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मोदी सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ पुस्तकों और पाठ्यक्रमों के नियंत्रण पर: मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर

दिल्ली के कॉस्टीट्यूशन कल्ब में 11 से 13 अप्रैल तक हो रहे जन ट्रिब्युनल में देश के 18 राज्यों से छात्रों-शिक्षकों के अलावा नागरिक समाज के लोग, मीडियाकर्मी और वकील बड़ी संख्या में भागीदारी कर रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया  दिल्ली में हो रहे जन ट्रिब्युनल में बोलती हुईं प्रोफेसर रोमिला थापर

“हम एक संकटपूर्ण समय में चल रहे हैं।” यह कहना है मशहूर इतिहासकार प्रोफेसर रोमिला थापर का। देश के शैक्षणिक संस्थाओं पर बढ़ते हमलों के खिलाफ दिल्ली में हो रहे जन ट्रिब्युनल में बोलते हुए प्रोफेसर थापर ने कहा कि वर्तमान सरकार का पूरा ध्यान सिर्फ पुस्तकों और पाठ्यक्रमों के नियंत्रण पर है। जेएनयू, टीआईएसएस, एचसीयू, बीएचयू जैसे शैक्षणिक संस्थाओं पर जितनी तेजी के साथ हमले हो रहे हैं वैसा पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि आज के समय में ज्यादातर शिक्षक अस्थाई हैं, जिसकी वजह से वह रोजगार जाने के डर से कभी भी सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ बोल पाने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं।

दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में 11 से 13 अप्रैल तक पीसीएसडीएस द्वारा आयोजित तीन दिवसीय जन ट्रिब्युनल में देश भर के 18 राज्यों से छात्रों, शिक्षकों के अलावा नागरिक समुदाय के लोग, मीडियाकर्मी और वकील बड़ी संख्या में भागीदारी कर रहे हैं।

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से ही असहमति और विरोध की आवाजों पर लगातार हो रहे हमलों के निशाने पर छात्रों का एक बड़ा तबका रहा है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंजेस, जादवपुर विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय आदि में सरकार की नीतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर छात्र आंदोलन हुए, जिनका दमन सरकार और उसके नुमाइंदों ने करने की कोशिश की।

Published: 11 Apr 2018, 6:34 PM IST

इस पूरे मसले पर बोलते हुए गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ता रोहित प्रजापति ने कहा कि पीसीएसडीएस का गठन देश में सिकुड़ रहे लोकतांत्रिक जगहों और असहमति पर बढ़ रहे हमलों को देखते हुए किया गया है। उन्होंने जानकारी दी कि जन ट्रिब्युनल में देश भर के अलग-अलग शैक्षणिक संस्थाओं के छात्रों और शिक्षकों के लगभग 110 बयानों को सुनने के बाद निर्णायक मंडल द्वारा एक अंतरिम रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इस रिपोर्ट के साथ-साथ निर्णायक मंडल की सिफारिशों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य संस्थाओं को भेजा जाएगा।

इस मौके पर शिक्षाविद् कृष्ण कुमार ने एक वीडियो संदेश के जरिए कहा कि देश में शैक्षणिक संस्थाओं पर बढ़ते हमले कोई नई परिघटना नहीं है, लेकिन बीते महीनों में हुई घटनाओं ने शिक्षा व्यवस्था को हिला कर रख दिया है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा कि देश में शिक्षा व्यवस्था को एक सोच-समझी साजिश के तहत खत्म किया गया है।

Published: 11 Apr 2018, 6:34 PM IST

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Published: 11 Apr 2018, 6:34 PM IST