महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने मंगलवार सुबह देश के कई शहरों में एक साथ कई लेखकों, विचारकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों के घरों-दफ्तरों पर छापेमारी की है। इन छापेमारियों और गिरफ्तारियों का चौतरफा विरोध हो रहा है।
कांग्रेस नेता जयपाल रेड्डी ने लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का विरोध किया है। उन्होंने कहा, “मैं इस गिरफ्तारी का विरोध करता हूं। जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, वे निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम करते हैं।”
कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने भी इन गिरफ्तारियों का विरोध किया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के यहां छापे और उनकी गिरफ्तारी को शेरगिल ने गलत बताया।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का आरजेडी ने विरोध किया है। आरजेडी ने कहा, “देश के अलग-अलग हिस्सों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के घरों पर की जा रही छापेमारी की हम निंदा करते हैं। जो लोग भी मानवाधिकार की रक्षा और दलितों के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं, बीजेपी की हुकूमत में उनके घरों पर छापेमारी हो रही है।”
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मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर एमनेस्टी इंडिया ने कड़ा विरोध जताया है। एमनेस्टी इंडिया ने कहा, “महाराष्ट्र पुलिस देश के अलग-अलग हिस्सों में छापेमारी कर रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है। सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया गया है। सरकार को भय का माहौल पैदा करने की बजाय अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करनी चाहिए।”
वहीं सुधा भारद्वाज ने आशंका जताई है कि पुलिस उनके घर में छापेमारी के बाद सामानों के साथ छेड़छाड़ कर सकती है। इस बारे में नवजीवन को दिल्ली में वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने बताया कि उनकी बात सुधा भारद्वाज से हुई थी और उन्होंने यह आशंका जताई कि उनके घर से बरामद चीजों के साथ छेड़खानी हो सकती है। सुधा भारद्वाज के घर से दो लैपटॉप, दो फोन, एक पेनड्राइव और डायरी आदि पुलिस ने अपने छापे से बरामद की है। सुधा भारद्वाज ने वृंदा का बहुत स्पष्ट ढंग से बताया कि पुलिस ने उनके डाटा रिकॉर्ड को नहीं दिखाया है। इसलिए उन्हें आशंका है कि पुलिस डाटा को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ सकती है, उसमें अपनी तरफ से डाटा डाल सकती है, डायरी में भी चीजों को लिख सकती है।
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इस गिरफ्तारी को लेकर प्रशांत भूषण ने निंदा की। उन्होंने कहा कि अवाज को दबाने के लिए उनकी गिरफ्तारी की गई है।
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इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा इन गिरफ्तारियों पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट को स्वतंत्र आवाज को दबाने के लिए हो रहे उत्पीड़न को रोकना चाहिए।
एक साथ कई बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने कहा कि हत्यारी भीड़ को तैयार करने और दिनदहाड़े हत्या करने वालों की बजाय वकीलों,कवियों, लेखकों, पत्रकारों और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के घरों पर छापोमारी की जा रही है, जो बहुत साफ तौर पर बताता है कि भारत किस ओर जा रहा है।
बता दें कि भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के दौरान नए साल के दिन पुणे में दलित समूहों और दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के बीच संघर्ष हो गया था जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एलगार परिषद का आयोजन किया गया था। इस परिषद के दूसरे दिन भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई थी। हिंसा के लिए एलगार परिषद के आयोजन पर भी आरोप लगाया गया था।
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