देश में बीजेपी के नेतृत्व वाली पहली सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) लॉन्च की गई थी। इसे वाजपेयी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जाता है, जिसमें देश के गांवों को सड़क नेटवर्क से जोड़ना और उनका रखरखाव करना शामिल है। लेकिन साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार आने के बाद से इस योजना के तहत बना 70 प्रतिशत रोड नेटवर्क खस्ता हाल में पहुंच गया है, क्योंकि योजना में फंड की भारी कमी है।
इकनॉमिक टाइम्स की एक खबर के अनुसार वाजपेयी की इस योजना के तहत देश में 5.50 लाख किमी रोड नेटवर्क को 1,58,980 बस्तियों से जोड़ा गया है लेकिन उनमें से 70 प्रतिशत रोड डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड (डीएलपी) का सामना कर रही है। लेकिन इनकी मरम्मत के लिए योजना में पैसा ही नहीं है। बताया जा रहा है कि साल 2015 के बाद से इस योजना में फंड की भारी कमी है।
यहां बता दें कि डीएलपी में ठेकेदार को सड़क निर्माण के पांच साल बाद रोड की मेनटेनेंस के लिए रिपेयरिंग करना होता है, लेकिन मोदी सरकार में लंबे समय से जारी फंड की कमी के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है। वहीं इनमें 40 प्रतिशत सड़कें ऐसी हैं, जिनके निर्माण को 10 साल पूरे हो चुके हैं, और उन्हें रिपेयरिंग और मेटेनेंस की सख्त जरूरत है। जानकारों के अनुसार इस योजना के तहत बनी सड़कों में से केवल 14 प्रतिशत रोड नेटवर्क ही फिलहाल ठीकठाक स्थिति में है।
यहां गौर करने वाली बात ये है कि इस योजना के फंड में कमी केंद्र में 2014 में पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार आने के बाद 2015 से शुरू हुई है। यहां यह भी ध्यान रहे कि पीएम मोदी हमेशा देश की राजनीति में सबसे चर्चित अटल-आडवाणी की जोड़ी को अपना गुरू बताते रहे हैं। ऐसे में ये सवाल उठता है कि अपनी ही पार्टी के एक तरह से पितामह के ड्रीम प्रोजेक्ट से मोदी सरकार कैसे मुंह मोड़ सकती है।
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