संभावना तो कम ही है, फिर भी हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणामों से सबक ले कि काम लगभग नहीं लेकिन दावे बड़े-बड़े करने भर से वोट नहीं मिलते। लोगों की आंखों में धूल झोंके रखना आसान नहीं है।
पहली दिसंबर से '75 जिले, 75 घंटे, 750 निकाय' नाम से कूड़ा निस्तारण और सफाई को लेकर यूपी में अभियान चलाया गया। इसमें कूड़ा पड़ाव केन्द्रों पर सेल्फी प्वाइंट बने। अस्थायी बैडमिंटन कोर्ट पर अफसरों ने पसीना बहाया। अफसरों, बीजेपी नेताओं ने अपनी सेल्फी निदेशालय को भेजी लेकिन आम नागरिक इसे 'चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात' वाला अभियान बता रहे हैं क्योंकि उन्हें सब कुछ साफ दिख रहा। साथ की तस्वीर से असलियत का अंदाजा लग ही रहा है। कांग्रेस नेता अनिल सोनकर का भी कहना है कि 'नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा के नेतृत्व में प्रशासनिक अमला कूड़े के ढेर पर बैडमिंटन खेलता दिखा। पर जहां बैडमिंटन का खेल हुआ या सेल्फी खींची गई, वहां अब पहले जैसी ही स्थिति है।'
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दरअसल, महीने भर के अंदर यूपी के निकाय चुनाव को लेकर वोट पड़ने हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ जहां प्रबुद्ध सम्मेलन और लोकार्पण-शिलान्यास से माहौल बना रहे हैं, तो नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा ने अफसरों की फौज को मैदान में उतार दिया है। लेकिन लखनऊ हो या गोरखपुर, वाराणसी हो या कानपुर- सभी प्रमुख शहरों में नगर निगमों की कूड़ा निस्तारण की योजना 'भविष्य काल' में ही है। जहां सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट से कूड़े का निस्तारण हो रहा है, वहां भी क्षमता और कमीशनखोरी को लेकर सवाल हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कूड़ा प्रबंधन के लिए 140 करोड़ रुपये का बजट है। शहर में रोज निकलने वाले 1,600 मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण की हकीकत 'स्वच्छ सर्वेक्षण-2022' की रिपोर्ट कार्ड में ही दिखी। सर्वेक्षण में गार्बेज फ्री सिटी पर 1,250 अंक में से लखनऊ नगर निगम सिर्फ 600 अंक हासिल कर सका। किसान पथ एरिया में रहने वाले रिटायर्ड रेलकर्मी सुशील श्रीवास्तव का कहना है कि 'लखनऊ में 10 हजार से अधिक नियमित और आउटसोर्सिंग के सफाई कर्मचारी हैं। फिर भी मोहल्ले की सड़कों पर गंदगी के ढेर दिखते हैं। शहर में रोज निकलने वाले दो हजार मीट्रिक टन कूड़े का भी प्रबंधन नहीं हो पा रहा है।' 2010 में मेसर्स ज्योति इन्वायरों प्राइवेट लिमिटेड को कूड़ा प्रबंधन का काम दिया गया था। 1,200 मीट्रिक टन क्षमता वाला कम्पोस्ट एंड आरडीएफ प्लांट मोहान रोड के शिवरी में लगाया गया। यहां करीब 8 लाख मीट्रिक टन कूड़ा खुले में हैं। इससे पूरा इलाका कूड़े के पहाड़ में तब्दील हो गया है। दूसरी तरफ, प्लांट में कभी मशीनें खराब रहती हैं, तो कभी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने की शिकायतें आती हैं। प्लांट से सटे मोहल्लों के नागरिकों का आरोप है कि अव्वल तो प्लांट पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा, दूसरे शहर में निकलने वाले कूड़े की तुलना में इसकी क्षमता कम पड़ रही है। चुनाव से पहले नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह नया शिगुफा छोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि 'निगम निजी कंपनी के सहयोग से घरों से निकलने वाले गीले कूड़े के जरिये बायो सीएनजी गैस बनाएगा। यहां प्रतिदिन 300 टन गीले कचरे से 20 हजार किलो बायो सीएनजी गैस बनाई जाएगी। इस प्लांट की ओर से 5 रुपये सस्ती दरों पर सीएनजी गैस उपलब्ध कराई जाएगी।'
