महाराष्ट्र में नवंबर से पहले विधानसभा चुनाव होने के साथ ही बीजेपी नेताओं की ओर से अचानक आ रहे नफरती भाषण किसी साजिश का हिस्सा लगते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इनमें से अधिकांश मुसलमानों के खिलाफ हैं क्योंकि राज्य में 14 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिमों को अलग-थलग करने से बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होना है। पार्टी को लगता है कि वे उन्हें वोट नहीं देने वाले। नारायण राणे के बेटे और बीजेपी विधायक नितेश राणे के खिलाफ पुलिस की निष्क्रियता से भी ऐसा लगता है जो लगातार मुस्लिमों के खिलाफ भड़काऊ भाषण करने में लगे हैं।
भड़काऊ भाषण पर अलग-अलग थानों में तीन एफआईआर दर्ज कराई गई हैं। आखिरी रविवार को नवी मुंबई में दर्ज की गई है। चार दिन पहले नितेश ने लोगों से मुस्लिम विक्रेताओं और व्यापारियों का बहिष्कार करने के लिए कहा था। यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि उन्हें शहर में न बसने दें और हिंसा का सहारा लेने के लिए तैयार रहें। यह धमकी देना शामिल था कि अगर वे महंत रामगिरी महाराज के खिलाफ अभद्र बातें करना जारी रखेंगे, तो हिन्दू मस्जिदों और मुस्लिमों पर हमला करेंगे।
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बीजेपी को ऐसी भड़काऊ भाषणबाजी से कोई दिक्कत नहीं है और किसी को यह उम्मीद नहीं है कि पुलिस कोई कार्रवाई करेगी या गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस चुप्पी तोड़ेंगे। लेकिन उसके सहयोगी साफ तौर पर इस सबसे सहमत नहीं हैं। शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी दोनों ही मुस्लिम वोट खोने से चिंतित हैं और भड़काऊ भाषणों की निंदा करने को लेकर मुखर हैं। बदले में बीजेपी ने सहयोगियों के खिलाफ मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप तेज कर दिया है जिसमें आशीष शेलार सबसे आगे हैं।
बीजेपी के सहयोगी दलों का मानना है कि राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से कम-से-कम 15 इसलिए हारी क्योंकि अल्पसंख्यकों का वोट एमवीए या इंडिया गठबंधन को गया। इसका खामियाजा भुगत चुके शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) फिर उसी गलती से बचना चाहते हैं। दोनों मुसलमानों को अपने समर्थन का भरोसा दिलाने की हरसंभव कोशिश में हैं। दरअसल राज्य सरकार ने कांग्रेस के नसीम खान की मांग मान ली और ईद-मिलाद-उन-नबी के लिए सरकारी छुट्टी 16 से बढ़ाकर 18 सितंबर कर दी। अजित पवार कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी किसी भी दल के नेताओं के मुस्लिम विरोधी बयानों का समर्थन नहीं करती।
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अजित पवार को लोकसभा चुनाव से पूर्व भी बीजेपी नेताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने मराठा और मुस्लिम आरक्षण के पक्ष में बातें की थीं। बीजेपी और आरएसएस दोनों ने तब उनकी आलोचना की थी और खुले तौर पर कहा था कि वह गठबंधन के लिए बोझ बन गए हैं। यह अजित पवार को खुद गठबंधन से निकल लेने के लिए उकसाने जैसा है ताकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना (शिंदे) के अधिक उम्मीदवार उतारे जा सकें।
इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात शिवसेना (शिंदे) की भायखला विधायक यामिनी जाधव द्वारा सितंबर की शुरुआत में एक सार्वजनिक समारोह में मुस्लिम महिलाओं को एक हजार बुर्का बांटना था। वह लोकसभा चुनाव में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के अरविंद सावंत से 50,000 वोटों के अंतर से हार गई थीं। विधानसभा चुनाव में वह कोई खतरा नहीं मोल लेना चाहतीं। बीजेपी द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए आलोचना को यह कहकर खारिज कर दिया कि उन्हें अपने क्षेत्र का ख्याल रखना है।
मतभेदों के इस तरह सार्वजनिक प्रदर्शनों के बावजूद अधिकांश पर्यवेक्षक इस पर सहमत हैं कि जानबूझकर किया गया विभाजन गठबंधन में सभी तीनों दलों के लिए चुनावी लाभ के लिए सोची-समझी राजनीतिक चाल है। चिंता यह है कि गठबंधन का ऐसा रवैया किसी को मूर्ख नहीं बना सकता। बड़ी चिंता यह है कि चुनाव से पहले अगर मौजूदा चालें काम नहीं करतीं तो मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए सांप्रदायिक हिंसा की योजना बनाई जाएगी।
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योजनाएं और चिंताएं
‘डबल इंजन’ सरकार उस अतिरिक्त समय का फायदा उठाने में लगी है जो उसे हरियाणा के साथ चुनाव न कराकर चुनाव आयोग ने दिया है। दोनों राज्यों के चुनाव 2009, 2014 और 2019 में साथ हुए थे। महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल नवंबर अंत में समाप्त हो रहा है। इससे आयोग को अधिसूचना जारी के लिए कुछ और सप्ताह मिल जाएंगे।
