जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर में कुकी और जो-जोमी आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग के बीच, मिजोरम में सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सभी जोहनाथलक (ज़ो जनजातियों) के लिए एक मातृभूमि स्थापित करने के उद्देश्य से सभी जनजातियों के एकीकरण के लिए अभियान तेज कर दिया है।
मणिपुर में 3 मई को मेइती और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 150 से अधिक लोग मारे गए हैं और 600 से अधिक लोग घायल हुए हैं। मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के तुरंत बाद कुकी, ज़ो और ज़ोमी समुदाय के आदिवासियों ने मिज़ोरम में आना शुरू कर दिया था। राज्य में वर्तमान में 12,000 से अधिक विस्थापित आदिवासी रहते हैं, जिनमें ज्यादातर मणिपुर के कुकी-ज़ो-ज़ोमी समुदाय के लोग हैं।
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मिज़ोरम में चिन-कुकी-ज़ो आदिवासी और मिज़ोज़ का संबंध ज़ो समुदाय से है। वे एक ही सांसकृतिक प्रष्ठभूमि और वंश साझा करते हैं। इसके अलावा, वे सभी ईसाई हैं। म्यांमार और बांग्लादेश में कुकी-चिन समुदाय भी मिज़ो समुदाय से संबंधित है, जिसमें विभिन्न जनजातियां शामिल हैं, जिन्हें कभी-कभी ज़ोफ़ेट या ज़ो के वंशज के रूप में जाना जाता है।
मिजोरम के मुख्यमंत्री और एमएनएफ सुप्रीमो जोरमथांगा ने कहा कि 'ग्रेटर मिजोरम' की अवधारणा के तहत एक प्रशासनिक व्यवस्था बनाने के लिए मिजोरम के पड़ोसी राज्यों के मिजो-जो आबादी वाले क्षेत्रों के एकीकरण का सवाल एमएनएफ की मांगों में से एक है। इसी तर्ज पर नेताओं ने भी जोरदार अभियान चलाया है। मिजोरम के उप मुख्यमंत्री तावंलुइया ने कहा कि एमएनएफ की स्थापना मिज़ो राष्ट्रवाद को बनाए रखने, मिज़ो की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को संरक्षित करने और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, म्यांमार और बांग्लादेश में रहने वाली बिखरी हुई ज़ो जातीय जनजातियों के लिए एक एकीकृत और एकल प्रशासनिक इकाई की वकालत करने के मूल मूल्यों के साथ की गई थी।''
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तत्कालीन प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन एमएनएफ के 'सेना प्रमुख' के रूप में काम कर चुके तावंलुइया ने कहा कि एमएनएफ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371जी में निहित मिज़ो संस्कृतियों और धार्मिक मान्यताओं की रक्षा और प्रचार करने का प्रयास करेगा। संविधान का अनुच्छेद 371जी मिजोरम के लिए विशेष प्रावधानों से संबंधित है। यह अनुच्छेद 53वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1986 द्वारा जोड़ा गया था।
तावंलुइया ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एमएनएफ और भारत सरकार के बीच 1986 के शांति समझौते ने इनर लाइन परमिट (आईएलपी) प्रणाली की निरंतरता सुनिश्चित की, जो वर्तमान में राज्य के स्वदेशी लोगों की जनसांख्यिकीय स्थिति की रक्षा के लिए मिजोरम में लागू है। समान नागरिक संहिता के बारे में एमएनएफ नेता ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, लेकिन यूसीसी ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच बड़ी चिंता पैदा कर दी है। उन्होंने कहा कि मिजोरम में चर्चों और नागरिक सामाजिक संगठनों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया, जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि यूसीसी को उसके मूल स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
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पूर्ववर्ती उग्रवादी संगठन एमएनएफ को 1986 में सामने आने के बाद, एक राजनीतिक दल में बदल दिया गया और चुनाव आयोग द्वारा इसे राज्य पार्टी के रूप में मान्यता दी गई। वर्ष 1986 में शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, एमएनएफ के नेतृत्व में दो दशकों के संघर्ष और विद्रोह को समाप्त करते हुए, 20 फरवरी 1987 को मिजोरम भारत का 23 वां राज्य बन गया।
ज़ोरमथांगा ने पहले कहा था कि 'ग्रेटर मिज़ोरम' की अवधारणा एमएनएफ की मांगों में से एक थी। उन्होंने कहा कि भारत में सभी जातीय ज़ो या मिज़ो जनजातियों का एकीकरण और उन्हें एक प्रशासनिक इकाई के तहत लाना एमएनएफ के संस्थापकों का मुख्य उद्देश्य था, जिसमें लालडेंगा भी शामिल थे, जो अगस्त 1986 से अक्टूबर 1988 तक मिजोरम के मुख्यमंत्री थे।हालांकि, उन्होंने कहा कि राज्य 'ग्रेटर मिजोरम' या मणिपुर में ज़ो या मिज़ो आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों के राज्य के साथ एकीकरण के मुद्दे पर सीधे मणिपुर के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
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