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महाराष्ट्र: नकल के लिए भी अक्ल नहीं लगा पा रही शिंदे सरकार

विधानसभा चुनाव तीन महीने दूर, अब महिलाओं और किसानों की सुध लेने की कोशिश, लेकिन दूसरे राज्यों की योजनाओं की नकल करके भी पसोपेश में है महाराष्ट्र की महायुति सरकार।

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नकल कर ली, पर तीर कमान से छूटने के बाद

कहते हैं न कि नकल के लिए भी अक्ल चाहिए। एकनाथ शिंदे सरकार के अंतिम अंतरिम बजट को देखकर लगता है कि नकल तो की गई है लेकिन पेशबंदी जिस वक्त करनी चाहिए थी, वह सिरे से गायब है।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सत्ता में लौटने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान को कुर्सी से उतार दिया गया था, पर जीत का श्रेय शिवराज की लाड़ली बहना योजना को दिया गया था। यह योजना मार्च, 2023 में शुरू की गई। शुरू में महिलाओं को 1,000 रुपये दिए गए, फिर 1,250 किया गया। नवंबर में चुनाव हुए, तो बीजेपी को इसका फायदा मिला। महाराष्ट्र में एनडीए को महायुति नाम दिया गया है जिसकी लोकसभा चुनावों में एक तरह से फजीहत हो गई है। तो इधर-उधर से आइडिया लेकर कई नई स्कीमों की घोषणा अभी जून के आखिरी हफ्ते में पेश बजट में की गई है। यहां विधानसभा चुनाव अक्टूबर में हैं।

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महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना के तहत पहली जुलाई से 20 से 60 साल की महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये देने की घोषणा की गई है। शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे) नेता आदित्य ठाकरे के इस सवाल को टाल भी दें कि ढाई साल से शिंदे सरकार को बहनों की याद क्यों नहीं आई, तो औरंगाबाद के दौलताबाद की सुरेश कांताबाई के इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है, 'सरकार पहले देना शुरू करे, तब तो पता चले कि उसे वोट मिलेंगे या नहीं। आखिर, अचानक से किस आधार पर हमें पैसे मिलने लगेंगे- अभी तो हमने अप्लाई भी नहीं किया है। वैसे भी, महंगाई के दौर में इस डेढ़ हजार से क्या होगा?'

वैसे, सरकार ने पिंक ई-रिक्शा पर अनुदान, अन्नपूर्णा योजना के तहत तीन गैस सिलिंडर मुफ्त, ओबीसी लड़कियों को मुफ्त उच्च शिक्षा देने की भी घोषणा की है। सवाल वही कि तीन महीने में कौन-से चमत्कार की उम्मीद महायुति को है?

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किसानों की कर्ज माफी पर चुप्पी

अंतरिम बजट में 7.5 हॉर्स पावर तक के कृषि पंप के लिए मुफ्त बिजली देने की घोषणा भी की गई है। लेकिन मराठवाड़ा के बीड के किसान जयराम सालुंके का कहना है कि इसके बाद भी किसानों पर कर्ज तो बना ही रहेगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने भी कहा है कि महा विकास आघाड़ी (एमवीए) ने तेलंगाना की तरह किसानों का कर्ज माफ करने की मांग की थी। मराठवाड़ा संभागीय आयुक्त कार्यालय की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 में मराठवाड़ा के 8 जिलों में आत्महत्या के 1,088 मामले दर्ज हुए थे। अभी चल रहे मानसून अधिवेशन में विधानसभा में शरद पवार गुट के विधायक जयंत पाटील ने भी कहा कि जनवरी, 2023 से अप्रैल, 2024 तक 3,900 किसानों ने आत्हत्या की है।

इस साल जनवरी से अप्रैल के दौरान आत्महत्या के 838 मामले सामने आए हैं।

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बजट पेश करने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस तक में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार ने दबी जुबां से कहा कि राज्य की आर्थिक स्थिति कर्ज माफी की नहीं है। गौरतलब है कि जब कोराना तेजी से फैल रहा था, तब उद्धव ठाकरे की एमवीए सरकार ने किसानों के 2 लाख रुपये तक के फसल कर्ज को माफ कर दिया था। उस वक्त भी वित्त मंत्री अजित ही थे। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सही ही सवाल खड़ा किया कि जिस तरह से वादों की बारिश की गई है, आखिर उसके लिए पैसे कहां से आएंगे?

