जैसे स्कीन में रैशेज हो तो, दूसरे के संपर्क में आने से बचना चाहिए
जिस व्यक्ति में मंकीपॉक्स के लक्षण दिख रहे हैं, उनकी चादर, तौलिया या कपड़ों जैसी पर्सनल चीजों का इंस्तेमाल नहीं करना चाहिए
बार-बार अपने हाथों को साबुन या फिर सैनिटाइजर से साफ करते रहें
मंकीपॉक्स के लक्षण दिखते ही घर के एक कमरे में अकेले रहें
अपने पालतू जानवरों से भी दूरी बनाकर रखने की जरूरत है
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दुनिया के कई देशों में मंकीपॉक्स के मामले सामने आए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2022 से 22 जून 2022 तक कुल 3413 मंकीपॉक्स के मामलों की पुष्टि हुई है। ये मामले 50 देशों से सामने आए हैं। इनमें से अधिकांश मामले यूरोपीय क्षेत्र (86%) और अमेरिका में 11% मामले सामने आए हैं।
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