केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने किसान आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा देने से साफ इनकार कर दिया। सरकार ने कहा कि आंदोलन के दौरान किसानों की मौत का कोई आंकड़ा नहीं है, ऐसे में किसी भी किस्म के मुआवजे का सवाल पैदा नहीं होता। मुआवजे की मांग से दो टूक इनकार करते हुए सरकार ने कहा कि इसका कोई आंकड़ा नहीं है, इसलिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं उठता।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में सांसदों के एक समूह द्वारा 'कृषि कानूनों के आंदोलन' पर उठाए गए सवालों के जवाब में यह बात कही। सांसद आंदोलन से जुड़े अन्य सवालों के अलावा, किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या जानना चाहते थे। इसके साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में और उसके आसपास चल रहे आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों की संख्या पर डेटा और क्या सरकार का उक्त आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का विचार है, इसकी जानकारी भी मांगी गई थी।
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लेकिन कृषि मंत्राल ने साफ तौर पर कह दिया कि इस मामले में उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है और इसलिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं उठता। इस बारे में पूछे गए सवाल के जवाब देते हुए विस्तृत रूप से बताया गया था कि कैसे सरकार ने स्थिति को काबू में करने के लिए किसान नेताओं के साथ 11 दौर की चर्चा की है।
ध्यान रहे कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मुख्य मांग के अलावा अन्य मांगों के लिए किसान एक साल से भी अधिक समय से आंदोलन कर रहे हैं। किसानों की मांगों में आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने और मृतक किसानों को मुआवजे देने की मांग भी शामिल है। साथ ही मृतक किसानों के परिजनों के लिए पुनर्वास की मांग भी की गई है। बता दें कि किसान नेताओं ने आंदोलन के दौरान मृतक किसानों को शहीद किसान कहा है।
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया है कि पिछले साल से आंदोलन के दौरान लगभग 700 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं।
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