PTI Photoहालांकि यह बात मुख्य धारा की मीडिया में हेडलाइन नहीं है कि महाराष्ट्र में एनडीए में लोकसभा की सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान बनी हुई है, लेकिन इसे दबा भर देने से सच्चाई नहीं छिपती। राज्य में एनडीए में बीजेपी के साथ एकनाथ शिंदे गुट की शिव सेना और अजित पवार गुट की एनसीपी है। खींचतान इतनी है कि मंत्रियों से कहा गया है कि वे इस मसले पर सार्वजनिक स्थानों पर चुप्पी ही साधे रहें।
खींचतान के बीच ही बीजेपी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। जाहिर है कि बीजेपी, शिंदे गुट और अजित गुट के बीच मनभेद कितना गहरा है। इस सूची में सात लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार भी बदले गए हैं। बीजेपी को इन सीटों पर जीत की उम्मीद नहीं थी। जिनके टिकट कटे हैं, उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। अब इस विरोध को दबाने का भी काम किया जा रहा है।
ऐसी चर्चा है कि खींचतान के बीच ही शिंदे गुट और अजित गुट के उम्मीदवारों की भी सूची तो जारी हो जाएगी। लेकिन इन दोनों गुटों के अंदर जो खटास रहेगी, उसका नकारात्मक असर बीजेपी गुट पर देखने को मिल सकता है।
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सच्चाई यह भी है कि शिंदे की शिव सेना और अजित पवार वाली एनसीपी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है। यह हाल तब है जबकि दोनों को ही निर्वाचन आयोग ने 'असली' बताया है और उन्हें मूल पार्टियों के चुनाव चिह्न दे दिए हैं। दोनों के पास फिलहाल मूल पार्टी के विधायकों और सांसदों का बहुमत है। इसके बल पर ही शिंदे की शिव सेना ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिराकर बीजेपी के साथ मिलकरमहायुति सरकार बनाई और बाद में, अजित पवार भी इस सरकार में शामिल हो गए।
अच्छा-अच्छा गप्प और मीठा-मीठा थू वाले दिन बीत चुके हैं और अब बीजेपी की ओर से शिंदे गुट और अजित गुट पर बहुत ज्यादा दबाव है। वजह भी है। शिव सेना जब नहीं बंटी थी, तब 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने 18 सीटें जीती थीं। इनमें से 13 सांसद शिंदे के साथ हैं। वैसे, अजित पवार उतने भाग्यशाली नहीं हैं। एनसीपी के चार में से एक ही सांसद उनके साथ है।
लेकिन सूत्रों की मानें तो बीजेपी अपने तीन अंदरूनी सर्वे के निष्कर्षों के आधार पर इन दोनों पाटियों पर दबाव बना रही है। उसका कहना है कि ये सर्वे बता रहे हैं कि वैसी ज्यादातर सीटों पर शिंदे गुट और अजित गुट से जीत का भरोसा नहीं किया जा सकता जिन पर पिछली बार उनकी जीत हुई थी। बीजेपी का कहना है कि वैसे भी, इस बार के लोकसभा चुनाव में ये दोनों पार्टियां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का ही सहारा लेने वाली हैं, इसलिए बीजेपी को ही ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहिए। लेकिन, स्वाभाविक तौर पर, शिंदे और पवार इससे संतुष्ट नहीं हैं।
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अभी हाल में नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की शिंदे और अजित पवार के साथ करीब ढाई घंटे की बैठक हुई। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो इसमें शाह ने शिंदे को 9-10 सीटें और अजित पवार को 4 सीटें ही देने पर जोर दिया। अगर इन्हें सही मानें, तो बीजेपी महाराष्ट्र में कम-से-कम 35 सीटों पर लड़ना चाहती है। बीजेपी को 2019 में 23 सीटों पर जीत मिली थी।
बीजेपी अपने आंतरिक सर्वे की रिपोर्ट किसी सहयोगी दल या मीडिया के साथ साझा तो करेगी नहीं। हालांकि शाह भी बीजेपी के सभी प्रत्याशियों के विजय की गारंटी नहीं दे सकते, पर वह इन दोनों ही पार्टियों से जीत की गारंटी चाह रहे हैं। वैसे, इस बार भी संघ का बीजेपी टिकट वितरण में खासा दखल है और वह भी इस बात पर जोर दे रहा है कि बीजेपी के सहयोग-समर्थन के बिना इन दोनों पार्टियों का कोई वजूद नहीं है।
वैसे, बीजेपी नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया है कि 80 फीसदी सीटों पर समझौता हो गया है। 20 फीसदी सीटों पर बातचीत जारी है। इन पर भी जल्द ही फैसला ले लिया जाएगा। लेकिन लगता नहीं कि शिंदे की शिव सेना को उतनी सीटें मिल पाएंगी जितनी वह मांग रही है। अगर बीजेपी ने शिव सेना के उन सभी 13 सांसदों के लिए भी जगह नहीं छोड़ी जो पिछली बार जीते थे, तो शिंदे गुट वाली शिव सेना को बिखरने का खतरा भी झेलना पड़ सकता है।
