पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी उज्ज्वला योजना देश भर में दम तोड़ती नजर आ रही है। योजना का मकसद प्रदूषण पर लगाम लगाना भी था, लेकिन इस योजना से वायु प्रदूषण पर लगाम लगाना दूर की कौड़ी साबित हो रही है। हालिया रिसर्च के मुताबिक, इस योजना के तहत लाभान्वित होने वाली परिवारों में से अधिकांश परिवार फिर से चूल्हा फूंक रहे हैं। इससे उज्ज्वला योजना की सफलता पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है।
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गौरतलब है कि मोदी सरकार ने उज्ज्वला योजना की शुरुआत महिलाओं को प्रदूषण से बचाने और पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर किया था। लेकिन ताजा आंकड़े बताते है कि इस योजना से प्रदूषण घटाने का लक्ष्य हासिल करना काफी मुश्किल लग रहा है। टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार, उज्ज्वला योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में जिन लोगों को गैस कनेक्शन मिले हैं, उनमें से बहुत ही ऐसे कम लोग है जो सिलिंडर को दोबारा से भरवाते हैं। रिसर्च के मुताबिक, ग्रामीण इलाके को लोग आमतौर पर सिलिंडर खत्म होने के बाद फिर से चूल्हे का रुख कर लेते हैं।
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वहीं पर्यावरण और ऊर्जा पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों की एक टीम ने आंकड़े के जरिए समझाने की कोशिश की है। अपनी रिसर्च में बताया है कि सामान्य तौर पर 1000 में से 400 एलपीजी सिलिंडर मासिक तौर पर रिफिल कराए जाते हैं। जबकि उज्जवला योजना के तहत वितरित किए गए एलपीजी सिलिंडर्स में एक माह में 1000 में से सिर्फ 100 सिलिंडर ही रिफिल कराए जाते हैं। इन आंकड़ों के आधार पर रिसर्च करने वाली टीम का आकलन है कि इस तरह से सरकार के प्रदूषण घटाने और महिलाओं को सांस संबंधी बीमारियों से बचाने का लक्ष्य हासिल करना बेहद मुश्किल काम है।
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गौरतलब है कि 2016 में केन्द्र की मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। आंकड़ों के अनुसार, 7 करोड़ गरीब परिवारों को उज्जवला योजना के तहत बीते तीन सालों में स्टोव और सिलिंडर दिए गए हैं। उज्ज्वला योजना के तहत पात्र परिवार को मुफ्त गैस कनेक्शन देने की सुविधा है। हालांकि, सामान्य ग्राहकों को जो गैस सब्सिडी दी जाती है, उससे इस योजना के लाभार्थियों को छह सिलेंडर भरवाने तक वंचित रखा जाता है। इस लिहाज से देखा जाए तो भले ही सरकार मुफ्त कनेक्शन देने की बात कहती रही हो लेकिन, इसके लाभार्थियों गैस को दोबारा भरवाने में सक्षम नहीं है।
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