कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की गिरती रैंकिंग पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कई ट्वीट कर कहा कि भारत सरकार ने इस रैंकिंग को खारिज कर दिया है, लेकिन यह समाधान नहीं है। उन्होंने ट्वीट में कहा, "सूचना एवं प्रसारण मंत्री, श्री अनुराग ठाकुर ने वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग को खारिज कर दिया है। उनका तर्क: प्रेस की स्वतंत्रता की स्पष्ट परिभाषा का अभाव।"
चिदंबरम ने प्रेस फ्रीडम की परिभाषा भी सामने रखी है। उन्होंने कहा, "परिभाषा काफी सरल और स्पष्ट है। प्रेस की स्वतंत्रता वह स्वतंत्रता है, जिसे मोदी सरकार ने छीन लिया है। उदाहरण: राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, करण थापर, परंजॉय गुहा ठाकुरता, बॉबी घोष, पुण्य प्रसून वाजपेयी, रुबिन, कृष्ण प्रसाद और सूची में और भी बहुत से लोग हैं।"
चिंदबरम ने इस मामले में एनडीटीवी न्यूज चैनल दैनिक भास्कर पर छापों की मिसाल भी दी। उन्होंने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि प्रेस की स्वतंत्रता पुनर्स्थापित हो तो रैंकिंग अपने आप ऊपर आ जाएगी।
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इसके अलावा पी चिदंबरम ने कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज को लेकर भी मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने इस बारे में भी कई ट्वीट किए। उन्होंने कहा, "यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त शोध और विद्वतापूर्ण लेखन मौजूद है कि बूस्टर शॉट (वैक्सीन की बूस्टर डोज़) अनिवार्य हैं। कोविशील्ड की प्रभावकारिता पर द लैंसेट का अध्ययन - तीन महीने से अधिक नहीं - खतरे की घंटी बजनी चाहिए। बूस्टर शॉट्स की अनुमति देने का समय अभी है।"
उन्होंने आगे कहा कि, "फाइजर और मॉडर्ना जैसे अन्य अनुमोदित टीकों के उपयोग की अनुमति देने का समय अभी है। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (संरक्षणवाद) के आर्थिक हितों की रक्षा करने के अपने गलत उत्साह में सरकार, टीकाकरण कराने वाले लाखों भारतीयों को संक्रमण की चपेट में झोंक रही है।"
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उन्होंने आगे कहा कि, "अगर तीसरी लहर बड़ी संख्या में टीका लगाए गए भारतीयों को प्रभावित करती है और संक्रमित करती है, तो अकेले सरकार ही दोषी होगी।"
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