उत्तर प्रदेश के मथुरा में कृष्ण जन्मस्थली के पास नई बस्ती में रेलवे की भूमि पर कब्जा करने वालों के मकानों पर हो रही बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई में याचिकाकर्ता को कोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने अतिक्रमण हटाओ अभियान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निचली अदालत जाने को कहा है। कोर्ट ने साफ किया है कि याचिकाकर्ता कोर्ट में लंबित मामले में अपनी बात रखें।
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याचिकाकर्ता ने रेलवे की ओर से जमीन से अतिक्रमण हटाए जाने के मामले को कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में याचिकाकर्ताओं का दावा था कि जमीन पर मालिकाना हक उनका है। वहीं रेलवे की ओर से अतिमक्रण कर निर्माण किए जाने का आरोप लगा था। मथुरा-वृंदावन रेल लाइन के ब्रॉड गेज के लिए अतिक्रमण हटाने का कार्य किया जा रहा था। इसके खिलाफ स्थानीय लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
गौरतलब है कि भारतीय रेलवे अपनी पटरी के पास बसे लोगों के खिलाफ अतिक्रमण हटाओ की कार्रवाई कर रहा है। याचिकाकर्ता का दावा है कि लोग 100 साल से भी अधिक से वहां रह रहे हैं। याचिकाकर्ता याकूब शाह की ओर से पेश वकील की ओर से पिछली सुनवाई में दलील दी गई थी कि 100 घरों पर बुलडोजर चलाया गया है। 70-80 घर बचे हैं। अतिक्रमण अभियान के खिलाफ उनकी याचिका निचली अदालत और इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है, लेकिन रेलवे ने बुलडोजर चलाने शुरू कर दिए।
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मथुरा से वृंदावन को जोड़ने वाली रेल लाइन अभी मीटरगेज है। पिछले कई सालों से इस पर रेल सेवा बंद है। जिसके बाद लाइन के दोनों तरफ लोगों ने पक्के मकान बना लिए हैं। रेलवे अब इस लाइन को ब्रॉड गेज करने जा रही है। रेलवे ने अपनी जमीन खाली करने के लिए वहां बसे लोगों को तीन बार नोटिस दिया, लेकिन उन लोगों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसके बाद रेलवे ने बुलडोजर कार्रवाई शुरू की।
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