केंद्र सरकार ऐसे रिटायर्ड अफसरों की पेंशन रोक सकती है जो सेवा के बाद सरकार की आलोचना करेंगे या कोई ऐसा बयान देंगे जिसमें सरकार के काम से असहमति जताई गई हो। केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने इस विषय सिफारिश की है कि ऐसे सभी अफसरों को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले सभी लाभ रोक दिए जाएं। सरकार ने अभी 6 जुलाई को इस विषय में ऑल इंडिया सर्विसेस (डेथ कम रिटायरमेंट बेनिफिट्स) रूल 1958 में संशोधन को अधिसूचित किया है।
हालांकि इससे पहले भी सेवानिवृत्त अफसरों को लेकर नियम मौजूद हैं, जिनमें कहा गया है कि अगर कोई पेंशनर यानी रिटायर्ड अफसर किसी गंभीर आचरण के मामले में दोषी पाया जाता है या उसे सजा होती है, तो यह लाभ वापस ले लिए जाएंगे। लेकिन ऐसा फैसला सिर्फ उस राज्य सरकार के अनुमोदन के बाद ही केंद्र सरकार ले सकती है जहां के कैडर का वह अफसर होगा।
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लेकिन जुलाई, 2023 में किए गए संशोधनों के बाद अब केंद्र सरकार को ऐसे मामलों में एकतरफा फैसला लेने का अधिकार मिल गया है, जिसमें वह बिना किसी राज्य सरकार के अनुमोदन के ही अफसरों की पेंशन को रोक सकती है। कंस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप ने एक बयान में इस मामले को काफी गंभीर बताते हुए चिंता जताई है। बयान में कहा गया है कि यह न सिर्फ संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन और केंद्र सरकार को असीमित और कठोर अधिकार देता है बल्कि यह अखिल भारतीय सेवा संरचना में परिकल्पित नियंत्रण के द्वंद्व के अनुरूप भी नहीं है।
बयान में कहा गया है कि इस नियम में इस बात को स्पष्ट नहीं किया गया है कि आखिर किसी रिटायर्ड अफसर का अच्छा व्यवहार और गंभीर आचरण क्या होगा, और सिर्फ इतना कह दिया गया है कि सरकारी गोपनीयता कानून के तहत आने वाली सूचनाओं का खुलासा करने पर ऐसा होगा। बाकी जो कुछ कहा गया है उसे पूरी तरह केंद्र सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
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बयान के मुताबिक आपराधिक दोषसिद्धि के बावजूद भी पेंशन जारी रखना या पेंशन रोकना कानून की दृष्टि से सही नहीं है क्योंकि इसमें 'दोहरे खतरा' है, जैसे किसी एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित करना। बयान में आगे कहा गया है कि, कानून किसी अपराध के अपराधी को दंडित करता है, न कि उनके रिश्तेदारों या परिवार को, जबकि पेंशन रोकना इसी किस्म का दंड होगा।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट ने कई फैसलों में माना है कि पेंशन एक कर्मचारी का अधिकार है और पहले दी जा चुकी सेवाओं के लिए एक प्रकार का विलंबित भुगतान है। बयान में रेखांकित किया गया है कि पेंशन, सरकार द्वारा दी गई कोई खैरात नहीं है; न ही यह सरकार के विवेक पर निर्भर करता है।
बयान में कहा गया है कि, “पेंशनभोगी अब सरकारी कर्मचारी नहीं हैं: वे किसी भी अन्य नागरिक की तरह अभिव्यक्ति की समान स्वतंत्रता के साथ देश के स्वतंत्र नागरिक हैं। 'अच्छे आचरण' की आड़ में इस अधिकार पर रोक लगाकर सरकार उनके खिलाफ भेदभाव कर रही है और इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन कर रही है।''
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रिटायर्ड अधिकारियों ने बयान मे कहा है कि नए नियम का उद्देश्य सरकार की किसी भी प्रकार की आलोचना को चुप कराना और पेंशनभोगियों को जीवन भर के लिए ऐसा "बंधुआ मजदूर" बनाकर नागरिकों की उस निम्न श्रेणी में डालना है जिसे कभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल नहीं होती है। बयान के मुताबिक पेंशनभोगी स्वतंत्र नागरिक हैं और उनके और सरकार के बीच अब कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है।
संवैधानिक आचरण समूह ने राज्यों की सरकारों और केंद्र सरकार से इस नियम की नए सिरे से समीक्षा कर इसे समाप्त करने की प्रक्रिया अपनाने और तब तक के लिए अंतरिम रूप से इसे स्थगित रखने का आग्रह किया है।
इस बयान पर 94 पूर्व अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए हैं।
कंस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप का पूरा बयान आप इस लिंक में पढ़ सकते हैं
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