देश के प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश प्रशासन पर बरसते हुए कहा कि राज्य इसलिए परेशानी में हैं क्योंकि वहां 64 मामलों के बावजूद व्यक्ति जमानत पर बाहर था। सीजेआई बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रह्मण्यन की पीठ ने यह टिप्पणी एक ऐसे शख्स की जमानत याचिका खारिज करते हुए की जिस पर आठ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
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सीजेआई बोबडे ने विकास दुबे मामले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के वकील से कहा, "आपका मुवक्किल एक खतरनाक आदमी है। हम उसे जमानत पर रिहा नहीं कर सकते। देखिए दूसरे मामले में क्या हुआ।" याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मेडिकल ग्राउंड पर जमानत मांगी थी, क्योंकि वह कई बीमारियों से पीड़ित है। जिसका विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि उसके खिलाफ आठ आपराधिक मामले हैं। ऐसे में ऐसी आपराधिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति जेल से कैसे रिहा हो सकता है।
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विकास दुबे एनकाउंटर मामले में, शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति से यह जांच करने के लिए भी कहा है कि दुबे कैसे इतने मामलों में जमानत पर रिहा हुआ था। बीते 20 जुलाई को, शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह चकित है कि विकास दुबे के खिलाफ इतने मामले होने के बावजूद उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया था, जो कि संस्था की विफलता को दर्शाता है कि वह ऐसे अपराधी को सलाखों के पीछे रखने में नाकाम रही।
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उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि दुबे ने अपने गिरोह के 90 अपराधियों का इस्तेमाल कर आठ पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या कर दी और फिर उनके शवों को क्षत-विक्षत कर दिया। दुबे आजीवन कारावास की सजा काट रहा था और दो जुलाई को जब उसने यह नरसंहार किया, तब वह पैरोल पर बाहर था।
सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने बरसते हुए कहा, "उत्तर प्रदेश इसलिए दांव पर नहीं है कि वहां एक घटना हुई है, बल्कि वहां पूरी प्रणाली दांव पर है। इसे याद रखें।" वहीं यूपी पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने पीठ के समक्ष कहा कि "हम पुलिस बल का मनोबल नहीं गिरा सकते।" इस पर प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने कहा, "प्रदेश में कानून के शासन को मजबूत कीजिए तो पुलिस बल का मनोबल कभी नहीं गिरेगा।"
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