हिंदू कार्ड का भी खेल

महायुति ने अंतरिम बजट में हिन्दू कार्ड भी खेला है। पहली बार बजट में पंढ़रपुर जाने वाले हर दिंडी, मतलब तीर्थयात्री को 20 हजार रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की गई है। लेकिन साफ नहीं है कि भुगतान किस तरह और किस आधार पर किया जाएगा। वारकरी समुदाय के लिए मुख्यमंत्री वारकरी संप्रदाय महामंडल, बारी समाज के लिए संत श्री रूपलाल महाराज आर्थिक महामंडल का गठन, निर्मल वारी को 36 करोड़ रुपये का फंड, पंढ़रपुर वारी के लिए यूनस्को को प्रस्ताव भेजने की भी घोषणा हुई है। अल्पसंख्यक विभाग के बजट में 947 करोड़ रुपये का ही प्रावधान रखा गया है जबकि पिछले बजट में 877 करोड़ रुपये का प्रावधान कर 1,419 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

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पंकजा मुंडे के भरोसे

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें है। पिछले चुनावों में इनमें से 17 सीटें ही महायुति को मिल पाईं- अजित पवार की एनसीपी को सिर्फ 1 जबकि बीजेपी को 9 और शिव सेना (एकनाथ शिंदे) को 7 सीटें। मराठवाड़ा की सभी 8 सीटों पर बीजेपी का सूपड़ा ही साफ हो गया। यहां विधानसभा की 46 सीटें हैं। यहां की बीड लोकसभा सीट से पंकजा मुंडे को हार का मुंह देखना पड़ा। वैसे, इसके पीछे यहां मराठा आरक्षण के नेता मनोज जरांगे के नेतृत्व वाला मराठा आंदोलन बड़ा कारण है लेकिन चर्चाओं पर यकीन करें, तो हार के पीछे बीजेपी के ही कुछ स्वनामधन्य बड़े नेता रहे हैं।

फिर भी, अब बीजेपी को पंकजा से ही नैया पार लगाने का भरोसा है। यह इलाका दिग्गज ओबीसी नेता दिवंगत गोपीनाथ मुंडे का रहा है। विरासत उनकी बेटी पंकजा संभाल रही हैं। उनकी हार से दुखी आधा दर्जन समर्थकों ने खुदकुशी तक कर ली। महाराष्ट्र में ऐसा पहली बार है जब किसी नेता के हारने पर उनके समर्थकों ने खुदकुशी कर ली हो। मजबूरी में बीजेपी पंकजा को विधान परिषद सदस्य बनाने पर मजबूर हो गई है। 27 जुलाई को विधान परिषद की खाली होने वाली 11 सीटों पर 12 जुलाई को मतदान होना है और उसी दिन नतीजे भी आ जाएंगे।

एक राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कमजोर पड़ते दिख रहे हैं। इसलिए पहले केंद्र में मराठा नेता विनोद तावडे को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई और अब राज्य में पंकजा को आगे लाया जा रहा है। फडणवीस की वजह से पार्टी छोड़ने वाले एकनाथ खडसे की भी घर वापसी की तैयारी चल रही है। उन्होंने अपनी बहू रक्षा खडसे को लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रक्षा अब केन्द्र सरकार में मंत्री बन चुकी हैं।

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अब क्या होगा अजित का?

अजित पवार और उनकी एनसीपी को लेकर लगाए जाा रहे कयासों से ही समझा जा सकता है कि उनकी हालत कैसी है। उनकी पार्टी ने 4 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा, जीत पाई सिर्फ एक। उनकी पत्नी को शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने हरा दिया। आरएसएस से लेकर पुणे में जिला स्तर के नेता सुदर्शन चौधरी तक अजित गुट को महायुति से बाहर करने की मांग पर जोर दे रहे हैं। उनकी इस गति पर पहुंच जाने से सबसे अधिक खुश मुख्यमंत्री शिंदे हैं।

शिंदे गुट का मानना है कि अजित गुट के बाहर होने से उनके गुट को ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। इधर, जिस सहकारी बैंक के 25 हजार करोड़ रुपये के कथित घोटाले मामले में मुंबई पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दर्ज कर दी थी, अब उसके खिलाफ ईडी ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की है। इससे अजित की परेशानी फिर बढ़ गई है। पहले नरेंद्र मोदी तक भी इस घोटाले का जिक्र चुनाव सभाओं में करते थे।

अजित के कुछ विधायक घर वापसी के लिए मंथन कर रहे हैं। दिक्कत यह है कि शरद पवार ने एक तरह से कह दिया है कि अजित की पार्टी में वापसी संभव नहीं है। माना जाता है कि अजित गुट के एक नेता ने प्रकाश आम्बेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी से गठबंधन की बात की लेकिन उधर से साफ कर दिया गया कि उन्हें पहले महायुति से बाहर आना होगा। एक बात तय है कि अजित को उनकी इच्छित 90 सीटों पर लड़ने का अवसर तो महायुति में नहीं मिलने वाला। ऐसे में, अजित पवार करेंगे क्या, यह देखने वाली बात होगी।

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