राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आधिकारिक मीडिया केंद्र वाली संस्था है विश्व संवाद केंद्र। इन दिनों देश भर में विभिन्न आयोजनों की खबरें आप ध्यान से देखें, तो इससे जुड़े या सम्मानित हुए कई लोग आपको चारो ओर नजर आएंगे। लेकिन दूसरी जगहों पर अगर कोई गैर-हिंदू अपने काम के बल पर नजर आए, तो इन्हें हल्ला बोल देने से गुरेज नहीं है। अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल के साथ यही हो रहा है। इसका तीन दिवसीय सम्मेलन अगले साल उस्मानाबाद में 10 जनवरी से होना है।
Published: 04 Oct 2019, 8:00 AM IST
इस बार फादर फ्रांसिस दिब्रिटो को सर्वसम्मति से इसका अध्यक्ष चुना गया है। फादर दिब्रिटो 76 साल के हैं और वह मुंबई के उपनगरीय इलाके वसई के रहने वाले हैं। उन्होंने अपने लेखन से मराठी साहित्य को काफी समृद्ध किया है। उनकी पुस्तक सुबोध बायबल-नवा करार को प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार (अनुवाद के लिए) मिल चुका है। इंसानियत की वकालत करने वाले दिब्रिटो को महाराष्ट्र सरकार भी ज्ञानोबा-तुकाराम पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। वह मराठी अखबारों में नियमित रूप से कॉलम लिखते हैं और पर्यावरण के लिए भी काम करते हैं।
लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों को लग रहा है कि एक गैर-हिंदू, वह भी ईसाई, इस तरह के सम्मान का हकदार किस तरह हो सकता है। दिब्रेटो का विरोध करने वालों में ब्राह्मण महासंघ और विश्व हिंदू परिषद सहित कई हिंदूवादी संगठन प्रमुख हैं। इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि दिब्रिटो ने एक कार्यक्रम में मॉब लिंचिंग पर कहा था कि गाय से ज्यादा इंसान के बारे में सोचना चाहिए।
Published: 04 Oct 2019, 8:00 AM IST
महामंडल के अध्यक्ष कौतिकराव ठाले-पाटील और कार्यवाहक अध्यक्ष मिलिंद जोशी ने कहा है कि दिब्रिटो के नाम की घोषणा करने के बाद से उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही है। बावजूद इसके ये दोनों पदाधिकारी फिलहाल महामंडल के फैसले पर डटे हुए हैं और उन लोगों ने पुणे पुलिस से सुरक्षा की मांग भी की है। दिब्रिटो को भी धमकी की परवाह नहीं है। उनका कहना है कि वह मराठी भाषा की सेवा कर रहे हैं और अगले जन्म में भी वह महाराष्ट्र की मिट्टी में ही पैदा होना चाहते हैं।
वैसे, अध्यक्ष ठाले-पाटील का कहना है कि सम्मेलन के अध्यक्ष के लिए पहली बार इतना महान ईसाई साहित्यकार मिला है, यह सामाजिक समता का योग्य संदेश है। महामंडल के सामने सम्मेलन के अध्यक्ष के लिए दिब्रिटो के अलावा भारत ससाणे, प्रवीण दवणे, प्रतिभा रानाडे के नाम भी प्रस्तावित थे। लेकिन सर्वसम्मति से दिब्रिटो के नाम पर मुहर लगी क्योंकि उनका सामाजिक और साहित्यिक काम सब पर भारी पड़ गया।
Published: 04 Oct 2019, 8:00 AM IST
पिछले साल भी महामंडल के कार्यक्रम को लेकर इसी तरह विवाद पैदा किया गया था। पिछली बार के अधिवेशन में अंग्रेजी लेखिका नयन तारा सहगल को मुख्य अतिथि के तौर पर निमंत्रण दिया गया था। वह इस सम्मेलन में असहिष्णुता विषय पर बोलने वाली थीं। विरोध होने पर विषय बदल दिया गया और कहा गया कि वह मराठी साहित्य पुरस्कार के सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व पर बोलेंगी। फिर भी विरोध जारी रहा और अंततः उन्हें दिया गया निमंत्रण वापस ले लेना पड़ा।
यह सब जानते हैं कि सहगल का नेहरू परिवार से नजदीकी रिश्ता रहा है लेकिन यह बात भी लगभग सबको पता है कि उन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध भी किया था। असली वजह यह थी कि साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली सहगल ने 2015 में मोदी सरकार में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपना सम्मान लौटाने का ऐलान किया था। बाद में, दादर स्थित शिवाजी मंदिर सभागृह में आयोजित एक अलग कार्यक्रम में सहगल ने कहा था कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश की जा रही है जबकि विविधता में एकता ही हिंदुस्तान की पहचान है। यह हिंदुस्तानियत कभी छोड़नी नहीं है।
Published: 04 Oct 2019, 8:00 AM IST
उनके समर्थन में फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर भी उपस्थित थे। हालांकि, इसका खामियाजा पालेकर को भुगतना पड़ा था। उन्हें एक नाट्य सम्मेलन में बोलने के दौरान बाधित किया गया था। मराठी साहित्य सम्मेलन से जुड़े अध्यक्ष श्रीपाल सबनिस का भी भाजपा के साथ हिंदूवादी संगठन सनातन संस्था के संजीव पुणालेकर ने विरोध किया था। विरोध की वजह यह थी कि सबनिस ने मोदी के अचानक पाकिस्तान दौरे पर जाने की कथित तौर पर आलोचना की थी।
Published: 04 Oct 2019, 8:00 AM IST
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Published: 04 Oct 2019, 8:00 AM IST