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जलवायु परिवर्तन से हो रही है दालों और सब्जियों के उत्पादन में भारी कमी, इससे जन स्वास्थ्य पर व्यापक असर

जन स्वास्थ्य को तापमान वृद्धि सीधा प्रभावित करती है, पर बात यहीं खत्म नहीं होती। सबसे बड़ा असर पोषण पर पड़ने वाला है। मछलियां समाप्त होती जा रही हैं और कृषि उत्पाद का उत्पादन कम होने लगा है। जहां उत्पादन कम नहीं हो रहा है वहां पोषक पदार्थों की कमी होती जा रही है।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से सब्जियों और दालों के उत्पादन में कमी होगी

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का यही हाल रहा तो साल 2050 तक विश्व में सब्जियों और दालों के उत्पादन में एक तिहाई की कमी हो जायेगी। इसका कारण बढ़ता तापमान और पानी की कमी है। अध्ययन के मुख्य लेखक डॉ पौलिन स्चील्बीक के अनुसार सब्जियों और दालों के उत्पादन में कमी का सीधा असर जन स्वास्थ्य पर पड़ेगा क्योंकि भोजन में अनेक पोषक तत्वों की कमी हो जायेगी।

कुछ साल पहले तक वैज्ञानिक समुदाय जलवायु परिवर्तन के बारे में एकमत नहीं था, पर अब यह एक सच्चाई है। आंधी, तूफान, चक्रवात, सूखा, बिन मौसम बारिश इत्यादि इसकी गवाही दे रहे हैं। हर साल पिछले साल से अधिक गरम होता जा रहा है। दक्षिणी ध्रुव की बर्फ अभूतपूर्व तेजी से पिघल रहा है। इसीलिए अब वैज्ञानिक समुदाय इसके होने वाले प्रभावों के अध्ययन पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।

जन स्वास्थ्य को तापमान वृद्धि सीधा प्रभावित करती है, पर बात यहीं खत्म नहीं होती। सबसे बड़ा असर पोषण पर पड़ने वाला है। मछलियां समाप्त होती जा रही हैं और कृषि उत्पाद का उत्पादन कम होने लगा है। जहां उत्पादन कम नहीं हो रहा है वहां पोषक पदार्थों की कमी होती जा रही है। पिछले दिनों एक अनुसंधान में चावल में पोषक पदार्थों में कमी की बात की गयी थी। तापमान वृद्धि से गेहूं की पैदावार में कमी आ रही है।

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डॉ पौलिन के अनुसार उनके अध्ययन से स्पष्ट है कि तापमान वृद्धि और पानी की कमी जैसे पर्यावरणीय प्रभावों से विश्व में कृषि उत्पादकता को वास्तविक खतरा है, जिसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा और जन स्वास्थ्य पर पड़ना निश्चित है। सब्जियां और दालें स्वस्थ्य, संतुलित और सतत पोषण के लिए सबसे आवश्यक हैं। पोषण के दिशानिर्देश लगातार लोगों को अपने भोजन में इनको अधिक से अधिक शामिल करने का सुझाव देते हैं। ऐसे में दालों और सब्जियों के उत्पादन में कमी का सीधा असर आबादी के पोषण और स्वास्थ्य पर पड़ना तय है। डॉ पौलिन की टीम ने यह अध्ययन वर्ष 1975 के बाद इसी विषय पर प्रकाशित पूरे विश्व के शोध पत्रों के आधार पर किया है, इसीलिए इस निष्कर्ष से दीर्घकालीन अनुमान लगाना आसान है। इनके अनुसार वर्ष 2050 तक दालों के उत्पादन में 9 प्रतिशत और सब्जियों के उत्पादन में 35 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।

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डॉ पौलिन के अनुसार समय रहते ध्यान देकर इस समस्या से कुछ हद तक निपटा जा सकता है। इसके लिए नए किस्म के बीजों के आविष्कार पर ध्यान देना होगा जिनका उत्पादन बढ़ते तापमान से प्रभावित न हो और जो कम पानी में भी पनप सकें। परम्परागत कृषि के तौर तरीकों में भी बदलाव लाने की जरूरत है जो सतत विकास का हिस्सा बन सकें। वर्त्तमान में पर्यावरण के अनुकूल विकास में सबसे बड़ी बाधा कृषि है, इसलिए इसमें तत्काल परिवर्तन लाने की जरूरत है।

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वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2050 तक बहुत कुछ बदलने वाला है। जलवायु परिवर्तन के कारण अभूतपूर्व मानव विस्थापन होगा और बहुत सारे सागर तटीय क्षेत्र डूब चुके होंगे। पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा मरूभूमि बन चुका होगा। कुल मिलाकर इतना तो तय है कि दुनिया का नक्शा बदल चुका होगा। इसीलिए पूरे विश्व समुदाय हो मिलकर इस समस्या पर ध्यान देना होगा तभी हम भविष्य के लिए तैयार हो सकेंगे।

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