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सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में अपना आदमी चाहती है मोदी सरकार, प्रतिनिधि को शामिल करने के लिए CJI को लिखा पत्र

केंद्र के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार न्यायपालिका पर कब्जा करना चाहती है और इसलिए सुनियोजित तरीके से टकराव हो रहा है। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह बेहद खतरनाक है।

 फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति पर फैसला करता है। कानून मंत्री ने एक पत्र में कहा कि सरकार के प्रतिनिधि होने से पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही बढ़ेगी।

देश में न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और न्यायपालिका के बीच चल रहे विवाद के बीच यह पत्र सामने आया है। कानून मंत्री का पत्र संवैधानिक अधिकारियों द्वारा कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की श्रृंखला में नवीनतम कदम है, जिसमें पहले उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष भी शामिल हो चुके हैं।

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केंद्र के कदम की तीखी प्रतिक्रिया

केंद्र सरकार के इस कदम की तीखी प्रतिक्रिया हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा कि यह बेहद खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल भी सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। वहीं कांग्रेस ने भी सोमवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार न्यायपालिका पर कब्जा करना चाहती है और इसलिए सुनियोजित तरीके से टकराव हो रहा है। 

इस पर जवाब देते हुए रिजिजू ने ट्वीट किया- मुझे उम्मीद है कि आप अदालत के निर्देश का सम्मान करेंगे! यह कदम राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के दिए निर्देशों के तहत ही उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कॉलेजियम सिस्टम के एमओपी को पुनर्गठित करने का निर्देश दिया था।

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कानून मंत्री का न्यायपालिका में नियुक्ति पर हमला जारी

एक अन्य ट्वीट में कानून मंत्री ने कहा, "माननीय चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को भेजे लेटर में कंटेंट्स सुप्रीम कोर्ट की पीठ के निर्देशों और टिप्पणियों के अनुरूप हैं। सुविधाजनक राजनीति ठीक नहीं है, खासकर न्यायपालिका के नाम पर। भारत का संविधान सर्वोच्च है और कोई भी इससे ऊपर नहीं है।" इससे पहले बीते साल रिजिजू ने एक मीडिया कार्यक्रम में कहा था कि न्यायाधीश केवल उन लोगों की नियुक्ति या पदोन्नति की सिफारिश करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं और जरुरी नहीं कि हमेशा नौकरी के लिए सबसे योग्य व्यक्ति वही होते हैं।

बाद में संसद में मल्लिकार्जुन खड़गे और डॉ जॉन बिट्टास समेत कई नेताओं द्वारा उठाए गए कई सवालों का जवाब देते हुए कानून मंत्री ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि उपयुक्त संशोधनों के साथ राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को फिर से पेश करने का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।रिजिजू ने कहा कि संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक सतत, एकीकृत और सहयोगात्मक प्रक्रिया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम पर रिजिजू की टिप्पणी पर जताई थी कड़ी आपत्ति

पिछले साल 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की हालिया टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। शीर्ष अदालत ने जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर भी केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया था और कहा था कि सरकार कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों पर अपनी आपत्ति जता सकती है, लेकिन वह नामों को रोककर नहीं रख सकती है।

गौरतलब है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में आई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार 2014 में न्यायाधीशों की नियुक्ति के सिस्टम को बदलने के प्रयास के तहत एनजेएसी अधिनियम लाई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम सिस्टम को दोहराते हुए 4:1 के फैसले से 99वें संविधान संशोधन अधिनियम के साथ एनजेएसी अधिनियम को रद्द कर दिया।

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