मणिपुर के दस आदिवासी विधायकों, जिनमें सत्तारूढ़ बीजेपी के सात विधायक भी शामिल हैं, ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपे एक ज्ञापन में आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासन (अलग राज्य के बराबर) गठित करने की अपनी मांग दोहराई है। इन विधायकों ने आदिवासी विधायकोंं, मंत्रियों और सांसदों को सशस्त्र् संगठनों द्वारा अपमानित करने का भी आरोप लगाया।
प्रधानमंत्री को दिए अपने ज्ञापन में आदिवासी विधायकों ने कहा कि मणिपुर में जारी संघर्ष की स्थिति बद से बदतर हो गई है, जैसा कि 24 जनवरी को इंफाल कांगला किले में हुई विचित्र घटना से स्पष्ट है, जिसमें मैतेई समुदाय के मंत्री, विधायक और सांसद को अपमानित किया गया और निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में भारत के संविधान के तहत ली गई शपथ का उल्लंघन करते हुए मैतेई मिलिशिया- अरामबाई तेंगगोल के प्रति निष्ठा की शपथ लेने के लिए मजबूर किया गया।''
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उन्होंने कहा कि उस दिन परिसर के अंदर, बाहर और सभी द्वारों पर भारी सुरक्षा तैनाती के बीच अरम्बल तेंगगोल द्वारा कांगला किले के अंदर मैतेई समुदाय के तीन विधायकों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया और उन पर हमला किया गया। उन्होंने ज्ञापन में कहा, "मुख्यमंत्री ने अपने सहयोगी विधायकों के सार्वजनिक उत्पीड़न पर चुप्पी बनाए रखी। ऐसी कठोर परिस्थितियों में अल्पसंख्यक आदिवासियों, मुसलमानों, नेपालियों, मारवाड़ी, बिहारियों और अन्य लोगों के भाग्य की कोई कल्पना कर सकता है क्या, जहां अरामबाई तेंगगोल द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती हो"।
यहां बता दें कि इन विधायकों का दावा है कि मणिपुर के तीन विधायकों- जिनमें राज्य कांग्रेस अध्यक्ष कीशम मेघचंद्र सिंह और सत्तारूढ़ बीजेपी के दो विधायक शामिल हैं, को कथित तौर पर 24 जनवरी को इंफाल के कांगला किले में अरामबाई तेंगगोल के सदस्यों द्वारा पीटा गया और मजबूर किया गया।
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केंद्रीय विदेश और शिक्षा राज्यमंत्री राजकुमार रंजन सिंह, राज्यसभा सांसद लीशेम्बा सनाजाओबा, पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह और मंत्रियों, दो सांसदों और विपक्षी विधायकों सहित मैतेई समुदाय के सभी 37 विधायकों ने अरामबाई तेंगगोल द्वारा रखे गए मांगों के छह चार्टर पर हस्ताक्षर किए।
दस आदिवासी विधायकों ने अपने ज्ञापन में कहा कि अरामबाई तेंगगोल के हालिया कृत्य से मणिपुर के निवासियों के भीतर सांप्रदायिक आधार पर विभाजन काफी बढ़ गया है। इसमें कहा गया, "ये मिलिशिया खुलेआम सरकारी शस्त्रागारों से लूटे गए हथियारों के साथ सड़कों पर घूम रहे हैं। केंद्रीय सुरक्षा बल एएफएसपीए (सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम) के अभाव में मूकदर्शक बन गए हैं।"
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उन्होंने कहा कि अरामबाई तेंगगोल का तालिबान जैसा कृत्य मणिपुर घाटी में संवैधानिक तंत्र के पूरी तरह से ध्वस्त हो जाना दर्शाता है। ज्ञापन में कहा गया, "राज्य सरकार अरामबाई तेंगगोल्स के वचन का पालन करने के लिए मजबूर है। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित लोकप्रिय सरकार रहने के बावजूद सड़कों पर मिलिशिया के कब्जे की ऐसी घटनाएं स्वतंत्र भारत में अभूतपूर्व हैं। इसलिए, एक वैकल्पिक राजनीतिक समाधान की तत्काल जरूरत है और यह महत्वपूर्ण मोड़ है।”
विधायकों ने कहा कि वर्तमान अस्थिर स्थिति पर प्रकाश डालते हुए एक ज्ञापन 24 जनवरी को गृहमंत्री अमित शाह को भेजा गया है, जिसमें तीन सूत्री मांगों पर तत्काल ध्यान देने और हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है। मांगों में मैतेई समुदाय के प्रभुत्व वाली मणिपुर घाटी में एएफएसपीए को फिर से लागू करना और भारत-म्यांमार सीमा के सीमावर्ती मोरेह क्षेत्रों से राज्य बलों की वापसी शामिल है।
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