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इसकी वजह भी है। उसका मराठी वोट बैंक इस बात से खासा नाखुश है कि बीजेपी उसकी पारंपरिक सीटों- नासिक, परभणि, सतारा, शिरुर, गढ़चिरौली और संभाजीनगर पर भी अपने उम्मीदवार खड़ा करना चाह रही है। इन्हीं वजहों से पार्टी के एक नेता रामदास कदम ने कड़े शब्दों में कहा कि बीजेपी गला दबाते हुए शिवसेना को खत्म करना चाहती है, लेकिन बीजेपी को यह जान लेना चाहिए कि मोदी की जीत शिव सेना के बगैर संभव नहीं है। स्वाभाविक ही यह बात बीजेपी को बुरी लगी। फडणवीस ने कदम को एहसान के तले दबे होने का एहसास कराते हुए कहा कि हमने अपने 105 विधायक होने के बावजूद शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया। इस पर शिंदे के करीबी नेता संजय शिरसाट ने भी टका-सा जवाब दिया कि शिंदे ने साथ नहीं दिया होता तो बीजेपी अपने 105 विधायकों के साथ आज भी विपक्ष में होती।
अजित गुट के भी एनडीए में शामिल होने के बाद शिंदे की मुख्यमंत्री की कुर्सी डगमगाने की अटकलें लगती रही हैं। लेकिन बीजेपी नेता फडणवीस सफाई देते रहे हैं कि मुख्यमंत्री शिंदे ही रहेंगे और उनके नेतृत्व में ही लोकसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। अब चुनावकी तारीखों का ऐलान हो चुका है तो नेतृत्व का यह चेहरा बदलने लगा है। यह बात सामने आ गई है कि लोकसभा का चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। शिंदे भी कह रहे हैं कि मोदी को जिताना है।
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अजित गुट के पास एक ही सांसद है। लेकिन सीटों के बंटवारे में यह गुट शिंदे गुट से बराबरी कर रहा है। अजित गुट के नेता छगन भुजबल ने शिंदे गुट के बराबर ही सीटों की मांग की है। वैसे, बीजेपी ने एक और दांव चला है। उसने अजित को अपनी पत्नी सुनेत्रा को बारामती से लड़ने पर पूर्ण समर्थन का वादा किया है। अभी यहां से शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं।
सीटों के बंटवारे को लेकर शिंदे और अजित गुटों में नाराजगी तो है लेकिन बीजेपी इन दोनों गुटों को यह लॉलीपॉप थमाकर नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है कि लोकसभा चुनाव की भरपाई विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें देकर कर दी जाएगी। मगर वादे तो वादे ही होते हैं और कम-से-कम राजनीति में इन पर कौन भरोसा करता है? वैसे, इन दोनों गुटों में दागियों की संख्या ज्यादा है, तो इस नाम पर बीजेपी उस वक्त अन्य तरीके से दबाव बना सकती है। इसलिए लोकसभा चुनाव में एनडीए में सीटों के बंटवारे की घोषणा हो भी जाए, तो सबकुछ अच्छे तरीके से निबटने की उम्मीद इसके नेताओं को भी नहीं है।
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उधर, 'इंडिया' गठबंधन के नेता राहुल गांधी की 17 मार्च (आज रविवार) को शिवाजी पार्क में होने वाली रैली की तैयारी में व्यस्त हैं, इसलिए उनके बीच सीटों के बंटवारे को फिलहाल अंतिम रूप नहीं दिया गया है। वैसे, इस रैली पर एनडीए की भी निगाह है क्योंकि उसे अंदाजा है कि सरकार के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी किस तरह की है। महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के साथ उद्धव ठाकरे गुट की शिव सेना और शरद पवार की एनसीपी शामिल है। इन तीनों दलों के नेताओं के बीच सीटों के बांटने पर अब तक हुई चर्चा सकारात्मक ही है। कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पर इन पार्टियों को अपनी ताकत ज्यादा दिख रही है लेकिन जब मोदी को हराने की बात सामने आती है तो ये पार्टियां सीटों की अदला-बदली करके समझौता करने के मूड में हैं क्योंकि वे अपनी शक्ति जाया नहीं करना चाहतीं।
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वैसे भी, सबकी निगाह ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में होने वाली राहुल की रैली पर है। शिवाजी पार्क कई ऐतिहासिक राजनैतिक रैलियों का गवाह है। शिव सेना प्रमुख बाला साहेब की दशहरा रैली इसी पार्क में होती रही है।
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