मोदी सरकार ने कार्पोरेट घरानों से राजनीतिक चंदा लेने के लिए बने कानून को न सिर्फ बदला, बल्कि विवादित इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने का कानून बिना संसद के उच्च सदन राज्यसभा की सहमति से पास करा दिया गया। यह सनसनीखेज खुलासा हफिंग्टन पोस्ट इंडिया ने किया है।
हफिंग्टन पोस्ट ने आरटीआई से मिले जवाब के हवाले से दावा किया है कि कानून मंत्रालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को लेकर एतराज जताते हुए इसे “गैरकानूनी और असंवैधानिक” कहा था।
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इतना ही नहीं, हफिंग्टन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार ने कार्पोरेट घरानों को राजनीति में चुपके से पैसा लगाने की छूट दे दी और साथ ही ऐसे मामलों में होने वाली बैठकों की विस्तृत रिपोर्ट यानी मिनट्स ऑफ द मीटिंग रखने की सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय बाध्यता को भी खत्म कर दिया ताकि पैसे के लेनदेन का सुराग न लगाया जा सके।
रिपोर्ट में इस कानून के लिए राज्यसभा को नजरंदाज़ करने क लिए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली पर उंगली उठाते हुए कहा गया है कि, “(जेटली ने) राज्यसभा को नजरंदाज़ करने के लिए इस बिल को मनी बिल के तौर पर पेश किया। संविधान के अनुच्छेद 110 के मुताबिक मनी बिल को राज्यसभा की मंजूरी की जरूरत नहीं होती है।” ध्यान रहे कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना अरुण जेटली ने ही अपने कार्यकाल में शुरु की थी।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने कंपनी एक्ट के एक अहम प्रावधान को खत्म कर इस विवादित कानून को पास किया है। इस प्रावधान के तहत यह व्यवस्था थी कि सिर्फ मुनाफा कमाने वाली कंपनियां ही किसी राजनीतिक दल को चंदा दे सकती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रावधान के अनुसार किसी भी कंपनी द्वारा राजनीतिक दल को चंदा देने की सीमा तय थी और उसे यह भी बताना होता था कि उसने किस पार्टी को चंदा दिया है। लेकिन इस प्रावधान को खत्म करने के बाद कोई भी कंपनी असीमित चंदा दे सकती है और उसे किसी को बताने की जरूरत भी नहीं है कि उसने किसको चंदा दिया।
रिपोर्टट के मुताबिक कानून मंत्रालय ने सरकार से आग्रह किया था कि इस व्यवस्था को आमतौर पर न इस्तेमाल किया जाए, लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया। हफिंग्टन पोस्ट इससे पहले भी रिपोर्ट दे चुका है कि किस तरह मोदी सरकार ने आरबीआई और चुनाव आयोग की आपत्तियों को कूड़ेदान में डाल दिया था।
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