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की स्थिति भी कुल मिलाकर यही है। बीते अगस्त महीने में वाराणसी के नगर आयुक्त प्रणय सिंह ने दावा किया कि 'वाराणसी में रमना में 25 एकड़ एरिया में दिसंबर महीने से कचरे से कोयला तैयार करने वाला प्लांट शुरू हो जाएगा। एनटीपीसी की मदद से प्रस्तावित प्लांट का लोकार्पण दिसंबर महीने में पीएम नरेन्द्र मोदी करेंगे।' दिसंबर महीने का दूसरा हफ्ता गुजरने को है लेकिन 150 करोड़ की परियोजना की प्रगति पर डीएम से लेकर नगर आयुक्त तक कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। कचरा प्रबंधन में वाराणसी को पिछले दिनों बेस्ट सॉलिड वेस्ट प्रैक्टिसेस अवॉर्ड मिला है। लेकिन शहर के किसी भी प्रमुख चौराहे पर कूड़े का ढेर आसानी से देखा जा सकता है। वाराणसी के करसड़ा स्थित प्लांट की अव्यवस्था को लेकर खुद महापौर मृदुला जायसवाल नाराजगी जता चुकी हैं। करसड़ा निवासी डॉ. जयेन्द्र सिंह का कहना है कि 'प्लांट के पास बन रहे कूड़े के पहाड़ से बराबर धुआं निकलता रहता है। प्लांट के आसपास की 10 हजार से अधिक आबादी का सांस लेना दूभर है।'
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में भी कूड़ा निस्तारण और सफाई पर सालाना 80 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इसके बावजूद मोहल्लों के खाली प्लॉट से लेकर राप्ती नदी के तट पर कूड़े का पहाड़ नजर आता है। एनजीटी की फटकार के बाद भी कूड़े को राप्ती नदी के तट पर फेंका जा रहा है। कूड़े के पहाड़ के चलते झरही में प्राइमरी स्कूल बंद हो चुका हैं। पिछले पांच वर्षों में स्थानीय नागरिक 50 से अधिक मर्तबा प्रदर्शन कर चुके हैं। लेकिन झूठे आश्वासन और मुकदमे का भय दिखाकर उन्हें खामोश कर दिया गया है। नगर आयुक्त अविनाश सिंह की छवि घोषणावीर की है। वह कहते हैं कि 'सुथनी में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के प्लांट का निर्माण जलनिगम द्वारा किया जा रहा है। अगले साल इसे चालू कर दिया जाएगा।'
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औद्योगिक नगरी कानपुर में भी कहने को तो सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगा हुआ है लेकिन क्षमता से अधिक कूड़ा निकलने से यह बेमतलब साबित हो रहा है। कानपुर में रोज 1,200 मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा निकलता है। इनमें से 40 फीसदी का इस्तेमाल कर खाद बनाई जा रही है लेकिन सेनेट्री नैपकीन, प्लास्टिक और कपड़े का निस्तारण नहीं हो रहा है। ऐसे में भौंती स्थित कूड़े के पहाड़ में रोज 690 मीट्रिक टन कूड़े की बढ़ोतरी हो जाती है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अमित सिंह गौर का दावा है कि 'जर्मनी गवर्नमेंट के साथ नगर निगम ने सिटीज कॉम्बैक्टिंग प्लास्टिक फ्री मरीन एनवॉयरमेंट के तहत एमओयू किया है। इसके तहत कंपनी सूखे कूड़े के निस्तारण के लिए पनकी सरायमीता में मैटेरियल रिकवरी फैसेलिटी प्लांट (एमआरएफ) लगाएगी।' प्लांट के बगल के पुरवा गांव के रामकेश का कहना है कि 'कूड़े की बदबू से कई लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं। बच्चों की शादी का संबंध करने से भी लोग कतराते हैं।'
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ताजनगरी आगरा में रोज निकलने वाले 800 मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण के लिए कोई इंतजाम नहीं है। नगर निगम का दावा है कि स्पार्क ब्रेसान कंपनी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से करीब 170 करोड़ की लागत से वेस्ट टु एनर्जी प्लांट लगाएगी। कुबेरपुर स्थित खत्ताघर में स्थापित होने वाले प्लांट में प्रतिदिन 15 मेगावाट बिजली बनेगी। जौनपुर में बीते वर्ष 18 मार्च को तत्कालीन नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन ने 13 करोड़ रुपये की लागत से तैयार सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट का लोकार्पण करते हुए तमाम दावे किए थे। अब शहर से 8 किलोमीटर दूर कुल्हनामऊ में स्थापित प्लांट बंद पड़ा है। प्लांट नहीं चलने से 97 टन कूड़ा डंप हो रहा है।
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