मालेगांव ब्लास्ट केस में आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें मालेगांव ब्लास्ट में उसको आरोपमुक्त करने की मांग को खारिज कर दिया गया था। मालेगांव ब्लास्ट साल 2008 में हुआ था और उसमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की भूमिका संदिग्ध थी। पुरोहित ने हाईकोर्ट में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 197(2) के तहत मुकदमा चलाने के लिए सेना की मंजूरी नहीं ली गई थी।
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जस्टिस ऋषिकेश रॉय और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि उसके समक्ष चुनौती हाईकोर्ट के उस आदेश को है जिसमें यह पाया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 (2) के तहत मंजूरी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसका आक्षेपित आचरण उसके किसी भी आधिकारिक कर्तव्यों से संबंधित नहीं है। पीठ ने कहा कि आक्षेपित निर्णय के आधार पर ध्यान देने के बाद, हमें इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता और तदनुसार, विशेष अनुमति याचिका पर विचार नहीं किया जाता है।
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हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत को उच्च न्यायालय के आदेश की टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। पीठ ने पुरोहित द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि, जैसा कि हमें सूचित किया गया है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा जारी है, मंजूरी के मुद्दे की जांच के उद्देश्य से आक्षेपित आदेश में किए गए अवलोकन से निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही में अभियोजन पक्ष या बचाव पक्ष पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
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बंबई हाईकोर्ट ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में पुरोहित की आरोपमुक्ति याचिका खारिज कर दी थी। उसने विशेष एनआईए अदालत द्वारा विस्फोट मामले में उसके खिलाफ आरोप तय करने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था। उसने तर्क दिया था कि विस्फोट मामले में उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भारतीय सेना से सीआरपीसी की धारा 197 (2) के तहत मंजूरी नहीं ली गई थी। पुरोहित ने दलील दी थी कि आरोप तय करना वैध नहीं है।
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