पिछले साल प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध का बड़ा नुकसान बीजेपी को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा था। महाराष्ट्र में प्याज की कीमतें गिर गई थीं और केन्द्र द्वारा गुजरात को खाड़ी क्षेत्र में प्याज निर्यात की विशेष छूट से कीमतें और भी बढ़ गईं। पिछले सप्ताह के अंत में सोयाबीन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, प्याज पर निर्यात शुल्क 40 से 20 प्रतिशत करने और रिफाइंड तेल पर आयात शुल्क 13.7 से 35.75 प्रतिशत करने की घोषणा पिछले साल की चूक की भरपाई के लिए की गई।
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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने केन्द्र और प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया और कहा कि व्यापारी पहले दूसरे देशों से तेल आयात करते थे। अब वे देश में ही तेल और कच्चा माल खरीद सकेंगे। सरकार ने घरेलू किसानों की मदद के लिए प्याज पर आयात शुल्क भी बढ़ा दिया है। ग्रामीण संकट की वजह से सत्तारूढ़ गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा। उसे लोकसभा चुनाव में मात्र 17 सीटें ही मिल पाईं जबकि इंडिया गठबंधन को 31 सीटें मिलीं।
लासलगांव में थोक प्याज मंडी के सचिव नरेन्द्र सावलीराम ने दुख जताया कि छोटे किसानों को इस घोषणा से कोई लाभ नहीं मिलेगा। इससे निर्यातकों और थोक व्यापारियों और स्टॉकिस्टों को लाभ होगा। यदि फैसला बदला नहीं गया तो खरीफ फसल के उत्पादकों को मदद मिल सकती है।
इस बीच, सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता लाडली बहीण योजना का लाभ लेने में जुट गए हैं। महिलाओं के खातों में हर माह 1,500 रुपये भेजे जा रहे हैं। राज्य सरकार ने योजना के प्रचार के लिए 200 करोड़ और रैलियों के लिए अतिरिक्त 70 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं। अधिसूचना न जारी होने की वजह से प्रचार के लिए सार्वजनिक धन के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं है। गठबंधन सहयोगियों के पोस्टरों-बैनरों से लग रहा है जैसे संबंधित नेता अपनी जेब से पैसे दे रहे हैं।
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इस सबसे कुछ कटुता भी बढ़ी है। कैबिनेट की बैठक में अजित पवार पर प्रोटोकॉल तोड़ने के आरोप लगाए गए हैं। बताया जाता है कि उनकी रैलियों में लगे पोस्टरों पर न मुख्यमंत्री की फोटो थी और न ही नाम। हालांकि इस मामले में अन्य दोनों दलों के नेता भी उतने ही दोषी हैं क्योंकि दूसरे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अपने पोस्टरों में खुद को पैसे बांटते हुए दिखाते हैं। शायद शिंदे की राजनीतिक मजबूरी उन्हें ऐसी बेशर्मी न करने दे लेकिन उनकी रैलियों में भी फडणवीस और अजित पवार की तस्वीरों वाले पोस्टर आम तौर पर समर्थकों द्वारा ढके जाते हैं।शिंदे घर-घर जाकर लाभार्थियों को भरोसा दिला रहे हैं कि अगर वह सत्ता में आए तो राशि बढ़ाकर 3,000 रुपये कर देंगे।
योजनाओं की जानकारी जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकार ने 50 हजार युवक-युवतियों को 10,000 रुपये मासिक मानदेय पर नियुक्त करने का भी फैसला किया है। यह स्वयं सेवकों की एक फौज तैयार करने का नया तरीका भी है जो चुनाव में काम आ सकता है। ऐसे प्रचार ने इन योजनाओं के वितरण में लीकेज, धोखाधड़ी और अक्षमताओं को दबा दिया है। ऐसी कई रिपोर्ट सामने आई हैं कि बेईमान तत्वों ने राशि प्राप्त करने के लिए फर्जी बैंक खाते बनाए हैं। राज्य सरकार का सार्वजनिक कर्ज तेजी से बढ़ने के कारण योजना जारी रखने को लेकर चिंताएं हैं और सरकार पहले से ही बहिष्करण प्रावधानों का पता लगाने में लगी है।
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लोक पोल सर्वे के निष्कर्ष कुछ अलग ही कहानी कहते हैं। सर्वे कहता है कि ग्रामीण संकट, कीमतों में वृद्धि, कानून व्यवस्था की विफलता, महाराष्ट्र के गौरव को नुकसान, बेरोजगारी और परियोजनाओं को गुजरात ले जाना मतदाताओं के बीच चिंता के बड़े मुद्दे बने हैं। इसमें बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की लोकप्रियता में वृद्धि और शरद पवार की एनसीपी को असली एनसीपी के रूप में स्वीकारा गया है। भविष्यवाणी की गई है कि विपक्षी एमवीए को 141-154 सीटें मिलने की संभावना है। एनडीए या महायुति को 115-128 और अन्य को 5-18 सीटें मिलने की बात कही गई है। एमवीए को विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र और मुंबई में बढ़त मिलने जबकि एनडीए को खानदेश और कोंकण में बढ़त की बात की गई है।
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